
मेरी बात
यूं तो बहुत सी बातें हैं, जो मुझे करनी चाहिए। सबसे ज्वलन्त तो गाजा की तकलीफ दायक चित्र हैं, जिनका वैश्विक राजनीति कोई हल ही नहीं निकाल पा रही है, युवाओं की समस्या है जो बेरोजगारी और गलत प्रणाली के बीच फंसें हैं, किसानों को हम भूले नहीं है, फिर भी हम बात सिर्फ कविता की कर रहे हैं। लेकिन कविता में भी अनेक प्रखर स्वर हैं जो आवाज उठा रहे हैं, मैं अपनी बात उन्हीं के माध्यम से रख रही हूं। प्रिय कवि खण्ड में कविता कृष्णपल्लवी हैं, जो बेबाकी से जड़ हुए समाज को आइना दिखा रही है। कविता के नाम पर खंड पुलेत्सेय जी हैं, जो साफ गोई से कहते हैं, लटे उड़ने से बसन्त नहीं आता। समकालीन कविता तीन प्रखर नाम हैं, विपिन चौधरी, भवेश दिलशाद और रूपेश चौरसिया। कवि अग्रज खंड में हम पुराने खजाने से मिला रेपा की कविताएं ला रहे हैं, जिन्हे अजेय के केलांग ने प्रस्तुत किया है।
आशा है यह कविता अंक पसन्द आएगा
शुभकामनाओं सहित
रति सक्सेना