मेरी बात
प्रिय मित्रों
वर्ष का अन्त है, कृत्या ने पूरे बीस साल पूरे कर लिए। बहुत बार लगा कि यह यात्रा रोकनी चाहिए, लेकिन मेरा दुनिया भर की कविता पढ़ने का लालच इस यात्रा को जारी रखे हुए है़। कभी साथी मिलते हैं, कभी “एकला चलो रे” की स्थिति आ जाती है़ कभी मन थकता है तो कभी देह। लेकिन जुनून इतना है कि जब सर्जरी के लिए गई तो चार अंकों को तैयार करके गई़़। कविता मेरे लिए ही नहीं, न जाने मेरे जैसे कितनों के लिए थेरापी का काम करती है। कृत्या के अंक तैयार करते हुए David Proskauer का खत मिला है, जिसमें उन्होंने लिखा कि वे अमेरिका के किसी हेल्थ सेंटर में रहते हैं , वे बाय पोलर बीमारी से ग्रस्त हैं, उनके कमरे रहने वाला मिर्गी का रोगी है, मुझे David Proskauer के खत को पढ़ कर लगा कि इस व्यक्ति को विषम परिस्थितियों में भी कविता सहारा दे रही है, इससे बड़ी कविता की शक्ति क्या होगी।
बस यही सोच कर मैं इक्कीसवें वर्ष भी कृत्या चला रही हूँ
आप लोगों की शुभकामनाएं आवश्यक है
रति सक्सेना