कविता के बारे में
प्रान्तीयता मे वैश्विकता – तोरगेर शेजरवेन Torgeir Schjerven (नोर्वे के कवि)
रति सक्सेना
अपनी नौर्वे यात्रा के दौरान (2009 में)ओस्लो में मुझे जिस कवि कलाकार दम्पति से मिलने का सौभाग्य मिला वे थे Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen. ओदवे के रिश्तेदार, जान, जिनके घर हम ओस्लों में रुके थे ने शाम को अपने घर खाने पर कुछ साहित्यकारों को आमन्त्रित किया था। उनमें Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen.भी थे, लेकिन उन दोनों को उसी रात अपने पैत्रिक घर जाना था, इसलिए इन्होंने अगले दिन Munch Museum कें प्रांगण में मिलने का कार्यक्रम बनाया।
Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen को देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा क्यों कि उन दोनों में एक बड़ा सुखद तालमेल था, जो कि स्पष्ट ही दिखाई दे रहा था। एक खूबसूरत और समान विचारधारा के दम्पत्ति को देखना अपने आप में सुखद होता है। Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen बेहद कर्मशील कवि दम्पति हैं, Torgeir Schjerven मूलतया पेन्टर थे, उन्होंने मुझे बताया कि वे पेन्टिंग सीखने के लिए शिकागो गए, एकान्त और घर से दूरी नें उन्हें अपनी भाषा और समाज के बारे में सोचने को मजबूर किया़। वे उस भाषा के बारे में सोचने लगे जिसे वे अपने बचपन में बोलते थे। Torgeir Schjerven का बचपन Telemark में बीता था थेलेमार्क गाँव में बीता था। गाँव का बच्चे को शिकागों का अजनबीपन रास नहीं आया तो उसने पेन्टिंग के साथ साथ अपनी अलग दुनिया रचा ली।
वे अपनी दुनिया में विचरने लगे, उन्होंने पाया कि उनकी अपनी बोली में पहाड़ की ऊँचाई और समन्दर सी गहनता है। उन्होंने ना केवल उस बोली में रचना शुरु किया बल्कि उस बोली में डेनिश भाषा का पुट देकर एक नया प्रयोग भी किया। आज वे नोर्वे के सफल कवि हैं , जिन्होने अपनी सोती हुई बोली को जिन्दा कर लिया।
कवि कलाकारों द्वारा भाषा के साथ प्रयोग करने वाली बात मैंने नोर्वे में विशेष रूप से गौर की। हम अपने लेखन में भाषा के साथ प्रयोग से बड़े कतराते हैं, और बनी बनाई लकीर के फकीर बनन ज्यादा पसन्द करते हैं। केरल के कवि अय्यप्प पणिक्कर भाषा को बिगाड़ने के लिए कुख्यात ही माने जाते थे, लेकिन फिर भी कोशिश तो करते थे।
Torgeir Schjerven बीसवीं सदी के फिनिश भाषा प्रमुख कवि Pentti Saarikoski का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि – ” कविता लिखी नहीं जाती, बस पाई जाती है।” वे कहते हैं कि कविता हमारा इंतजार करती है और कवि का काम बस उसे खोज पाना है। यह खोज जितनी भीतरी है, उतनी बाह्य भी है। संभवतः यही बात तो भारत में सदियों से मानी जाती रही होगी, तभी तो वैदिक कविता में ऋषि दृष्टा माना गया है, रचियेता नहीं।
Torgeir Schjerven साफ मानना है कि कवि रचनाशील तो है, कविता उसकी थाती नहीं है, अपने रचे जाने के तुरन्त पश्चात् कविता पाठको की हो जाती है।
वे कह रहे थे कि कविता अखबारी कतरन नहीं है जो मात्र छपास की भड़ास के लिए रची जाए।
सामान्य ग्रामीण संस्कृति के अनुरूप Telemark की बोली में भी एक संगीतात्मकता है, यही कारण है कि Torgeir Schjerven की कविता में लयात्मकता स्वाभाविक तौर से प्रमुख स्थान रखती है। मैंने पाया कि अधिकतर यूरोपीय कवि अपनी कविता को पढ़ने के साथ गाना भी पसन्द करते हैं, और खास बात यह है कि उनके गायन में संगीतात्मकता नहीं लयात्मकता झलकती है। दरअसल ये वे यूरोपीय बोलियाँ या भाषा हैं जो अपने लोक जीवन में भी एक तरह की गीतात्मकता की अपेक्षा रखती है
उनकी बात सुन कर में अपने को आधुनिकता और उत्तराधुनिकता के फेर में फँसा पाती हूँ, गद्य और पद्य का सवाल आजकल भारतीय भाषाओं की कविताओं में भी प्रमुख रूप से दिखाई देने लगा है। मलयालाम के आधुनिक कवि कविता गाना पसनद ही नहीं कर रहे हैं, जब कि वहाँ के कविता प्रेमी अभी भी गेयता की अपेक्षा रखते हैं। एक बार केरलीय कवि सुगतकुमारी ने कहा भी था कि यदि आप मंच पर गाना पसन्द नहीं करते, तो मत करिये, लेकिन मलयालम कविता के गेय पाठ को तो सीखिये, नहीं तो यह कला भी लुप्त हो जायेगी। नोर्वे के प्रमुख कवि गीतात्मकता को आधुनिकता के विरुद्ध नहीं मानते हुए बोलियों के साथ नए प्रयोग कर रहे हैं।
Torgeir Schjerven इस बात को समझते हैं कि बोली में रची कविता के पाठक सीमित होते हैं, लेकिन वे अपनी जड़ों से दूर जाना पसन्द नहीं करते हैं।
संभवतया वैश्विकता की इस दौड़ ने अनेक बोलियोंको नष्ट कर दिया।
अब मैंने Inger Elisabeth Hansen से बात करनी शुरु की। वे Torgeir Schjerven की अपेक्षा अधिक स्थिर और दुनियादारी से परिचित लगीं। वे मात्र कवि ही नहीं बल्कि सफल आयोजिका भी हैं। वे जानती हैं कि बोलियों और छोटे प्रान्तों में रची गई कविताएँ बिकती नहीं हैं फिर भी लोग पुस्तकालयों में जाकर पढ़ते तो हैं , और यह कवि के लिए बेहद महत्वपूर्ण बात है। Inger Elisabeth Hansen ने एक बात से और परिचित करवाया कि नोर्वे में कलाकारों को अच्छी तरह से सरकारी सहायता मिलती है।
जब मैं वियेना में पीटर से मिली तो उन्होंने किसी बात पर हँसते हुए कहा
था कि यहाँ किसी कवि कलाकार के पास कार नहीं है, एक घर हो वही काफी है। पीटर तीन जगह पढ़ाते हैं, काफी अनुवाद भी करते हैं, लेकिन नोर्वे के कवियों कलाकारों के जीवन में मुझे ज्यादा समृद्धि प्रतीत हुई। Inger Elisabeth Hansen यथार्थ के कुछ ज्यादा करीब लगीं, उन्होंने स्वीकार भी किया कि कविता हकीकत को बयान करने का अच्छा माध्यम है, और वे दुनिया और उसके कारोबार के प्रति सजग रहती हैं। कविता रचना में वे भाषा गत और शैलीगत प्रयोग करने में रुचि रखती हैं। परम्परा में नवीनता का मिश्रण , आधुनिकता में रहस्यात्मकता का सम्मिश्रण उनकी कविता में विशेष महत्व रखता है। उनके मत में दुनिया के प्रमुख कवि हैं नूर इल्लाह और Edda , परशियन कविता से वे बड़ी प्रभावित हैं।
Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen दोनों कवि हैं, लेकिन दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर स्पष्ट दिखाई दे रहा था, जहाँ Torgeir Schjerven स्वप्न जीवी लगे वहीं Inger Elisabeth Hansen यथार्थ के काफी करीब, मैं सोच रही थी कि यही उनके सफल दाम्पत्य का कारण भी है।
इस छोटी सी बातचीत के उपरान्त हम लोग Munch म्यूजिम देखने गए। Torgeir Schjerven के साथ चित्र देखने का अपना आनन्द था, क्यों कि वे पेन्टर के रूप में कलाकृति को देखते थे, और समझाते भी रहे थे। नोर्वेजियन पेन्टिंग भारतीय कलात्मकता से काफी अलग है, और उसे समझनें कला की परख होना आवश्यक है।
Torgeir Schjerven कला के पैनेपन पर हमारा ध्यान आकर्षित करते रहे। Munch की प्रमुक कृति The Scream रुदाली के रोदन रूप सी लगी। दरअसल यह प्रकृति के रोदन की अनुकृति है, इसके बारे में Munch ने अपनी डायरी में लिखा हैं कि “I was walking along a path with two friends-the sun was setting-suddenly the sky turned blood red-I paused, feeling exhausted, and leaned on the fence-there was blood and tongues of fire above the blue-black fjord and the city-my friends walked on, and I stood there trembling with anxiety-and I sensed an infinite scream passing through nature.” 22.01.1892
प्रकृति के रोदन को हम समझ ही कहाँ पाते हैं, बस उसका दोहन करते रहते हैं। मुझे अच्छा लगा कि नोर्वे प्रकृति के महत्व को इतनी अच्छी तरह से समझता है, काश हम इस बात को समझ और देख पाते।
Torgeir Schjerven ने कविता के साथ उपन्यास भी लिखे हैं, और अधिकतर अपनी नोर्वेजियन बोली का प्रयोग किया है, लेकिन वे नोर्वे में राष्ट्रीय कवि के रूप में पहचान रखते हैं । उन्हें देख कर लगा कि ये सोचना कि वैश्विक पहचान रखने के लिये प्रमुख वैश्विक भाषाओं में रचना जरूरी नहीं है, जरूरी है कि लेखक अपनी जमीन से जुड़ाव को तोड़ने दे।
Torgeir Schjerven और Inger Elisabeth Hansen से मुलाकत कविता के एक और रंग को देखने का मौका देती है, संभवतः कुछ सीख भी साथ है।