मेरी बात
कविता को लेकर बड़े सवाल होते हैं, कविता क्या है और क्या नहीं है, इस बारे में कविगण ही नहीं पाठक भी संशय में हैं। मुझे याद है कि एक वकील ने कहा था कि पहले हमे दिनकर बच्चन मैथिली शरण गुप्त कुछ नाम याद थे। कुछ की तो कविताएं भी, लेकिन आज तो सामान्य नागरिक जानता ही नहीं कि कवि कौन है, उनकी कविता क्या है।
मैं उनकी बात समझ रही थी, लेकिन जवाब मेरे पास भी नहीं था।
क्या कारण है कि जनता के पास कविता अपने रूप में नहीं पहुंचती? टी वी पर चलने वाले हास्य परिहास की तुकबन्दियां ही पहुंच पाती हैं। कहां गल्ती हुई है। हालांकि केरल में कविता के द्वारा भीड़ इक्कट्ठी करने की क्षमता लम्बे वक्त तक रही। दुनिया के अनेक देशों में कविता लोगों के पास पहुंचती है, और अनेक देशों में कविता के श्रोता मात्र कवि होते हैं।
एक जवाब यह है कि कविता को पापुलर होना भी नहीं चाहिए, लेकिन फिर सवाल है कि क्या कविता कोई देवीय पूज्य वस्तु है , जिसे मात्र कुछ लोग पढ़ लिख सकते हैं।
कविता श्रम से उपजी है, श्रम लय भी देता है,
कविता प्रकृति से जोड़ती है।
मुझे प्रकृति में ही ईश दिखता है
फिर कविता को लेकर संशय क्यों, कविता अपने को बचा लेगी, कभी भी, कैसे भी।
रति सक्सेना