कवि अग्रज

जैक हिर्शमैन

 

 समकालीन वैश्विक कवियों में जैक हिर्शमैन  का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। मेरा उनसे परिचय मैडिलीन पोइट्री  फेस्टीवल में 2011 में हुआ था। लम्बे- पतले दुबले और लेकिन बुलन्द आवाज वाले जैक अमेरिका का सबसे लोकप्रिय कवि के रूप जाने जाते हैं। उन्हें अपनी प्रोफेसरशिप वियेतनाम युद्ध के विरोध के लिए गंवानी पड़ी, लेकिन उन्हें कोई मलाल नहीं था। वे वर्षों वर्षों तक वे न्यूयार्क के नुक्कड़ पर कविता गोष्ठी आयोजित करते रहे। जैक ने बताया कि जब उनकी नौकरी चली गई तो उनके पास डेढ़  डालर   रोजाना के हिसाब से पैसा था बस, वे सालों साल सिर्फ उसी से गुजारा करते रहे, लेकिन कविता से नहीं टूटे। वे लगातार कविता लिखते रचते रहे। उनकी कविताएं अधिकतर क्रांतिकारी पृष्ठभूमि पर निर्भर होती हैं। कृत्या में हम जैक हिर्शमैन को अग्रज कवि के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, क्यों कि कविता के प्रति इतना समर्पण दुर्लभ है। RS

 

 

जैक हिर्शमैन का जन्म न्यूयॉर्क शहर में एक रूसी यहूदी परिवार में हुआ था। जब वे 19 वर्ष के थे, तो उन्होंने अर्नेस्ट हेमिंग्वे को एक कहानी भेजी, जिसने जवाब दिया: मैं आपकी मदद नहीं कर सकता, बच्चे। जब मैं 19 वर्ष का था, आप उससे बेहतर लिखते हैं। आप मेरी तरह लिखते हैं। यह कोई पाप नहीं है। लेकिन आप इसके साथ कहीं नहीं पहुंचेंगे। इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा 1960 में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई। 50 और 60 के दशक में, हिर्शमैन ने डार्टमाउथ कॉलेज और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स में पढ़ाया। यूसीएलए में उनके कार्यकाल के दौरान, उनकी कक्षा में नामांकित छात्रों में से एक जिम मॉरिसन थे, जो बाद में अमेरिकी बैंड द डोर्स के सह-संस्थापक और प्रमुख गायक बने। हालाँकि, वियतनाम युद्ध ने हिर्शमैन के शैक्षणिक करियर को समाप्त कर दिया; उन्हें अपने छात्रों को वियतनाम युद्ध के विरोध में काम करने को प्रोत्साहित करने का आरोप लगा। उन्हें यूसीएलए से निकाल दिया गया था।

एक चौथाई शताब्दी के लिए, हिर्शमैन ने सैन फ्रांसिस्को की सड़कों, कैफे (कैफे ट्राएस्टे सहित, जहां वह एक नियमित संरक्षक रहे हैं), और रीडिंग, एक सक्रिय कवि और एक सक्रिय कार्यकर्ता बनकर घूमते रहे। हिर्शमैन एक पेंटर और कोलाजिस्ट भी थे। वे उम्र भर कम्यूनिस्ट विचारधारा के समर्थक रहे, और कविता के द्वारा सामाजिक चेतना जगाने का काम करते रहे। जब वे कविता पाठ करते थे तो उन्हें माइक की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। उनकी कविताओं का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ, जैक भी अनुवाद करते थे। इटली आदि देशों में उनकी मूर्तियां लगीं।  22 अगस्त, 2021 को COVID-19 से 87 वर्ष की आयु में हिर्शमैन की सैन फ्रांसिस्को में उनके घर में मृत्यु हो गई।

 

जैक हिर्शमैन की कविताएं

 

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

 

 न्यूयॉर्क, न्यूयॉर्क

                

बड़ा है ये

बदसूरत है

नफरत है मुझे इससे

पर ये प्यारा है मुझे

सुनो

मैं व्यस्त नहीं

मुझसे बातें करो

क्या सुन नहीं सकते तुम मुझे,

छोड़ नहीं सकता इसे मैं

मैं इसके लिए कुछ भी करूंगा

बहुत बड़ा है ये

मलिन है ये

पर कितना प्यारा है,

बहुत चाहता हूं मैं इसको

ठहर रहा हूं, मैं

कभी नहीं छोडूंगा

ये समाया है मुझमें,

बहुत निष्ठुर है ये,

नफरत है मुझे इससे

पर प्यारा है यह मुझे,

मेरा अपना है ये

मैं इसका मालिक हूं

मेरा अपना है ये

मैं बारम्बार कहता हूं

मुझे नफरत है जंग से,

प्यारा है ये मुझे,

ये घिनौना है

पर कमाल है यह

मुझे प्यार है इससे

मेरा वादा है

मैं नहीं जाऊंगा

खूबसूरत है ये,

बात करो मुझसे

क्या सुन नहीं सकते हो तुम

मेरा प्रेम

बहुत निष्ठुर है ये,

एकदम बकवास भी,

मुझसे बातें करो

बताओ मुझे

क्या कुछ करना चाहिए

कुछ भी

अद्भुत है ये

कभी बंद नहीं करूंगा,

मैं इसे प्रेम करना

बिल्कुल नहीं! बिल्कुल भी नहीं!

कभी नहीं! कभी भी नहीं!

कभी नहीं!

 

  1. गार्डेनिया

 

फर में लिपटी वो महिला खुद से बतियाती हुई टहल रही है 

 

और वो, द्वार पर गत्ते और टुकड़ों की गंध से भरा, बुदबुदा रहा है

 

और नशे में धुत वो आदमी, बड़बड़ा रहा है फुटपाथ पर,

 

चाइनीज़, गुलाबी प्लास्टिक थैली पकड़े

 

और वो गंभीर आदमी, बतिया रहा है लैंप पोस्ट से,

 

होटल के सामने वो जवान वेश्या,

मरे हुए अंगों की बदबू लिए

कामुकता से लिप्त मुहांसों भरे चेहरे वाली

खुद से चिड़चिड़ाहट में फुसफुसाती है कुछ

मुंह मसोस कर

बेतरतीब, विक्षिप्त, विरोधी, बेसुरी,

आनंदहीन, प्रेमहीन, कालविहीन,

अस्तित्व-विहीन,

दौलत की कीड़ों से कुतरे हुए,

काटे हुए चेहरे, अकेलेपन के सूचना-पत्र

दिखावे के चांदी के सिक्के

– साम्यवाद के कान पर

सबसे सुगंधित गार्डेनिया की पंखुड़ियां

और सुनाई देते उनके एक-एक अक्षर

 

  1. मानवीय अन्तःसंगीत

(टेरी गारविन के लिए)

 

ज्यों ही बारिश शुरू हुई

तेवरे होटल के नजदीक

वो दीवार से लगी

खड़ी थी

प्लास्टिक कप पकडे हुये

मैं एक सिक्का खोजता हुआ,

चला गया उसके पास

और गिरा दिया उसके कप में

वह गिर गया नीचे

उसके संतरी पेय के तले तक

मैंने झेंपते हुए उसकी ओर देखा

आंखें और खाल, बेहाल

और समय से पहले चांदी मिश्रित हुए

बाल, फिर मैंने कहा

मुझे माफ़ करना,

मेरे ऐसा सोचने के लिए

उसे चाहिए थी कुछ रोटी

‘हां जरूर’, वो बोली

और मुस्कुरायी, ‘मैं बस यही

थोड़ा सा बचा हुआ

पी रही थी’

और उसके बाद हंसते हुए हम

खड़े रहे एक साथ

निहारते रहे संतरी सरोवर में

डूबते पैसों के ऊपर

बारिश की बूंदों को झरते हुए

 

  1. शीतकालीन अयनांत

 

मैं शीतकालीन अयनांत

के दौरान बैंक गया

और चिल्लाया: जन्मदिन मुबारक हो

जोसेफ स्टालिन!

ये एक बैंक डकैती है

सभी फर्श पर लेट जाएं

आज मुझे दिलचस्पी है

मुनाफे में, इंसानों में नहीं

वक़्त है अब हम बैंकों में जाएं

जबकि हमारा रोयां रोयां है उनके पास

आशान्वित हूं कि नीचे आप सुन रहे हैं

यह एक क्रांति है।

 

  1. घर

 

(राष्ट्रीय आश्रयहीन संघ के लिए)

शरद ऋतु आ गई है

दरवाज़ों में, गलियों में,

चर्च की सीढ़ियों के ऊपर,

गत्ते के नीचे, फटे कंबल के अन्दर

और यदि भाग्यशाली हुये तो प्लास्टिक की बोरियों में

तिरस्कार भरे एक और दिन के बाद,

सोना,

ठिठुरना,

अलग-थलग, बंटे हुए, ग़रीब

बेरोजगार, रुंधे गले से घरघराते, गंदे

सर्द हड्डियों पर चमड़ी लपेटे हुये,

वो हम हैं, यू एस ए में वो हम ही हैं,

कठोर कंक्रीट का ठंडा तकिया,

कैसी आग? कहां कुछ पीने के लिए?

जल्द ही किसी दराज में अकड़े पड़े होंगे घृणित

पर किसे है परवाह?

कंपकंपी हमसे इतनी परिचित,

कि रूह तक कांपती है,

आखिरकार हमारे हाथ बंध गए मुट्ठियों में

मांगों के बाद दूसरे दिन,

जीभ बाहर लटकाये;

कुत्तों ने आज ज्यादा खा लिया और पड़े हैं

पलंगों के पायों के साथ, डकारते, पादते

ऐसे अस्पताल हैं, जहां उन्हें ले जाया जा सके,

वे घरों से बाहर निकलेंगे

और एक दिन निष्प्राण हो चुके हम को ही सूंघेंगे,

अपने भोजन और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध,

यहां अमेरिकी शहर में

गंदगी के टुकड़े बिखरे पड़े हैं

कंक्रीट है हमारा सूखा पसीना,

हमारे वाष्पित हुए रक्त से बना पुल;

शहर के एक हिस्से में, टेंडरलॉइन और ब्रॉड वे की

जगमगाती रोशनी—हमारी रक्त कणिकाएं बदल गई हैं विज्ञापनों में;

हमारी धड़कती-नब्ज की आवाज टेंगटेनगेंडेंग

काउंटरों पर जमा हो रहे सिक्कों की,

फोन बूथ में, बार्ट मशीन, टेंगटेनगेंडेंग

पार्किंग मीटर में, जटिल पिन बॉल,

सार्वजनिक शौचालय, टोल बूथ;

हमारी चमड़ी तब्दील हो चुकी है, डॉलर के बिलों में,

प्लास्टिक कार्ड, बैंक नोट ,

लैंपशेड कार्यकारी कार्यालयों के लिए, समाचार पत्र,

टॉयलेट पेपर;

हमारा दिल— खूनी राजकीय संस्था

एक साइड शो में किसी अनाड़ी की तरह भकोसता है

बन चुका है, शापितों का राष्ट्रीय सर्कस

अरे युद्ध सामग्री और अमानवीय अधिकारों की प्राणघातक व्यवस्था

जिसने लूट ली हमारी जेबें और प्रतिष्ठा तक,

अरे अपराधों के उपक्रम, हमें ही कहते हो अपराधी,

आतंकवाद के चिल्लाने से भयभीत हैं हम,

लालच ने हमारी ही जगहों से हमें कर दिया है बेदखल,

तुच्छ, युद्ध-व्यापारिक मानसिकता, जो हमें भ्रष्ट गणतंत्र की सफाई के लिए

किये गए सार्वजनिक आन्दोलन और सार्वजनिक पर्दाफाश की सजा देता है-

इस बार हम शहर की यहूदी बस्ती

या मुर्दाघर में नहीं खोएंगे,

इस बार हमारी संगठित आवाजों की टुकड़ियों में संख्या बढ़ रही है:

हम चाहते हैं कि खाली दफ्तर धूल फांकें!

हमें चाहिए, मध्यरात्रि से भोर तक के सिनेमा घर!

हम चाहते हैं कि चर्च खुले रहें चौबीसों घंटे!

उनका निर्माण हमने किया। वे हमारे हैं। हम उन्हें चाहते हैं!

किसी के दरवाजे पर नहीं, कचरे की बाल्टी हों गलियों में,

वाहनों का कोई और कब्रगाह नहीं चाहिए,

भूमिगत सीवर वाली हों मलिन बस्तियां

हम चाहते हैं सार्वजनिक आवास!

चूहा-बिलों के गड्ढे वाली पाईपलाइन, जलते हुए मलबों के ढेर, अब और नहीं

अब मुंह में बारिश की गंदगी नहीं,

नहीं चाहिए खाली कूड़े करकट, गिरते कचरे और टूटी ईंटों के दुःस्वप्न,

बाबाओं के प्रवेश द्वारों पर भ्रमित महिलाओं की चीखें,

फेंके हुए तिरपाल के नीचे दांत किटकिटाते और मरते बच्चे नहीं चाहिए

हमें चाहिए, सार्वजनिक आवास!

हम हैं तुम्हारी विक्षिप्त मानसिकता वाले युद्धों के दिग्गज,

बेरोजगारी में गुमनाम मजदूर,

युवा कारखाना; छुट्टे पैसों के भिक्षा में कुचली गयी उंगलियां,

पुराना कारखाना: व्यावसायिक लाभ वाली बीमार छाती से बाहर थूका गया बलग़म

बलात्कार के बदले सम्मान,

पर्याप्त नौकरी जीवन-यापन के लिए

निर्वासन और बेदखली के बजाय,

हमारा घर हो, हमारी जमीन हो,

मातृभूमि, सभी के लिए समान हो,

एक और सभी के लिए हो,

ना कि सिर्फ बरसाती फुटपाथ पर चलते

बैसाखी पर रोते, इस एक पैर वाले के लिये।

 

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

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