
मेरी बात
मेरी बात
बहुत दिनों से यह सवाल था कि क्या साहित्यिक विधाएं कुछ समूहों तक सीमित रह जाएंगी? या जन सामान्य के पास पहुंच भी पाएंगी? लेकिन कुछ दिनों पहले उन युवकों के साहित्यिक प्रेम से रूबरू हुई, जो पढ़ते हैं और अच्छी किताबों का चयन करते हें। संवाद भी करते हैं, समाज और देश की समस्याओं से सरोकार भी रखते है। ये तीन ताल नामक समूह ग्रुप के सदस्य हैं, जो आज बेहतरीन प्रस्तुति है। जब इनके कविता पाठ का सिलसिला चला, तो मैंने पाया कि उनकी शैली भिन्न है, लेकिन वे बड़ी शिद्दत से समाज और भावनाओं से रूबरू हो रहे हैं। उनमें से अधिकतर कभी छपे नहीं, और छपने की कोशिश में भी नहीं थे, क्यों कि वे साहित्य में अनुरागवश लिख रहे थे। इस बार समकालीन कविता सेक्शन में इन्हीं लीक से परे कवियों की कविता, जो नया अन्दाज और सहज शैली में हैं।
मृदुला गर्ग जी प्रसिद्ध लेखिका है, लेकिन उनके गद्य में भी जो रवानगी है, वह उन्के कवि हृदय की झलक है, तो अग्रज सेक्शन में उनकी कविताएं हैं। प्रिय कवि के लिए १६ साल की युवा कवियों को लिया है, जिनमें से एक दिल्ली और दूसरी हंगरी की हैं। वे अंग्ेजी में लिखती हैं, मुझे उनकी कविता बेहद परिपक्व लेकिन पूरी तरह से ईमानदार लगीं, जो न के परतों को खोलतीं हैं।
कभी कभी बमों को बनाने वाले, और उन्हें बुझाने वाले समाज से उतना ही सरोकार रखते हैं, जितना कि कोई साहित्यकार रखता होगा। इसीलिए इस सेक्शन में बम निरोधक दस्ते में काम करने वाले लगन हैं।
आशा हे कि आपको नया अंक अच्छा लगेगा
शुभकामनाओं सहित
रति सक्सेना