हमारे अग्रज

पेरुमाल मुरुगन की कविताएं 
 
अनुवादक: मोहन वर्मा
 
पेरुमाल मुरुगन से हम सब परिचित हैं ही, उनकी लेखनी को बन्द करने की कोशिशों के बावजूद लेखक जिस तरह से कविता की ओर उन्मुख हुए उसकी जानकारी कम है। हमारे समय के वरिष्ठ कवि आलोचक मोहन वर्मा ने उनकी अनेक कृतियों का अनुवाद किया। है। एक उपन्यास कार की कविताओं से गुजरते हुए हम लेखक के मन के अन्तर्जगत को समझ सकते हैं। कवि परिचय के लिए अनुवादक का नोट महत्वपूर्ण है।
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प्रस्तुत कविताएं HarperCollins पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं।
 
 
अनुवादक का  नोट 
 
पेरुमाल मुरुगन तमिल के वरिष्ठ उपन्यासकार एवं कवि हैं। सन 2010 में जब उनका उपन्यास ‘मादोरुबागन’ प्रकाशित हुआ तो साहित्य जगत ने उसका उसी प्रकार स्वागत किया जैसे उनके पूर्व उपन्यास और कविता संग्रहों का किया था। परन्तु चार वर्ष बाद जब ‘मादोरुबागन’ का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘वन पार्ट वोमैन’ प्रकाशित हुआ तो उसको लेकर एक बवंडर उठ खड़ा हुआ। मुरुगन एवं उनके परिवार को तथाकथित धर्म संरक्षकों के हाथों जो अपमान और यंत्रणा सहनी पड़ी उससे उद्विग्न होकर मुरुगन ने घोषणा की कि एक लेखक के रूप में वह मर चुके हैं। परन्तु मुरुगन के लिए ऐसा करना सम्भव न था। सन 2015 -16 के दौरान उन्होंने अनेक कविताएं लिखीं जो 2016 में ‘कोषैयिन पडालकल’ शीर्षक से प्रकाशित हुईं। यह कविताऐं उनकी उस समय की मनोस्थिति की दस्तावेज़ हैं। अनिरुद्धन वासुदेवन के द्वारा इस संकलन का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘सॉन्ग्स ऑफ़ ए कॉवर्ड’ शीर्षक से 2017 में प्रकाशित हुआ था। मैंने जब इस संकलन की कविताओं को पढ़ा तो बहुत ही विकल हो उठा और इन कविताओं को हिंदी पाठकों तक पहुंचाने के लिए व्यग्र भी। यह बीड़ा उठा तो लिया परन्तु तुरंत ही यह कार्य एक बड़ी चुनौती बन गया। प्रश्न था मुरुगन की वेदना, विकलता और विवशता को अनुवाद में उतार कर लाना। यह तभी संभव हो सकता था जब मैं मुरुगन की उस समय की मनोस्थिति के साथ स्वयं को एकीकार कर लूं। यह अनुवाद ‘एक कापुरुष के गीत’ शीर्षक से हार्पर कॉलिंस द्वारा गत वर्ष प्रकाशित हुआ था। यह पांच कविताएं उसी कविता संग्रह से ली गयी हैं। – मोहन वर्मा
 
 
 
एक विशाल जल धारा
 
 
अनाम, अनंत
अगम्य अरण्य
 
 
कुलांचे भरता
अकेला मेमना
उछलते, दौड़ते
बनाता है नई राहें।
 
 
रास्ते में अचानक
आ गई जल धारा को
पार करने
दौड़ कर
लगाता है छलांग
 
 
हो सकता है
नदी के पार जाकर
मेमना मुड़कर
उसे अचरज से देखे
 
 
पर यह भी तो हो सकता है
नदी को लांघते
वह डगमगा जाए
गिरे और मर जाए।
 
 
बस यही कामना है
चौड़े मुख वाला दरिया
उस मेमने का भला करे।
 
 
छुई-मुई का पौधा
 
 
समय ने सूखी धरती पर
एक बीज रोप दिया
जो बारिश के दिनों में
छुई-मुई की कोंपल में
अंकुरित हो गया
और देखते ही देखते
एक हरा-भरा पौधा बन खिल उठा।
 
 
उसकी विलक्षणता को कोई नहीं जानता था
क्षीण लाल फूल उस पौधे पर उभरते ही
एक अबोध बालक उसे देख मंत्रमुग्ध रह गया
जैसे ही उसने फूल को तोड़ना चाहा
पत्तियां थरथराईं और सिमट गईं
उसने झटपट सभी पत्तियों को छू डाला
और पौधे ने सारी पत्तियां अपने भीतर समेट लीं
जैसे वह मुरझा गया हो।
 
 
बालक दौड़ कर मित्रों को बुला लाया
वह उनको यह कौतुक दिखाना चाहता था
पत्तियां तब तक फिर से पूरी तरह खुल चुकी थीं।
 
 
उसने उन्हें उंगली से हल्के से छुआ
पत्तियां कंपकंपाईं और सिकुड़ गईं
एक बालक ने पांव से छुआ
पत्तियां कांपीं और सिमट गईं।
 
 
एक और बालक ने उन्हें जूते से छू दिया
पत्तियां कांपीं और सिकुड़ गईं
दूसरे ने उन्हें डंडी से छुआ
पत्तियां कांपीं और सिमट गईं।
 
 
एक बालक ने उन्हें होंठों से छुआ
पत्तियां कांपीं और सिकुड़ गईं
और अपने को पूरी तरह बंद कर लिया।
 
 
वे थोड़ी देर ठहरे रहे
जैसे ही पहली पत्ती ने पर्त खोली
उनमें से एक बालक ने
धमकी भरी आवाज़ से उसे छू डाला
पत्ती कांपीं और सिकुड़ गई।
 
 
उसके बाद
उनकी आवाज़ का स्पर्श मात्र ही यथेष्ट था
एक भी पत्ती न हिली न खुली।
 
 
एक अनोखा नर पशु
 
 
मैं जिस किसी से भी मिलता हूं
मेरा होना उनके लिए मात्र
एक ख़तरा बन जाता है
 
 
मैं जैसे ही प्रवेश करता हूं
वे खिड़कियां और दरवाज़े
बंद कर लेते हैं
जैसे ही मुझे देखते हैं
मेहमानों को
झटपट विदा कर देते हैं
मेरे शब्दों से दूर जाकर
व्याकुल हो इधर-उधर देखते हैं
और शांत होकर
शीघ्र से शीघ्र मुझे वापस भेजने का
उपाए सोचते हैं
 
 
अपने-अपने मोबाईल फ़ोन
मेज़ के नीचे ले जाकर
टैक्स्ट भेजते हैं
और न जाने किस-किस को
मेरे आने की सूचना देते हैं
और मेरे साथ फ़ोटो खिंचवाकर
जल्दी से विदा लेते हैं
मेरी आवाज़ को
एक अनहोने अचरज में
ढालने की कोशिश करते हैं।
 
 
मेरे सिर के ऊपर किसी ने
बना दिए हैं दो सींग
जिन्हें हर कोई देख सकता है
मुझे बदल कर रख दिया है किसी ने
एक अनोखे नर पशु में।
 
 
कुदाल
 
 
ईश्वर ने मुझे प्रेम
एक कुदाल के रूप में सौंपा था।
 
 
जैसे मेले में कोई किसान
परखता है ख़रीदी हुई वस्तु को
मैंने भी परखा था बड़े ध्यान से
पुख़्ता लकड़ी का बना उसका हत्था
और लोहे की बनी उसकी भारी हाल।
 
 
जैसे जल पर झिलमिलाता हो सूरज
कुदाल की चौड़ी हाल ने
मुझे सदैव ही लुभाया था।
 
 
मैं प्रसन्न था
पृथ्वी के फैले विस्तार पर
कुदाल को काम में ला सकता था।
उसकी मदद से
छंटाई करके मैंने साफ सुथरे बांध बनाए
घास को उनकी जड़ों तक सीमित रख कर
गाय बैलों को खिलाया
पेड़ों के लिए पर्याप्त पानी हो
अतः ढाल बनाकर नहर-नाले खोदे।
 
 
मैंने कुदाल से मनुहार की
माटी को ढेर पर से उठा कर
गड्ढों में डाल देने की
और यह सब करने में ही
मैंने सारा समय बिता दिया।
 
 
एक रात नींद न आने पर
मैं कुदाल को खोजने लगा
किनारों को खरोंच कर, धोकर
उसे खाट के नीचे रखा था संभाल कर
पर वह वहां न थी।
 
 
शोर सुन बाहर जाकर जो देखता हूं
वह मेरे लिए ही गड्ढा खोद रही थी।
 
 
गुर्राहट
 
जैसे सूखे पत्ते आंखों में चुभने लगते हैं
अर्द्धरात्रि के उस घोर अन्धकार को चीरता हुआ
एक पागल कुत्ता कहीं से आ पहुंचता है।
 
 
कोई नहीं जानता
कहां से आया है
किसने भेजा है।
 
 
उसके भोंकने की आवाज़ को
जिस किसी ने भी पहिचाना है
इसे शत्रु का षड्यंत्र ही माना है
कुछ ने कहा कि
वह एक दुष्ट, प्रतिशोधी का
पालतू कुत्ता है।
 
 
कुछ ने यहां तक कह डाला
पुरानी दवाईयों को बेचने की
यह फार्मसिस्ट की चाल है
कुछ लोगों ने यह भी कहा
प्रजा को
शासन के स्वर में ढालने का
यह राजा का संदेशा है।
 
 
निश्चित रूप से
कोई भी नहीं कह सकता था
कि वह कहां से आया था
उसे किसने भेजा था।
 
 
वह पागल कुत्ता
ज़मीन छूती,
राल टपकाती जीभ लिए
बस अंदर आ पहुंचा था।
 
 
गली के कुत्ते भोंके
परन्तु उस पर कोई असर न पड़ा
वह अचानक मुड़ा
और एक कुत्ते को काट कर
तेज़ी से दौड़ पड़ा
गली के कुत्ते उस पर झपटे
परन्तु इस लड़ाई बीच
वह पागत कुत्ता
कहीं जा छिपा
जहां उसको ढूंढ़ पाना असम्भव था।
 
 
कुछ दिन शांत रहने के बाद
कुत्ते जिन्होंने उस पर मुंह मारा था
या जिनको उसने काटा था
अपनी राल टपकाती जीभें बाहर लटकाये हुए
यहां वहां घूमने लगे
उनका भोंकना बन गई एक गर्जना
वे कूड़े के ढेर पर मंडराते चूजों पर
मुंह मारने लगे
हरी घास पर चरती भेड़ों को काटने लगे
गायें जिनका जीवन
उनकी रस्सियों की लम्बाई पर निर्भर था
उन्ह पर भी मुंह मारने लगे
पालतू कुत्ते जब मल त्यागने बाहर निकलते
उन्हें काट खाने लगे
उनकी गुर्राहट
सभी ओर गूंजने लगी।
 
 
लोग भयभीत होने लगे
जो भी स्थिति को आंकने
बाहर निकलता
रक्तरंजित घाव लिए
भीतर की ओर दौड़ता।
 
 
फिर कुछ और दिनों की शान्ति के बाद
एक व्यक्ति ने काट खाया किसी को
और उसने किसी दूसरे को
एक और ने काट खाया एक और को
बाद वाले ने काट खाया अपने बाद वाले को
उसके बाद वाले ने काट खाया अपने बाद वाले को
और अब दृश्य जो सामने उभर कर आया वह यह था –
 
 
बस लार टपकाती जीभें थीं
गुर्राहट थी
और पागल कुत्तों का विशाल झुण्ड था।
 
 
मोहन वर्मा
 
मोहन वर्मा हिन्दी के कवि एवं अनुवादक हैं। ‘बूँद से नदी तक: एक कविता यात्रा’ कविता संग्रह, पेरुमाल मुरुगन के चार उपन्यास ‘मादोरुबागन’, ‘अर्द्धनारी’, ‘आलवाय’  एवं ‘कूला मदारी’ के हिन्दी अनुवाद ‘नर-नारीश्वर’, ‘पोन्ना की अग्निपरीक्षा’, ‘पोन्ना का अभिशाप’  एवं ‘छोटू और उसकी दुनिया’, तथा पेरुमाल मुरुगन के कविता ‘कोषैयिन पडालकल’ संग्रह का हिन्दी अनुवाद ‘एक कापुरुष के गीत’  एवं कन्नड़ की कवि ममता सागर की कविताओं का हिंदी में अनुवाद ‘आँख मिचौनी’  प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त ‘सामाजिक न्याय एवं चेतना की भारतीय कविताएँ‘ संकलन का सम्पादन किया है जो सेतु प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। मोहन वर्मा पिछली शती के साठवें दशक में हिंदी काव्य के ‘सहज कविता’ आंदोलन का सूत्रपात करने में रवीन्द्र भ्रमर तथा त्रिपाठी प्रकाश त्रपाठी के सहयोगी रहे हैं और ई-पत्रिका ‘जागरी’ के कविता संपादक भी।
 
 त्रिपाठी

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