मेरी पसन्द

अनवर सुहैल की कविताएँ

 

एक

 

तुमने पूछा तो यूँ पाँव थम से गए
हम तो चलते रहे मगर अब थक गए

पहले भी  करते थे कितना सफ़र
राह में मुश्किलें आ ही जाती थीं
पांव ज़ख्मी हुए, धूप भी लग रही
प्यास भी लग रही, भूख भी लग रही
हाँफते-हाँफते, फिर भी चलते रहे

ये सफ़र खत्म हो या कि हम न रहें
हम जिन्हें अब किसी को ज़रूरत नहीं
कितना बेकार सा है हमारा वजूद
ज़िन्दगी की है चाहत मगर क्या करें
कोई है जो हमारी भी रह तक रहा
और हम भी पहुंचने की कोशिश में हैं
कितना मुश्किल सफ़र, अंतहीन राह है
मंज़िलों तक पहुंचने की बस चाह है

कोई हमदर्द नहीं कोई रहबर नहीं
सिर्फ़ हिम्मत है जो तोड़ देती थकन
एक उम्मीद है, एक अरमान है
किसी तरह पहुंच जाएं अपने वतन।

 

दो

 

यदि हम बच गए
तो भी क्या वाकई बचे रह पाएंगे

मंच पर मृत्यु का दृश्य सजा है
एक-एक कर कम होते जा रहे
कांधा लगाने वाले और रोने वाले भी
गिनती के पात्र हैं और नेपथ्य में सूत्रधार
नाट्यशाला के दर्शक भी तो
एक-एक कर लुढ़क रहे देखो

 

मौत का डर हर तरफ है
भूख से या बीमारी से
दोनों हालात एक जैसे हैं
जीवित लोग जिनके घरों में
दो महीने का राशन मौजूद है
वे सिर्फ अपनों को
बचा ले जाने की जुगत में हैं

 

ऐसे निर्मम समय में
पूर्णतः सुरक्षित कुछ लोग
जो चाह रहे इस आपदा में
भूख, बीमारी के अलावा
नफ़रत भी बन जाए एक कारण
मौत तो हो ही रही है
एक कम, एक ज़्यादा
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।।।

 

तीन

 

काहे के बुज़ुर्ग
काहे के सयाने
काहे के सम्माननीय
काहे के आदरणीय-फादरनीय

 

हम नहीं मानते
हम कुछ नहीं मानते
हम खुद तय कर रहे आजकल
किसे माना जाए बुज़ुर्ग
किसका क्या जाए सम्मान
कौन है आदरणीय और सयाने

जो कुछ भी तय कर चुके हो तुम अब तक
हम उसे खारिज करते हैं सिरे से
और हमारे लोग दिन-रात
अपनी लैब में जांच-परख रहे हैं
आप मत सोचो हमारे लिए
बहुत सोच चुके अब तक
जान लो कि हमारे पास अपने विचारक हैं
अपने प्रचारक हैं
अपने समाज सुधारक हैं

 

और जब कुछ भी स्पष्ट न हो तो
तोड़-फोड़, मार-काट के ज़रिये
हम कर लेते हैं टेस्ट खुद ही
कि कौन कितना बड़ा तोप है

 

अमन-चैन
भाईचारा
गंगा-जमुनी संस्कृति
क्या कहा?
फिर लगे देने दुहाई
क्या फिर तुम्हारी शामत है आई?

 

चार

 

हम सिर्फ इसलिए
तुम्हें करते हैं खारिज
भले से होगे तुम विद्वान
लेकिन आखिर तुम हो एक मुसलमान

 

हम सिर्फ इसलिए
तुम्हें धिक्कारते हैं
भले से होगे तुम हुनरवान
लेकिन आखिर तुम हो एक मुसलमान

 

हम सिर्फ इसलिए
तुम्हें मिटा देना चाहते हैं
भले से होगे तुम महान
लेकिन आखिर तुम हो एक मुसलमान

 

इतने बरसों से गुपचुप
कभी-कभी शोर-शराबे के साथ
हम कर रहे थे तैयारियां
और बर्दाश्त करते रहे
मस्जिदों से गूंजती अजानों को
‘मुस्तफा जानो रहमत पे लाखों सलाम’ के
गला फाड़ तरानों को
हर नगर के बाहर बने
चौहद्दी घिरे कब्रिस्तानों को
और नहीं करेंगे बर्दाश्त
होना होगा तुम सभी को परास्त

 

हम सिर्फ तुम्हारा ही
नहीं करना चाहते इलाज
साथ-साथ हम खोज रहे उन्हें
जो हैं गंगा-जमुनी तहज़ीब के पैरोकार
साथ-साथ इन लोगों का भी
करना होगा उपचार
तब तक लोगों होशियार!!!

 

पांच

 

अब तक वे निकलते थे
इनकी-उनकी, ऐरे-गैरों की
महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए
किसी रेहड़ की तरह घर से हँकाल कर
ट्रेक्टर,जीप या ट्रकों में ठूंस-ठांसकर
ले जाया करते थे अपने ही बीच के दल्ले
कंघी से बाल संवारते, मोबाइल पर बतियाते
कन्फर्म करते आकाओं को —-
जितना कहा था उससे ज्यादा ही हैं हुजूर

 

इस बार जब वे निकले अपने लिए
उनके अन्दर एक नए इंसान ने अचानक जन्म लिया
उन्हें यकीन हो गया कि इस तरह
खालिस अपने लिए भी निकला जा सकता है
इससे पहले जाने कितनी पीढ़ियों से
हर तरह के जुलूस-प्रदर्शनों में लेते रहे हैं हिस्सा
तब ऐसी कोई बात उन्हें नज़र नहीं आई थी
तख्तियां तब भी उठाये चलते थे वे
लेकिन कभी जानने की कोशिश नहीं की
कि इनमें लिखा क्या है?
नारे तब भी लगाते थे कंठ फाड़ कर
लेकिन कितने मुर्दा नारे हुआ करते थे वे
झंडे-बैनर उठाये रैलियों का हिस्सा बने
उन्हें कहाँ मालूम हो पाता था
उन सौदेबाजियों के बारे में
कि हुकूमतें हिल जाया करती हैं
या कि नए समीकरण की संभावनाएं बनने लगती हैं

 

इतने बरसों की जुलूस-यात्राओं का
तजुर्बा आखिर काम आ ही गया
हाँ, एक अंतर यह दिख रहा है
उन जुलूसों के दौरान प्रशासन सुस्त रहता था
लेकिन जब वे खुद अपने लिए निकले हैं
तो प्रशासन की भृकुटी तनाव में है—
अरे ये तो गालियाँ और लाठियां खाने के अभ्यस्त हैं
इन्हें तोड़ने के नए औज़ार गढ़ने होंगे
ये तो दूसरों के लिए पंक्तिबद्ध होते थे
क्या वाकई कलजुग आ गया है?
पूछते हैं वरिष्ठों से और वरिष्ठ अपने भी वरिष्ठों से
हर कोई निरुत्तर है
जाने कितने मिथक टूट रहे हैं
जाने कितने कीर्तिमान बनने की राह में हैं….

संपर्क : 990798108
sanketpatrika@gmail.com

 

हिन्दी के वरिष्ठ कवि, जो बेहद खामोशी से लिखते रहते हैं, हालांकि कर्म से वे कोयला खदान से जुड़े हैं।

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