मेरी बात

बल्जेरियन कवयित्री ब्लागा दिमित्रोवा का कहना है कि

हर कविता को ऐसे लिखो
गोया कि यह तुम्हारी आखिरी कविता है
यह सदी, जो कि प्रदूषण से भीगी है
आतंकवाद से कंपित है
उड़ती जा रही है सुपर सौनिक गति से,
अचानक चली आने वाली मौत
तुम्हारे हर शब्द को
जेल की दीवार पर टंगी
आखिरी पहचान देगी
तुम्हें अधिकार नहीं कि मीठा झूठ बोलो
या बचकानी खिलवाड़ करो
तुम्हारे पास कोई वक्त नहीं
गलती सुधार का
हर कविता को लिखो
संक्षेप में, कठोरता से
अपने खून से
गोया कि यह आखिरी है

निसन्देह यह कविता का निकष है, यानी कि लेखन सिर्फ तात्कालीन समस्या से गुजर भर जाना नहीं है, अपितु समस्याओं की जड़ों में पैठ कर भविष्य तक होने वाले प्रभावों का आकलन कर एक एक शब्द को सघन कर के लिखना है।
हम कितने ही युद्धों से गुजरे हैं, महामारी की मार को सहते रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की कविता निकल पा रही हैं कि हम सचेत रहें?
यदि नहीं, तो कोशिश चालू रहनी चाहिए

इस अंक में हम Fernando Rendón की कविताओं के हिन्दी अनुवाद को प्रिय कवि के अन्तर्गत प्रस्तुत कर रहे हैं। ये कविताएं मूल रूप में स्पेनिश में लिखी गई हैं, अपनी विशेष संरचना के कारण आकर्षित करती हैं। हमारे अग्रज विभाग में कालीदास के ऋतु संहार से ग्रीष्म काल को प्रस्तुत कर रहे हैं। कविता के बारे में विभाग में अजय दुर्जय से संवाद प्रस्तुत है।
समकालीन कविता में हेमा दीक्षित, अनन्त आलोक, राहुल खंडेलवाल जैसे युवा कवियों के साथ स्वदेश कुमार सिन्हा जी की कविताएं हैं।

आशा है कि आपको यह अंक पसन्द आएगा

रति सक्सेना

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