लाओ
त्से तुंग ने ताओ के रूप में कहा -New beginnings are often as
painful endings , एक गम का जाना , एक खुशी का आना नहीं,मैं यह भी
कहूंगी कि
खुशी का एक तिनका दर्द के गट्ठर से छिटका साथी है, वह जल्द अपने
दोस्तों से मिलने को आतुर होगा।
Zen
दर्शन में एक उक्ति है -मैंने जब तापस आरम्भ किया तब पहाड़ पहाड़ थे,
नदियां नदियां थी, बादल बादल थे, मैंने कुछ और ध्यान किया तो
नदियां नदियां नहीं थी, पहाड़ पहाड़ नहीं थे, बादल बादल नहीं थे, मैं
कुछ और तपस्या में डूबा तो फिर नदियां नदियां दिखने लगीं, पहाड़
चमकने लगे, बादल मण्डराने लगे,,,,
यही कुछ हुआ ना, जनवरी के
आरम्भ में चीन के विचलित करने वाले दृश्य दिखने लगे. अभी कुछ महिने
पहले ही तो लौटी थी वहां से, प्रेम से , स्नेह से वास करते हुए, उस
छह सौ साल पुराने गांव से,,,
ताओ को अनुभूत करते हुए,
जीते हुए, हंसते हुए....
जिन्दगी में यदि कुछ ना
हो, फिर भी चाय खूबसूरत प्यालें में ही पियों, चाहे उसकी दरारों को
स्वर्णिम लेप से ढंकना पड़े .....
सीखा की प्रकृति को घूंट
घूंट पियों, फिर नीन्द से बुहार दो,
काल उसकी चमकीली रेखाओं को
निहार देगा.
करोना केरल में सबसे पहले
धमाका, मार्च के आरम्भ में हम घर गुस्सू बन गये, घुटन हुई ,
छटपटाहट हुई, देह ने अपने दर्दों को दिखाना शुरु किया, इटली में
करोना के विरोध में सबसे पहला वर्चुएल अभियान हुआ, मुझे भी
आमन्त्रित किया, मुझे उस अभियान लेने से आत्मिक शान्ति
मिली...कृत्या का नया अंक निकाल रही थी, लेकिन अजीब सा वैराग्य
छाया। निबिड़ अकेला पन था,बाहर अँधकार था. पीड़ा सड़कों पर चल रही थी.
मेरी अपनी कलम से कविता की
स्याही सूख गई, सिर्फ विचार गद्य में स्याह बन रहे हैं, मैं रोजाना
टीप लिखने लगी
दुनिया के दूसरे छोरों पर
कविता पढ़ती रही, ठेठ हिन्दी में, अनुवाद उनका,,,,,
देह में छिद्र हो रहे थे,
विटामिन डी पन्द्रह तक आ गया, मोह मुंडेर की चिड़िया सा उड़ गया. एक
बेचारगी वाली अनासक्ति, मन फटक रहा था, देह तड़क रही थी, कि कृत्या
फेस्टीवल की घोषणाकर डाली, क्यों करती हूँ मैं ये बेवकूफियां, शायद
अपने को जरा सा बचाने के लिए।
उस वक्त मन उबल रहा था,
गुस्सा उफन रहा
था,
बेचारगी महसूस हो रही थी, लेकिन कृत्या ने बचा लिया,
लेकिन कब तक, सड़क पर चलते
नंगे पांव रात को सोने नहीं देते, अजीब सी बेचारगी जग जाती...
अभी कुछ पहले ही तो शाहिन
बाग का दर्द फोड़ा बन कर उभरा था।
सोचा कि अब कवियो को
,
कलाकारों को, चिन्तकों को, इतिहास कारों को , विविध विषय ज्ञाताओं
को कबुलाया जाये ,कुछ संवाद किया जाये, कुछ समझा जाया, शुरु हुआ
कृत्या टाक का सफर
मन थमने लगा, विटामिन डी
की डोस मिलने लगी थी, देह बस में आई, रसोई में खुशबू का परचम
लहराने की कोशिश रही....
और फिर आया किसानों का
मेला, इस बार दर्द नहीं हौसला उठा, जबर, वाह, हमारे किसानों के
हलों में ताकत है,,,सिर झुक गया
कृत्या टाक में बेहतरीन
संवाद हुए, मन तन दोनों को सभाला, साल का अन्त हो रहा है, सूची
बनाऊं कि क्या पाया, तो काफी लम्बी बन सकतीहै,
नंगों के पास खोने को कुछ
नहीं होता, तो खोऊंगी क्या
देह का क्या, यह तो ऐसे ही
छीजेगी,,, चलने दो...
तुम कहते हो कि नया साल,
तो मैं मानती हूं, मेरी यात्रा तो चल रही है, मेरा मन तो थम रहा
है, मेरे पांख देह से हट कर मन में उड़ रहे हैं
और अब अन्तिम दिन मैं
कृत्या पत्रिका पर काम कर रही हूं
मुबारक मेरे मित्रों, मुझे
पसन्द करने या ना पसन्द करने वाले, शुकराना मेरे वक्त का, जिसने
काफी कुछ सिखाया
मित्रों नये साल का नया अंक पेश है
अंक की कलाकार सोनी पाण्डेय हैं, जिनके चित्रों को में दस महिने से
रखे बैठी हूँ,
नये वर्ष के स्वागत मे
रति सक्सेना
पत्र-संपादक
के नाम
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