मेरी बात


इस कविता विहीन वक्त में  लगातार कविता से जुडा रहना कुछ ज्यादा तो नहीं, लेकिन कुछ तो मायने रखता है। कृत्या 2005  से लगातार कविता प्रधान पत्रिका निकालना हंसी खेल भी नहीं, वह भी छोटी सी टीम के साथ। कृत्या की टीम छोटी जरूर है, लेकिन कविता से प्रेम के कारण ज्यादा ज्यादा से मेहनत करती है। सन्तोष कुमार लगातार अनेक समकालीन विदेशी कवियों की कविताओं का अनुवाद कर रहे हैं। कमल मेहता हर मास युवा कवियों की कविताओं पर आलोचनात्मक टिप्पणी दे रहे हैं। बृजेश सिंह कृत्या की एडिटिंग में संलग्न हैं। बाकी बचा काम ही मेरे हिस्से में आता है।

 

हम चाहते हैं कि हमारी मेहनत का फल पाठकों को मिले, अधिक अधिक कविता प्रेमी इसे पढ़े, और टिप्पणी करें, तभी हमें मालूम होगा कि कृत्या अपने कर्म में कितनी खरी निकल रही है।

 

कविता जितनी लिखनी जरूरी है, उतनी पढ़नी भी जरूरी है।

 

कविता किस तरह से जीवन पर प्रभाव डालती है, पाठक पढ़ने के उपरान्त ही समझ पाएंगे।

 

इस बार फिर कुछ महत्वपूर्ण कवियों के साथ

 

शुभकामना सहित

 

रति सक्सेना

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