प्रिय कवि

कविता कृष्णपल्लवी


कविता कृष्णपल्लवी एक ऐसी आवाज हैं, जो बेबाकी से समाज के तथाकथित सभ्य समाज की सींवन उधेड़ती हैं। वे एक तरह से समाज कोइना दिखाती है। वैचारिकता तो अनेकों के पास होती है, लेकिन उस को कार्यन्वित करना, अपने किए पर डिगे रहना बहुत आसान नहीं हैं। कविता की आवाज, आज के सन्दर्भ में बेहद जरूरी है, उन्होनें फिलीस्तीन के लिए भी कार्य किया है।

 

(एक)

 

सुखी-सम्पन्न लोग

 

सुखी-सम्पन्न लोग अक्सर

अपने अकेलेपन की बातें करते हैं I

थोड़ी दार्शनिक मुद्रा में अक्सर

वे कहते हैं कि सबकुछ होते हुए भी

मनुष्य कितना अकेला होता है!

वे सड़क से रोज़ाना गुज़रते

कामगारों को बिना चेहरों वाली

भीड़ की तरह देखते हैं I

अपनी कार के टायर बदलने वाले

या घर की सफाई-पुताई करने वाले

मज़दूर को वे नाम से नहीं जानते

और कुछ ही दिनों बाद

उसका चेहरा भी भूल जाते हैं I

लेबर चौक पर खड़े मज़दूरों को देखकर

उन्हें लगता है कि देश की

आबादी बहुत बढ़ गयी है I

सुखी-सम्पन्न लोगों को आम लोगों से

हमेशा बहुत सारी शिक़ायतें रहतीं हैं I

वे उनके गँवारपन, काहिली, बद्तमीज़ी,

ज़्यादा बच्चे पैदा करने की उनकी आदत

और उनमें देशभक्ति की कमी की

अक्सर बातें करते रहते हैं I

सरकार के बारे में वे हमेशा

सहानुभूतिपूर्वक सोचते हैं और

कहते रहते हैं कि सरकार भी आख़िर क्या करे!

वे आम लोगों को सुधारने और उनके

बिगड़ैलपन को दूर करने के लिए

तानाशाही को सबसे कारगर मानते हैं I

सुखी-सम्पन्न लोगों को

बदलते मौसमों, पेड़ों और

फूलों के बारे में और नदियों-पहाड़ों के बारे में

बस इतनी जानकारी होती है

कि वे उनके बारे में बातें कर सकें

जब उनके पास करने के लिए

कोई और बात न हो.

सुखी-सम्पन्न लोग अपनी छोटी सी

सुखी-सम्पन्न दुनिया में

पूरी उम्र बिता देते हैं

और अपने दुखी होने के कारणों के बारे में

कुछ भी नहीं जान पाते I

सुखी-सम्पन्न लोगों को

इस बहुत बड़ी दुनिया के आम लोगों की

बहुत बड़ी आबादी के जीवन के बारे में

बहुत कम जानकारी होती है

और दुनिया की सारी ज़रूरतें

पूरी करने वाले मामूली लोग

उनके ज़ेहन में कहीं नहीं होते

जब वे मनुष्यता के संकट की बातें करते हैं I

सुखी-सम्पन्न लोग मनुष्यता से अपनी दूरी

और उसके कारणों के बारे में

कभी जान नहीं पाते

और अपने सुखी-सम्पन्न जीवन के

अनंत क्षुद्र दुखों के बारे में ही

सोचते हुए और रोते-गाते हुए,

ध्यान और योग और विपश्यना करते हुए,

नियमित हेल्थ चेकअप कराते हुए

और मरने से डरते हुए

एक दिन, आख़िरकार मर ही जाते हैं

सचमुच!

 

**

(दो)

 

कमज़ोर लोग

 

मज़बूत संरक्षण और सुविधाओं में पले हुए लोग

अक्सर कमज़ोर हो जाते हैं I

कमज़ोर लोग

हालात और लोगों से

बहुत अधिक उम्मीद करते हैं I

वे हमेशा विपरीत परिस्थितियों का

रोना रोते हैं I

वे सफलता की गारंटी हासिल करने के बाद ही

किसी काम में हाथ लगाना चाहते हैं

और अपनी हर विफलता के लिए

परिस्थितियों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं I

कमज़ोर लोग हमेशा

इतिहास के क़ैदी होते हैं

और भविष्य से कभी भी उनकी

दोस्ती नहीं हो पाती I

कमज़ोर लोग

दुनिया को बेहतर बनाने के बारे में नहीं,

अपने मनोनुकूल होने के बारे में

सोचते हैं I

कमज़ोर लोग आँधियों में उड़ने की आदत को

पागलपन समझते हैं I

वे हमेशा सुरक्षित घोंसलों में रहना चाहते हैं और

तूफ़ानी दिनों में उनके तबाह हो जाने की चिंता में

दिन-रात घुलते रहते हैं I

कमज़ोर लोग सिर्फ़ ख़ुद से

प्यार करते हैं

और लोगों से सिर्फ़ अपेक्षा करते हैं I

कमज़ोर लोग हुकूमत के जूतों तले

जीने के आदी होते हैं,

और मौक़ा मिलते ही

परले दरज़े के ख़ुदगर्ज़, बेरहम, दग़ाबाज़

और कमीने साबित होते हैं!

**

 

(तीन)

 

सुसंस्कृत लोग

 

बहुत सुसंस्कृत बौद्धिक लोग

चौक पर चौधरी की गरमागरम

मिर्ची और आलू-प्याज की पकौड़ी

नहीं खाते I

जलेबी, लवंगलता और समोसे का ख़याल

अगर सपने में भी आ जाये

तो जागकर सुगर, कोलेस्ट्रॉल आदि की चिन्ता में

मरने-मरने को हो जाते हैं I

वे रामभरोसे के भरपेट्टा भोजनालय में

तख्त पर बैठकर दोपहर या रात का

खाना खाने की सोच भी नहीं सकते

और असलम के ढाबे की

बड़े की बिरयानी के बारे में तो सोचने मात्र से

उनका हाजमा तबाह हो जाता है I

वे दोने में एक्स्ट्रा पानी माँग-माँगकर

न तो पानी बताशा खाते हैं न चाट,

और न पत्ते पर रबड़ी चाटते हैं I

और बरफ चुस्की की ओर तो वे

ताकना भी गुनाह समझते हैं I

वे यहाँ फुटपाथ पर इस बेंच पर बैठकर

चाउमिन खाने या मसाले वाली चाय पीने भी

नहीं आते जहाँ लेबर चौक के

मज़दूरों की भीड़ लगी रहती है I

इस मज़दूर बस्ती के मैदान में लगने वाले

दशहरा मेले में चरखी पर बैठकर

बच्चों के साथ बच्चा बन जाने के बारे में

सोचना भी वे या तो पागलपन मानते हैं

या बेहूदगी I

वे हमेशा धीर-गंभीर और चिन्तित रहते हैं.

बस उनका चित्त स्त्रियों की उपस्थिति में यदा-कदा

चंचल हो जाया करता है और तब थोड़ी देर को

देश-समाज की चिन्ता छोड़ वे

कुछ दूसरे उद्यमों में संलग्न हो जाते हैं I

ज्ञान और संस्कृति के आलोक से दूर

अँधेरे में जीने वाले निहायत मामूली लोगों की तरह

कुछ भी नहीं करते

बहुत सुसंस्कृत बौद्धिक लोग I

उनकी आवारगियाँ भी बहुत

सुरक्षित-संयमित-सुसंस्कारित होती हैं

और विद्रोह भी बेहद अनुशासित

और नफ़ीस होते हैं I

मुझे भी उन्होंने बहुत समझाया कि

कविता की गहन सौन्दर्यानुभूति

और उसमें जीवन के शाश्वत मूल्यों की

बसाहट के लिए

सुसंस्कृत बनना होगा और

अपनी तमाम बुरी आदतों से,

जैसे कि मुँहफटपन से, हरदम सच बोलने से,

शक्तिशाली और प्रभावशाली लोगों की

आलोचना करने से,

सबकी फटे में टाँग अड़ाने से,

बहुत आशावादी होने से,

असभ्य और झगड़ालू लोगों की संगत से,

अस्वास्थ्यकर और गँवारू खानपान की आदतों से

और हद दर्जे के चटोरेपन से

छुटकारा पाना ही होगा !

लेकिन मैं अभागन अपनी सड़कछाप आदतों से

पिण्ड न छुड़ा सकी,

ख़ुद को भव्य अकादमियों, सभागारों और

बड़े लोगों की संगत की आदी न बना सकी I

इसतरह यशस्वी प्रगतिशील बौद्धिक

बनते-बनते रह गयी,

अपना करियर ख़ुद ही बर्बाद कर लिया,

महाकवि बनने की संभावनाओं का गला

अपने हाथों से घोट दिया I

**

 

(चार)

यशस्वी लोग

 

ये यशस्वी लोग हैं

साहित्य की लकदक दुनिया के सम्भ्रान्त नागरिक,

बहुप्रशंसित, बहुपुरस्कृत, बहुचर्चित,

अतिसम्मानित!

अमरत्व के पारपत्र के लिए ये लोग धैर्य के साथ

न जाने कब से लाइन में लगे हुए हैं!

इनके बीच जाना तो अपना विवेक

और आलोचना के औजार

छोड़कर जाना !

यहाँ परस्पर प्रशंसा की भाषा ही

मान्य है!

यहाँ ताक़त की पूजा के

कर्मकाण्ड और सत्ता को प्रसन्न करने के

अनुष्ठान होते हैं!

यहाँ यज्ञोपवीत के ऊपर लाल वस्त्र धारण करके

संविधान की ऋचाओं का

पाठ होता है और

बुर्जुआ जनवाद के प्रेत जगाये जाते हैं!

इन मूर्तियों को भूले से भी कोंचना मत!

ये रेत से बनी हैं!

भरभरा कर गिर जायेंगी!

**

 

(पाँच)

 

मज़बूत लोग

 

जो बहुत मज़बूत लोग होते हैं

वे शुरू से ही ऐसे नहीं होते I

कुछ समय की ठोकरें

और कुछ ज़रूरी लड़ाइयाँ

अपने साँचे में ढालकर

और आँवे में पकाकर

उन्हें मज़बूत बनाती हैं I

मज़बूत लोग भी कुछ वक़्तों में

और कुछ मामलों में

एकदम मामूली इंसानों की तरह

कमज़ोर हो सकते हैं I

मज़बूत लोग उसूली मामलों में

कभी भी नरम नहीं पड़ते

लेकिन उनके भीतर

उदासी, दुखों, स्मृतियों और प्यार की

जो नम और नरम ज़मीन होती है

और वही उनकी मज़बूती को अभेद्य बनाती है

और साथ ही मानवीय भी I

कभी हो सकता है कि

कमज़ोर भी पड़ जायें

कुछ विरल मानवीय क्षणों में

मज़बूत लोग

लेकिन वे कभी तुच्छता को

अपना शरण्य नहीं बनाते हैं,

न ख़ुद को धरती का केन्द्र समझते हैं,

न कभी ताक़त के आगे

घुटने टेकते हैं I

मज़बूत लोग ‘न दैन्यंपलायनम्

के सूत्र के मूर्त रूप होते हैं I

मज़बूत लोगों के पास

बेहद विरल क्षणों के लिए

कुछ आँसू भी होते हैं

जिन्हें वे अपने लिए कभी ख़र्च नहीं करते I

**

 

 

परिचय:

 

विगत ढाई दशकों से भी अधिक समय से क्रान्तिकारी वाम धारा से जुड़ी राजनीतिक ऐक्टिविस्ट का जीवन।

सम्प्रति हरिद्वार में स्त्री मजदूरों के बीच काम और देहरादून में सांस्कृतिक सक्रियता ।

बरसों कविताएँ छिटफुट लिखने और नष्ट करने के बाद 2006 से नियमित कविता-लेखन ।

हिन्दी की अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित ।

नेपाली, मराठी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और फ्रेंच में कुछ कविताएँ अनूदित ।

एक संकलन ‘नगर में बर्बर’ वर्ष 2019 में परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित ।

अन्वेषा‘ वार्षिकी 2024 का सम्पादन किया जो काफ़ी चर्चित रहा ।

……..

 

 

 

Post a Comment