मेरी बात

रात जाने लगी तो आसमान बोला..शुभयात्रा
उसके शब्द सुनहरे रंगों में बदल गए,

तने ने मुस्कुरा कर सावन से पूछा.. कैसे हो?
लाल पीले शब्द फूल बन कर खिल उठे

फूलों ने मुँह खोला ही था कि शब्द खुशबू बन फैल गए
शब्द रंग, शब्द खुशबू, शब्द केनवास, शब्द शब्द, कुछ और भी है शब्दों के अलावा?

शब्द मन, शब्द ब्रह्म, शब्द ब्रह्माण्ड, लेकिन ये शब्द कभी घुँघरू की तरह घनघनाते हैं तो कभी एक दम चुप्पी साध लेते हैं। शब्द कहाँ घोड़े जैसे टटकारते हैं और कहाँ शंख से शान्त बैठ जाते हैं,मालूम ही नहीं पड़ता। कभी जख्म से खून की तरह गिरतें हैं तो कभी जंजीर बन जिन्दगी से लिपट जाते हैं

शब्द आम आदमी की आवाज होने चाहिए, जिसे चकाचौंध भरी दुनिया ने चुप कर दिया है, आज हम वही सुन पा रहे हैं जो प्रायोजित होता है, हम वहीं करते हैं, जो हमसे करवाया जाता है और वहीं सुनते हैं जो हमे सुनाया जाता है। जब से हमने शब्दों की टंकार को जेहन में घुसने से रोका है तब से शब्द कविता बनने से इंकार करने लगे हैं। और जब से हम कविता से दूर जा रहे हैं, हम जीना भूलते जा रहे हैं।

कविता के करीब रहने का एक नाम कृत्या है, जो वर्षों से साधनारत है।

आशा है कि प्रस्तुत अंक में कविताएं हमे नए क्षितिज से रूबरू करवाएंगी।

शुभकामनाओं सहित

रति सक्सेना

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