* All the legal application should be filed in Kerala, India, where the Kritya Trust is registered.
Zheng Xiaoqiong 郑小琼 चीन की
प्रसिद्ध कवि है जिनका जन्म सिचान में 1980 में 2001में हुआ।वे southern Guangdong Province की Dongwan City में प्रवासी कामगार के रूप में आई और फैक्टरी के कामगारों की जिन्दगी पर कविता लिखने लगीं। 2007 में उन्हें Liqun Literature Award from Peoples’से नवाजा गया, जिससे उनकी लोकप्रियता पूरे देश में प्रसरित हुई।
चीनी से अंग्रेजी में अनुवाद Jonathan Stalling
अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद बसन्त जैतली
घास की जड़
धुंधलका फैलता है
लोहे की भूरी राख की एक सतह
जुलाई में गल जाती है.
लीची के जंगलों में सब कुछ शांत और निस्सार है ….
जुलाई के उड़ते हुए कीट – पतंग
घास के ब्लेड पर एक रक्त बूँद की तिर्यक रेख,
घास के छोटे तने
जब झुकाते हैं अपना सर
और देख लेते है कोई घुमन्तू एड़ी.
सिल्वर लेक पार्क में
नील पुष्प घास पिच्छक से भेंटते हुए चाँदनी
सुन लेती है खिलते सुगन्धित फूलों की ध्वनि.
सिल्वर लेक पार्क में
जुलाई के धूसर फूल नहीं धार पाते चाँदनी.
झील पर आधी रात मैं सुनती हूँ
घास तृण का विलाप,
सड़क पर भटका,
अन्धकार में क्रमशः खोता एक यायावर.
नुकीली घास और मेरे पदचिह्न जगमगा रहा है
सड़क का एक लैंप
ओह घास की जड़ों
एक ही है हमारी ज़मीनी हकीकत.
लीची के पेड़ों तले उगी गहरी हरी घास में
मित्रों और परिवार सहित
इस अनाथ अज्ञात भूमि पर
घास की तरह उगी हूँ मैं,
इस धुंधलके में जब शांत रहता है विश्व
रात को चलती है हवा
पर नहीं उड़ा पाती हमारे सिर.
अप्रैल
वह नत हुई ज्यों सुननी हो एक धीमी आवाज़
एक ज़ंग लगा आँसू सूर्योदय मे घुल गया
खिड़की के बाहर टहल रहा है अप्रैल, फूल उठे हैं लीची के पेड़
लौह छाया मे नीलक के फूल कम प्रेमल हैं
प्रेम का विश्वासी ज़ंग लगा चाँद
कांधे पर धारे है दुःख अनन्त
क्रमशः गुज़र जाता है अतीत और स्मृति गड़बड़ाती है
अंतस मे शेष वासंती भट्टी से
चमकता है ठंडा अनावृत्त नील नक्शा
बीतता समय मशीन की मेज़ पर पड़े
रीतते अंधकार का शेष विस्तार संक्षरण सा पचा लेता है
एक विहंगम सी दृष्टि से उसके दीन हीन विचार ज्यों अप्रैल के महीने मे गहरे हरे हो उठते हैं
थकी मांदी फ़ैक्टरी के फर्श पर पड़ा है उसका प्यार
शिहुआन से हुनान और दूरवर्ती जगहों से
किसी उत्पाद की तरह पहुंचते हैं विचार
प्रमाणन की अकेली हरी पर्ची उसके आंसुओं के साथ पहुँचती है
सूर्योदय के पंख चमकीली फैक्टरी मे फैलते हैं
ज़ंग की फांस से घायल हो जाता है दिल
खिड़की के बाहर अप्रैल को चमकीला आवरण देती है प्रेम की ओस
इस्पाती मजबूती देता है उसे यह सब
कि उदित हो रहे इस सूर्यांश की तरह
अदृश्यप्राय प्रेम की छिपटी से चिमटी ही रहे वह
*
कितना प्रेम, कितनी पीड़ा, कितनी कीले
प्रातःकालीन ओस की अनुशंसा, दुपहरी का रक्त .
जकड देते हैं मुझे मशीन की मेज, नीले नक़्शे और माँग पत्र से.
फैक्ट्री के भवनों से उदित होता है भाग्य और दुर्गति का एक युग
श्रमजीवी वर्ग के अपने समय का अनाम दुःख करता है अनुसरण,
होनी चाहिए कोई कील जो कर दे निरुद्ध
अतिसमय के कार्य का औद्योगिंक रोग.
धुंधले लैंप तले कितनी ही क्लान्त छायाएँ चमकती हैं
कितनी ही कुपोषित दुर्बल जवान श्रमजीवी महिलाओं की सुन्न मुस्कान है
काई की तरह ढका है ज्यों हरे पेड़ों के नीचे उनका प्रेम और स्मृतियाँ
ख़ामोश किन्तु सुभेद्य.
श्रमिक क़ानून गृहासक्ति और अज्ञात प्रेम के मध्य
लाभ और शेष वेतन से विलग
प्रवाहित होती है उनकी गुणी, शुद्ध युवावस्था,
असंख्य निःशब्द कीलें उनके निर्विकार मांस से गुज़रती हैं.
दो आसनों के मध्य अवस्थित है एक नीलाभ यान्त्रिक रेख
एक बार में बस एक पीडादायक कील,
क्षण भर का विराम,
खिड़की से बाहर किसी निवास के पास से
गुज़र रहा है पतझड़.