कविता के बारे में

मराठी कविता

हर्षदा सुंठणकर
हिंदी अनुवाद- डॉक्टर स्वाती दामोदरे

 

१)कपड़े सुखाती औरत

 

शामिल रहता है
औरत का कमाल का व्यवस्थापन
कपड़े सुखानें जैसे छोटेसे काम में भी

 

वह कपड़े उल्टे कर
वैसे ही सुखातीं है धूप में
कड़ी धूप का सामना करना हो
तो बाहरी दिखावें के रंगों से
ज़्यादा जरूरी होती है
अंदरूनी मजबूती
यह सीख अनुभवों से
पक्की हो गई होती है दिमाग़ में उसके

 

सुखानें के पूर्व
एक-एक गिला कपड़ा बाल्टी से उठाकर
झटक देती है वह,
ताकि सरल हो जाएं उसकी सलवटें
गैर-जरूरी चीज़ों को झटककर
बातों को सही समय पर सरल बना देना
जानती है सिर्फ वही

 

धूप में
सबसे सामने पहली डोरीपर,
वह सुखाती है
घर के, पुराने कपड़े
घर के कपड़े बिना शिकायत
मजबूती से संभालते है काफी कुछ,
तभी तो नएं कपड़े
इतराते घूम सकते हैं बाहर
इस सच को
उससे ज्यादा कौन बेहतर समझ पाया है ?

 

सबसे पीछे की डोरी पर
वह सुखाती है
पति के शॉर्टस् , बच्चों के अंतर्वस्त्र वगैराह
दूर से उसकी गैलेरी देखनेवाला
कभी न देख पाएं कुछ चीज़ों को
इसकी पूरी सावधानी बरतती है वह

 

और ख़ुद के अंतर्वस्त्र ?
उन्हें तो वह छिपा देती है
बाकी कपड़ों के नीचे
सूखनें से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है
उन का छिपें रहना
यही सीख मां ने दी थी उसे
आगे यहीं सिखाएंगी वह
अपनी बिटिया को भी

 

इतना सबकुछ सोच लेती है औरत
कपड़े सुखाने जैसे अदद काम में
और फिर भी
“क्या करती हों?” के ज़वाब में
कह देती है की
“कुछ नहीं ! घर पर ही रहती हूं !”

 

२) मीरा

 

जब पहले से ही तय है
तुम्हारी राधा और रुक्मिणी,
तो मेरे लिए शेष है
सिर्फ एक ही विकल्प की मीरा बन जाऊं

 

ऐसे मे मेरे हिस्से मे
विष तो आएगा यह मानकर
मै पी रही हूं दर्द के घूंट

 

पर यह तो तय है ,
मै तुम्हे हरगीज नही बताऊंगी
की जब मीराने विष पिया था
तो उसके प्रभाव से बचाने का
उपाय कृष्ण ने ही किया था …….

 

३)इश्तिहार

 

इश्तिहारो ने हमे बताया,
“अपना टेस्ट डेव्हलप करो!”
हम हरी पत्तेदार सब्जीया छोड़कर
आलू फ्लॉवर खाने लगे
फिर उन्हे भी छोड़कर
पनीर बेबीकॉर्न मशरूम
फिर उन्हे भी छोड़कर
पास्ता पिझ्झा बर्गर
फिर उन्हे भी छोड़कर
चायनीज थाई ऐसा बहुत कुछ

 

इन व्यंजनो की इस भीड मे
खो गयी हमारी जीभ !

 

इश्तिहारो ने हमे बताया
“खूबसुरत दिखो ”
फिर हमने मेकअप किया
क्रीम लोशन्स शाम्पू कंडिशनर लगाये
सीधे बालो को घुंगराला किया
और फिर से सीधा

 

अब भूल ही गये है
अपना असली चेहरा

इश्तिहारों ने हमे बताया
“फिट रहो ”
फिर हमने हेल्थ ड्रिंक पीएं
शुगर फ्री का प्रयोग किया
प्रोटीन विटामिन की गोलियां खाई
जिम गये
स्पा के लिए भटके
जीरो फिगर के लिए सबकुछ किया,

 

अब तो जैसे बंद ही हो गया है
शरीर मे प्राकृतिक रूप से पेशी बनना

 

इश्तिहारो ने हमे बताया
“टेक्नोसेवी बनो! ”
टेप रेकॉर्डर छोड़ हमने वॉकमन लिये
फिर उन्हे छोड़ आयपॉड
टीव्ही छोड़ एलईडी लिए
फिर उन्हे छोड़ थ्रीडी
कम्प्युटर छोड़ लॅपटॉप लिए
फिर उन्हे छोड़ टॅब
लँडलाईन छोड़ मोबाईल लिये
और फिर उन्हे भी छोड़ स्मार्टफोन

 

अब इस भीड़ मे

आदमी ही हो गया है आंखों से ओझल

 

इश्तिहारो ने हमे बताया
“ग्लोबल बनो !”
फिर हम गाव से शहर मे आये
देश छोड़ विदेश गये
पृथ्वी से मंगल गए
अब सोच रहे है आकाशगंगा भी बदले

 

सवाल सिर्फ ये है ,
कभी वापस लौटना चाहा
तो क्या हम खोज पाऐंगे अपनी जड़ें?…..

 

‘कपडे वाळत घालणारी बाई’ हा कविता संग्रह ग्रंथाली प्रकाशनातर्फे प्रसिद्ध.या संग्रहास कै. यशवंतरावजी चव्हाण साहित्य पुरस्कारासह मानाचे १३ पुरस्कार.
याशिवाय महाराष्ट्र साहित्य परिषदेचा प्रतिष्ठेचा सुनीताबाई गाडगीळ नवोदित कवयित्री पुरस्कार प्राप्त.

विश्व मराठी साहित्य संमेलन, अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन याशिवाय महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगड, गोवा, सीमाभाग अशा अनेक ठिकाणच्या कविसंमेलनात निमंत्रित. कवितेची अभिनेत्री मधुराणी गोखले यांच्याकडून चित्रफित प्रसिद्ध. ‘ABP माझा’, सह्याद्री, IBN लोकमत आदी वाहिन्यांवर कवितावाचन.
निवडक कवितांच्या अभिवाचनाचे/सादरीकरणाचे प्रयोग. मौज, दीपावली, हंस, अंतर्नाद, कवितारती , सकाळ, तरुण भारत सह विविध दिवाळी अंकातून गेली २० वर्षं कविता प्रसिद्ध

 

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