गुंजन उपाध्याय पाठक    अय्यारी    रात की छाती पर उग आते हैं दो पैने पंजे और दीवारों की जीभ पर रखे कुछ शब्द वक्त की पगडंडी पर साधते हुए रखती हूं पांव कि जले
            शचीन्द्र आर्य जनवरी 1985 में जन्में शचीन्द्र आर्य ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए (हिन्दी), बी. एड. और एम. एड. किया, सी.आई. ई., शिक्षा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
                        श्रीविलास सिंह     मुर्दों का टीला विरूपित है हमारे समय का चेहरा हमारी अशक्त रक्तवाहिनियों में लहू की जगह पिघले हुए कांसे ने ली है विषाक्त हो गया है हमारा मस्तिष्क सुदूर अतीत के अंधे
 अफ्रीका के सिर पर भी आसमान टंगा हैखूबसूरत छतरी सायहां भी देवता विरजते हैंपैरों की थापें नगाड़ों को थका देती हैंयहां भी ताने आसमान तक
विरोध के कवि शमशेर शम्भु बादल असंगति और रूढ़ि के विरोध की प्रवृति मनुष्य की बुनियादी प्रवृत्ति है। इसे मानवीय विकास की केन्द्रीय प्रवृति माना जा सकता
            शैलेन्द्र चौहान बिहार जब नहीं गया था बिहारतब भी विचरता था बिहार मेंइलाहबाद और बनारस के आगेनहीं बढ़े थे कदमपर मौजूद थे दर्जनों लेखक'धरती' के पृष्ठों परनागार्जुन,
     ओक्तावियो पाज (Octavio Paz) प्रथम जनवरी   वर्ष का द्वार खुलता है, जैसेअज्ञात के लिए सिरजी किसी भाषा का द्वार गत रात तुमने कहा थाकल हमें सोचने होंगे नए
चांद पर विजय ?? चांद दुनिया भर के कवियों का मनभावन रहा है, सूरज और चांद को लेकर अनेक मिथक कथाएं व्यापक हैं। चीन में बकायदा
          संजीव बख्शी की दस कविताएं चित्र  1 इस चित्र में पानी गिर रहा हैजो लोग चित्र में दीख रहे हैं वे भीगे हुए हैंउनके चेहरे और कपड़ों परपानी
         एडिना बर्ना की कविताएं  मेरी बेकरी रात पिछली मैं तंदूर में थीजहां धीमे- धीमे सिंक रही थी रोटीये तपती हुई रोटियाँसोती रहीं मेरे सीने पर औरउनकी कराहती