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संजीव बख्शी की दस कविताएं
चित्र
1
इस चित्र में पानी गिर रहा है
जो लोग चित्र में दीख रहे हैं वे भीगे हुए हैं
उनके चेहरे और कपड़ों पर
पानी के छीटें दीख रहे हैं
छाता न तो चित्र में है न बाहर
मैं सोच ही रहा था कि बारिश शुरू हो गई
मेरे विचार में एकाएक आया कि
क्या अच्छा होता कि मैं चित्र के भीतर चला जाता
और अपने आप को भीगने से बचा लेता पर
चित्र के भीतर तो लोग भीगे हुए हैं
मैं अकेले कैसे सूखा दीख सकता हूं
चित्र में जो पानी के छीटें हैं
वहाँ असल पानी के छींटे पड़ने लगे
चित्र को इस कदर जीवंत बनाने की अपने आप क्रिया से
सारा कुछ धुल जाने का डर था
मैं चित्र को धुल जाने से बचा लेना चाहता हूँ
तभी पानी ने कहा कान में कि हम दोनों चलते हैं चित्र के भीतर।
2
चित्र में वह गुस्साया हुआ दीख रहा है
क्रोध से लाल–पीला
मैं देख रहा हूँ चित्र
आश्वस्त हूँ कि यह चित्र है
सच नहीं
कि गुस्से में जो लाल–पीला है वह सिर्फ रंग है
पर चित्र इस कदर असल लग रहा है कि न चाहते हुए भी
उसे देख कर मैं भी कुछ–कुछ लाल–पीला होने लगा हूं
मेरे चेहरे के लाल–पीला में और चित्र के लाल–पीले में फर्क है
चित्र का लाल–पीला
असल लाल–पीला है।
3
सबके सब हंस रहे हैं
सबके चेहरे पर खुशी व्याप्त है
इस चित्र में कोई दुखी नहीं
दुःख का कोई रंग इस चित्र में नहीं है
चटख पीला दीख रहा है पूरे चित्र में
एक इंद्रधनुषी सतरंगी
सफेद भी है जहां लोग खिलखिला कर हंस रहे हैं और
उनके दांत दिख रहे हैं।
4
चित्र में चटख रंग के फूल खिले हैं
जैसे बिलकुल असल हों
बस खुशबू नहीं है
चित्र के सामने टेबिल पर एक किनारे
एक गुलदस्ता रखा है प्लास्टिक के फूल हैं उसमें
खुशबू भी आ रही है भीनी–भीनी
हमने अपने लिए बना लिया है
इस तरह असल जीवन।
5
मैंने कहा एक चित्रकार से
मेरी इस कविता पर
एक चित्र बना दो
उसने कुछ रंग लिए और चित्र बना दिया
इतनी गहराई इस चित्र में कि
मेरी कविता उथली लगने लगी
मैंने कहा उससे
भाई कुछ रंग
मेरी कविता में भी डाल दो।
6
चित्र का पारदर्शी
दरअसल रंग का पारदर्शी है
सतत गीलापन का अहसास
मैं अपने शब्दों को भी पारदर्शी बनाना चाहता हूँ
पर मेरे पास रंग नहीं है
और पारदर्शी तो बिलकुल नहीं।
7
यह क्या हो रहा है
चित्र बनाना चाहता हूँ
शब्द बन जाते हैं
और कभी जब शब्द लिखना चाहता हूँ
चित्र बन जाते हैं
मित्र ने कहा
चित्र बनाना चाहते हो और शब्द बन जाते हैं
वह कविता है
और जब शब्द लिखना चाहते हो
चित्र बन जाते हैं
वह उपन्यास है।
जो बन जाना चाहते हों
उन्हें बन जाने दो।
8
एक चित्रकार ने
कैनवास पर
अभी–अभी हरियाली बनाई
चित्र अभी सूख नहीं पाया था
मैंने कहा
अच्छा होगा हरियाली को और गहरी कर दो
कैनवास में नमी है
हरियाली के लिए और क्या चाहिए
हरा रंग।
उसने कहा कि
जमीन पर देखो
मैंने जंगल के बीज बो दिए हैं।
9
एक चित्र में
चित्रकार चित्र बना रहा है
चित्रकार जो चित्र बना रहा है
उसे वह चित्रकार नहीं बना रहा है
मैं बना रहा हूँ
मेरे बनाए इस चित्र के लिए
लोग मुझे बधाई नहीं दे रहे हैं
पूछ रहे हैं
यह चित्रकार कौन है चित्र में
जो चित्र बना रहा हैॽ
चित्रकार के हाथ में कूची है
जिसमें रंग चढ़ा हुआ है
चित्र में वह स्थान उस रंग के लिए छूटा हुआ है
चित्रकार के चेहरे पर चित्र के पूर्णता के भाव नहीं है
ऐसा सब दिखाते हुए
मैं जो चित्र बना रहा था
वह पूर्ण हो गया है।
10
चित्रों की प्रदर्शनी में
एक चित्र से
मैं बातें करने लगता हूं
कोई नहीं सुन रहा हमारे बीच की बात
चित्र के कई रंग एक साथ बतियाना चाह रहे थे
रंगों का खिलना उनका बात करना था
मेरे मन मस्तिष्क में जाकर ये रंग
आपस में मिलकर
अलौकिक रंग बना रहे थे
जो मेरे होठ बुदबुदा रहे थे
उस चित्र पर जैसे अभी भी चित्रकारी चल रही हो
मैं उसके पूर्ण होने का इंतजार कर रहा हूँ
चित्र का चित्रकार
मुझे देख कर मन ही मन गदगद है
उसने मेरी आँखों में वह रंग देख लिया है
जो चित्र में नहीं है
संजीव बख्शी
कवि-कथाकार संजीव बख्शी पिछले कई दशकों से लेखन से जुड़े हैं। संजीव जी के कविता संग्रह ‘तार को आ गई हलकी सी हंसी’, ‘भित्ति पर बैठे लोग’, ‘जो तितलियों के पास है’, ‘सफेद से कुछ ही दूरी पर पीला रहता था’ और ‘उनके अंधकार में उजास है’ तथा कविता पुस्तिकाएं ‘किसना’, ‘यह ऐसा समय हो जैसा सब कुछ समुद्र’ व ‘हफ्ते की रोशनी’ प्रकाशित हो चुके हैं। दो उपन्यास ‘भूलन कांदा’ तथा ‘खैरागढ़ नांदगाँव’ प्रकाशित; उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर बनी फ़िल्म भूलन द मेज़ को नेशनल अवार्ड मिला, इस उपन्यास का कई क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। आपके ‘खैरागढ़ में कट चाय और डबल पान’ और ‘केशव कहि न जाए का कहिए’ संस्मरण भी प्रकाशित हुए हैं। कवि-कथाकार संजीव बख्शी को ”ठाकुर पूरन सिंह स्मृति सूत्र सम्मान 2002” से सम्मानित किया गया है।