अग्रज कवि

 

 

 

 

कवि जैक हिर्शमैन

कवि जैक हिर्शमैन का जन्म न्यूयॉर्क शहर में एक रूसी यहूदी परिवार में हुआ था। जब वे 19 वर्ष के थे, तो उन्होंने अर्नेस्ट हेमिंग्वे को एक कहानी भेजी, जिसने जवाब दिया: “मैं आपकी मदद नहीं कर सकता, बच्चे। जब मैं 19 वर्ष का था, तो आप उससे बेहतर लिखते हैं। लेकिन यह नरक है, आप मेरी तरह लिखते हैं। वह कोई पाप नहीं है। लेकिन आप इसके साथ कहीं नहीं पहुंचेंगे। राइटर”
इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा 1960 में प्रकाशित उनकी पहली कविता, ए कॉरेस्पोंडेंस ऑफ़ अमेरिकन्स में कार्ल शापिरो द्वारा शामिल था।

1950 और 60 के दशक में, हिर्शमैन ने डार्टमाउथ कॉलेज और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स में पढ़ाया। यूसीएलए में उनके कार्यकाल के दौरान, उनकी कक्षा में नामांकित छात्रों में से एक जिम मॉरिसन थे, जो बाद में अमेरिकी बैंड द डोर्स के सह-संस्थापक और प्रमुख गायक बने। हालाँकि, वियतनाम युद्ध ने हिर्शमैन के शैक्षणिक करियर को समाप्त कर दिया; उन्हें अपने छात्रों को वियेतनाम युद्ध के विरोध में काम करने को प्रोत्साहित करने का आरोप लगा। उन्हें यूसीएलए से निकाल दिया गया था।

एक चौथाई शताब्दी के लिए, हिर्शमैन ने सैन फ्रांसिस्को की सड़कों, कैफे (कैफे ट्राएस्टे सहित, [11] जहां वह एक नियमित संरक्षक रहे हैं), और रीडिंग, एक सक्रिय सड़क कवि और एक सक्रिय कार्यकर्ता बनकर घूमते रहे। हिर्शमैन एक पेंटर और कोलाजिस्ट भी थे। वे उम्र भर कम्यूनिस्ट विचारधारा के समर्थन रहे, और कविता के द्वारा सामाजिक चेतना जगाने का काम करते रहे। जब वे कविता पाठ करते थे तो उन्हें माइक की जरूरत भी नहीं पड़ती थी।
उनकी कविताओं का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ़ जैक भी अनुवाद करते थे। इटली आदि देशों में उनकी मूर्तियां लगीं थी।  22 अगस्त, 2021 को COVID-19 से 87 वर्ष की आयु में हिर्शमैन की सैन फ्रांसिस्को में उनके घर में मृत्यु हो गई।

 

 

वृद्ध महिला

बस ड्राइवर और मैं समझते हैं
वो छोटे कद की वृद्ध महिला,
बमुश्किल, खड़ी हो पा रही है;
तो अगली बार जब आप हों
बस के दरवाजे पर,
हाथ बढ़ाएं,
आपकी माँ भी
हो जाती हैं एक बच्चा, अंत के करीब

 

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

 

प्रेम कविता
एग्गिमो के लिए

 

सारे सुखों का परम सुख,
जताते हो तुम जब अन्तरंगता
हौले से रखकर यहीं
अपने अधरों को

तो यह खयाल आता है
बेखुदी में! हालांकि बोला गया
बिन कहे वह भी, जो कुछ भी नहीं,
जबकि सब कुछ है, वहां अनावृत्त

चुम्बन है कि बहा देता है सब कुछ
समय के टुकड़ों और उछाले गए
सिक्कों के नंगे नाच को,
और अटक गया है, कहीं दिलोदिमाग में
वह सब कुछ

और अब, अकेले
अपनी तरह की एक ही होठों की जोड़ी के साथ
अपना मूल स्वयं ही खुलता है
खुद के खुलासे के लिए

भाषा, जिसे कहा गया
रूह है यह, जीभ है यह
चुंबन जो है परम सुख
सभी सुखों का, जिसका अनुवाद असम्भव है

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

 

नेरुदा स्थल

 

चिली एकता सभा के बीच, डोलोरस पार्क में, एक पेड़ से सटकर बैठे हुए,
मेरी आंखों ने देखी, घास में तीन नन्हीं सी गुलबहार,
उनके छोटे पराग-हृदयों पर
मक्खियों ने धावा बोल दिया था।
आस-पास, घसीली पत्तियों के जंगल पर ततैया उड़ रहे थे
और बड़ी होशियारी से, हरी-सी घुड़मक्खियां रचा रही थीं शादी, श्वान-मल पर गुनगुनाती।
मैंने अपनी नजरें वक्तव्य से नीचे की, मेरी एक तरफ लगा था पीपुल्स ट्रिब्यून का ढेर।
इतने सारे आंदोलन प्रकृति की गोद में! एक तितली,
पेपर के मुखपृष्ठ पर उतरी और बढ़ गयी सुर्ख़ियों की ओर
मानो पढ़ रही हो उनको
मक्खियां बेसब्री से खा रही थी।
घुड़मक्खियां मलमूत्र के नशे में डूबी थीं
ततैया लगातार हमला करने उतरते और
फिर से उड़ जाते। ये छापेमार लड़ाई थी, यह मीर था, ये शांति थी
एक इंच भर सी जगह में इतने आंदोलन
नेरुदा की यह स्थल।

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

 

चाहता था कि आप यह जानें
«मैं प्रोफेसरों और पूंजीपतियों के बीच नहीं उतरूंगा»
-वाल्ट व्हिटमैन

मैं सैक्रामेंटो स्ट्रीट पर, प्रकाशन भंडार की खिड़की पर
एक मेज के सहारे एक बस की
प्रतीक्षा कर रहा था,
जो मुझे पहाड़ पर ले जाये, पढ़ते हुए
«अश्वेतों के बीच …»
ओल्सन पत्रिका से, तभी किसी ने पूछा
«क्या पढ़ रहे हो, गोरे आदमी… ?»
उसे देखने को, आंखें ऊपर को झटकीं
अश्वेत नहीं, गोरा भी नहीं
एक लड़का अपने दोस्त के साथ (जो जारी रखे था पहाड़ी पर चढ़ना),
पेपर बैग में बियर की कैन पकड़े हुए-
मैंने पहले सोचा, फिलिपीयन है

«कविताओं की किताब» मैंने सीधे कहा।

«क्या तुम मेरे लिए एक पढ़ सकते हो?» वह पूरी तरह
पिये हुए था।

मैंने अपनी कविता जुबानी सुना डाली।

मैं जानता हूं उदरों को
बच्चों के उदरों को
कुछ न होने से फूले हुए
गर्भस्थ भूख!

उनके भीतर,
भूखे मुंह
विलाप कर रहे: क्यों?!
चिल्ला रहे हैं: कब?!

कोई और झूठ नहीं
धूर्तता नहीं
गड़बड़ी नहीं

संगठित होना होगा।
साहस से,
मुफलिसी से ऊपर
उठा जा सकता है
उठना ही होगा

किया जा सकता है
करना ही होगा,
करेंगे अवश्य

क्या काफी नहीं हो गया?
उठ खड़े हो जाओ
आओ क्रांति करें।

उसकी आंखें फ़ैल गयी थी, उनमें स्पष्टता आ रही थी,

«”अरे, यह बढ़िया है”, उसने कहा।”
मैं तुम्हारे साथ हूं» तो मैंने उसे एक पीपुल्स ट्रिब्यून दिया
और वो अपने दोस्त के पीछे चल दिया।

ओल्सन की कवितायें पढ़ना जारी रखा
जो उसके संग्रह से निकाल दी गयीं थी:
क्योंकि एक अश्वेत को उसकी आवाज के लिए
पच्चीस गोरों ने मार दिया था

वो हकीकत में फिलिपिनो नहीं निकला,
पर – वह वापस आते हुए-
रिक नामक हवाईयन (उसने अख़बार को देखते हुए कहा, क्या वह इसे लिख सकता है?
(« बेशक, »—)
और ये उसका दोस्त जुआन था,
उसकी बेसबॉल केप पर डेट्रॉइट का «डी» था («तुम्हारा गृह नगर?»)
नहीं, वो सैननटोन से था,

वे यह देखने के लिए लौटे थे
क्या मुझे कुछ चाहिए था, क्या सब कुछ ठीक था ?
क्या कुछ पैसों की जरूरत है —? नहीं, मैं ठीक हूं।
मिलते हैं भाई – तुम्हारा दिन शुभ हो।

वे वापस अंधेरी पहाड़ी पर चले गये
चाइनाटाउन मून फेस्टिवल के लिए।
आशान्वित हूं, ठीक होंगे।

यह बोध था
कि मैं बस एक
वास्तविक अमेरिकी
काव्यात्मक अनुभव में था

चाहता था
कि आप यह जानें

 

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
कामायनी वशिष्ट द्वारा संपादित

इसे जो भी नाम दें

मैं अपने समय से पूर्व की बर्फ हूं
गड्ढों भरी गलियों को ढकती हूं
अपने जन्मदिन की काली श्वासों से,
मैं जानती हूं ये क्यों जरूरी है
और घाटी क्यों है दीप्तिमान

वहां, उस कोने पर एक उम्रदराज महिला
सिगरेट का पैकेट पकड़े हुए है
जो उसे एक आदमी से मिला है
उसकी शॉल के लिए
जो उसे मिली चोर से
साइकिल के पुर्जे के लिए
जो उसने चुराया
एक अमेरिकी व्यवसायी की जेब से
जो लगाने जा रहा है
कंप्यूटर पुर्जों का कारखाना
मास्को के बाहरी इलाके में

वह बिलकुल फटे हाल है
उसका हाथ बाहर है
मैं उसके जीर्ण कोट पर
उसकी नाक पर, उसकी पलकों पर गिरती हूं,

गली के पार, कमरे में अपनी कुर्सी पर
सिर्फ पचास साल के एक आदमी की
सांसें बंद हो गयी हैं

सस्ती छोटी समोवर सी महिला
बांध तश्मों से अपनी जुराबों को,
संवारती अपनी पोशाक
चोर बाज़ार की परफ्यूम अपनी गर्दन पर छिडक
चली जाती है
नीचे गलियों में घूमनें

उसके कदम हैं
लाल आर्मी के अवशेष

मैं उसे हजार कोनों में दफनाती हूं
उसे और उसकी बहनों को बदल देती हूं
मूर्तियों में

मेरा नाम बहुत पहले बदल दिया गया है
मैं हूं वह औरत, और वह कमरे में आदमी
जो सांस नहीं ले रहा,
मैं हूं वह बूढ़ी औरत जो चोरी की सिगरेट बेचती है

मैं बर्फ हूं, गिरती हूं कमरे में भी
और उसे अपनी काली सांसों में दफनाती हूं
यही असली श्रद्धांजलि है।
स्लाव विजयी क्रांति के लिए
स्टेलिनग्राद या इसे जो भी नाम दिया जाये
विजेता है

मैं गिरती हूं और धीरे-धीरे, गिरकर सब ढक लेती हूं
अपनी काली सांसों से।
रूसी स्लाव वर्षों जिओ!

 

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
कामायनी वशिष्ट द्वारा संपादित

मार्ग

अपने टूटे दिल के पास जाओ
अगर तुम्हें लगता है कि वो तुम्हारे पास नहीं, तो ढूंढो उसे

उसे पाने के लिए, ईमानदार बनो
जीवन में उतारकर
ईमानदारी से इरादा करो,
क्योंकि तुम असहाय हो,
कुछ भी और करने के लिए,
भागने की तुम्हारी कोशिश में
इसे लेने दो तुम्हें, और फाड़ डालने दो
भेजे गए ख़त की तरह
अंदर लिखे वाक्य की तरह,
तुमने जिसका जिंदगी भर इंतजार किया है
यद्यपि तुमने कुछ भी नहीं किया;
इसे तुम्हें भेजने दो
तोड़ने दो इसे तुम्हारा दिल

दिल का टूटना शुरुआत भर है
सब असली आगमनों की
विनम्रता के कान ही सुन पाते हैं दरवाज़ों से परे

देखो द्वार खुल रहे हैं
अहसास करो, अपने कूल्हों पर हाथ और बाहर निकली कुहनी को
तुम्हारा मुंह खुल रहा है गर्भ की तरह
जन्म दे रहा, तुम्हारी पहली आवाज को;
सहजता का परमानन्द
गाओ घूम-घूम कर
कविता लिखो

बृजेश सिंह द्वारा अनूदित
पूजा प्रियंवदा द्वारा संपादित

 

बृजेश सिंह

उत्तर प्रदेश के जनपद औरैया के एक गाँव नगरिया में जन्मे बृजेश सिंह ने लखनऊ विश्व विद्यालय, लखनऊ से परास्नातक की शिक्षा को पूरा किया। वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के सिंचाई विभाग में कार्यरत हैं तथा गाजियाबाद में निवास कर रहे हैं ।
बृजेश की स्वरचित रचनायें, अनूदित कवितायें, लेख एवं समीक्षाएं पत्र-पत्रिकाओं के साथ साथ दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी अंग्रेजी भाषा में अनेकों कवितायें वैश्विक एन्थोलोजी में सम्मिलित की गयी हैं, जिनमें ‘एन्सिएन्ट इजिप्ट एंड मॉडर्न पोएट्स’, ‘वर्ल्ड पोएट्री ट्री: एन एंथोलोजी फॉर होप, लव एंड पीस, ‘एड्वर्सिटी’ तथा पोएट्री फॉर यूक्रेन प्रमुख हैं ।
बृजेश कृत्या अंतरराष्ट्रीय पोएट्री फेस्टिवल की ओर्गनाईज़िंग टीम के सदस्य हैं। वह कविताओं के वैश्विक मंच कृत्या अंतराष्ट्रीय पोएट्री फेस्टिवल एवं उसके साथ-साथ वर्ल्ड पोएट्री मूवमेंट के सहयोग से आयोजित कृत्या पोइट्री के कार्यक्रमों को संचालन करने में सहयोग करते हैं ।

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