कविता अग्रज
ओगुरा ह्याकुनिन इश्शु सौ कवियों की कविताओं का संयोजन है, ये कविताएं वाका है। वाका पांच पंक्तियों वाली 31 अक्षरो वाली कविताएं हैं जो 5-7-5-7-7 क्रम से लिखी जाती है। ये राज दरबारी कविताएं जो हाइकू के उदय से पहले जापान में प्रचलित थी। इसके संयोजक तेरहवीं सदी के फूजीवारा नौ सदाएई जो तेइका के नाम से भी जाने जाते हैं।
1 सम्राट तेंची (626-671)
खुरदुरी सरकंडे की छत
शरण दे रही उपज की झोपड़ी को
पतझड़ के धान के खेत में
और मेरी आस्तीनें भीग रही हैं
इस टपकती नमी से
2 साम्राज्ञी जीतो (645-702)
बसन्त चला गया
और ग्रीष्म फिर से आया
श्वेत रेशमी चोलो के लिए
जो फैलाए हुए हैं, वे कहते हैं
“स्वर्गीय सुगन्ध कढ़ पर्वत के ऊपर।
3 काकीनोमोतो नो हीतोमारो (—708)
ओह ये पदक्षेपित मार्ग
पर्वतीय फेजन्ट की पूंछ का
जो झुकी हुई है लटकी टहनी की तरह!
इस लम्बी, लम्बी खिंची रात में
क्या मैं अकेला ही बिस्तरे पर लेटूं?
4 सारुमारु
पर्वतीय गहराइयों में
सुर्ख लाल पत्तियों के बीच में से चलते
भटकता हिरण बुलाता है
जब मैं सुनता हूं उसकी सूनी पुकार
दुखद, कितना दुखद है यह पतझड़
5 आबे नो नाकामारो (701-770)
जब मैं ऊपर देखता हूं
दूर फैला स्वर्ग का मैदान
क्या यह वही चन्द्रमा है
जो मिकासा पर्वत के ऊपर निकला
कसुगा के वेश में?
6 ओनो नो कोमाची
इस फूल का रंग
पहले से ही फीका पड़ गया है
जब निराधार विचारों में डूबा
मेरा जीवन व्यर्थ बीतता जा रहा है
जैसे मैं लम्बी वर्षा देख रही हूं।
7 ओनो नो ताकामुरो (802-852)
चौड़े समुद्र के ऊपर
दूरस्थ अनेक टापुओं की ओर
चल पड़ी है मेरी नाव!
क्या यहां इकट्ठी मछुआरों की नावें
मेरी यात्रा, संसार में घोषित कर देंगी?
प्रस्तुति और अनुवाद
अंजलि देवघर