मेरी पसन्द
कौसर भुट्टो
कोहराम
(उन सभी मांओं को समर्पित जिनके बच्चे पढ़ाई नौकरी और शादी की वजह से उनसे दूर हैं)
उफ्फ यह अलार्म इतनी जल्दी क्यों बज जाता है,
रात आंखों में समाती नहीं कि सवेरा हो जाता है।
आंख खुलने के साथ ही उठता रोज तूफान है,
भागम भाग की बात ही छोड़ो, मचता रोज कोहराम है।
कोई पूछे टिफिन, तो कोई पूछे कपड़े,
स्कूल को देरी ना हो जाए बस यही चिंता जकड़े।
बच्चों को रवाना कर पतिदेव की तैयारी में लग जाऊं,
ऐसे भाग कहां जो दो घूंट चाय के भी पी पाऊं।
और ये चाय संग अखबार में ऐसे डूबे की, है संसार इन के भरोसे,
उठते ही रेल बनुं मैं मुझको कौन यूं चाय परोसे।
ये भी बच्चों से कम थोड़े ही हैं, इनको भी तो कपड़े, जूते, ऑफिस बैग थमाना पड़ता है,
और कभी-कभी तो रुमाल और चाबी लेना भी याद दिलाना पड़ता है।
सबको भेज कर कुछ देर अब खुद को ब्रेक लगाऊं,
घर पड़ा है उल्टा पुल्टा,बिन समेटे कहां चैन पाऊं।
उसके बाद करनी है लंच डिनर की तैयारी,
बच्चों को पढ़ाना भी तो है एक जिम्मेदारी।
जिम्मेदारी यह दिल से निभाती हूं ,
पर अपने लिए समय ना निकाल पाती हूं।
इसी तरह न जाने कब, इतने साल बीत गए,
फुर्सत ना मिल पाने के, वह दिन अब रीत गए।
अब तो फुर्सत ही फुर्सत है, कभी-कभी ये भी चाय बना लेते हैं,
कभी झगड़ते कभी मुस्कुराते हम दोनों अब कुछ पल साथ बिता लेते हैं।
साथ है जीवन साथी का, यही साथ निभाएगा,
अपनी दुनिया बसाने को हर परिंदा उड़ जाएगा,
सीपी का मोती सीपी में, कब तक रह पाएगा,
सीपी से निकलकर ही तो और कहीं जगमगाएगा।
मेरा घर जो मेरे बच्चों से गुलजार था, अब थोड़ा वीरान है,
कहने सुनने को घर में बस दो ही इंसान हैं।
भले नींद ना होती हो पूरी, ना एक पल आराम था,
पर सच कहूं इस सुकून से अच्छा वह पहले वाला कोहराम था।
लीक से हटकर
सपना जो देखा तूने, साकार किया,
मुश्किलें जो आईं, पलटवार किया,
दूभर राहों पर तू अकेली चली,
तू हर हाल डटकर चली
तू लीक से हटकर चली।
असफलता को स्वीकार किया,
कमी रही जो सुधार किया,
गिरते पड़ते संभलकर चली,
तू हर हाल डटकर चली
तू लीक से हटकर चली।
संघर्षों का मैदान ना छोड़ा,
काबिलियत से मुंह न मोड़ा,
पीठ पर लाद हौसला बढ़ती चली,
तू हर हाल डटकर चली,
तू लीक से हटकर चली।
इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास,
अर्जुन सा लक्ष्य बहुत खास
तू निरंतर बढ़ती चली ,
तू हर हाल डटकर चली ,
तू लीक से हटकर चली।
राहें ये तेरी आसान ना थी ,
पापा के चेहरे पर ये मुस्कान न थी,
मम्मी की खुशी तू बढ़ाती चली,
तू हर हाल डटकर चली ,
तू लीक से हटकर चली।
परिवार का बढ़ाया मान,
पीढ़ियां करेगी बरसों गुणगान,
असफलता की आंधियों से लड़ती चली,
तू हर हाल डटकर चली,
तू लीक से हटकर चली।
देखेगा जमाना तेरी उड़ान,
उड़ने को है सारा आसमान,
तू भय से लड़ना सीखती चली,
तू हर हाल डटकर चली,
तू लीक से हटकर चली।
खत्म हुआ सब्र का इम्तिहान ,
बनाया तूने एक खास मुकाम,
कदमों के निशान छोड़ती चली,
तू हर हाल डटकर चली,
तू लीक से हटकर चली।।
हिम्मत
आदरणीय बशीर बद्र जी के शेर से प्रेरित कविता
ना उदास हो, ना मलाल कर,
किसी बात का ना ख्याल कर।
रख हिम्मत और हौसला
ना खुद को यूं बेहाल कर।
आईने में खड़ा शख्स
कह रहा है तुझसे, जरा सुन
बेवजह अपने परवाजों पर
ना यूं सवाल कर।
कुछ मन की कर ले,
जो मन करे
इस मनचले मन का भी
कुछ ख्याल कर।
तूफानों से प्यार कर,
ले कर लहरों से स्वर,
जिंदगी के संगीत में
अपनी एक ताल कर।
डर के उस पार
है तेरी मंजिलें,
डर को डराने को
साहस की एक ढाल कर।
हारना और जीतना
है मंजर आखिरी
कुछ करने की ठान कर
तू बस कमाल कर।
कौसर भुट्टो
मूलतया बीकानेर, राजस्थान की रहने वाली कौसर भुट्टो गत 4 वर्षों से अपने परिवार के साथ दुबई में रह रही हैं। कौसर जी सूक्ष्म जीव विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं तथा वर्तमान में महिला काव्य मंच, दुबई की सचिव, अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका साहित्य सारांश के संपादक मंडल की सदस्य तथा सामायिक परिवेश पत्रिका के अंतर्राष्ट्रीय अध्याय की उप संपादक हैं। आपकी कवितायें UAE से प्रकाशित हिंदी की पहली पुस्तक ‘सोच’ (हिंदी इमाराती चश्मे से) में सम्मिलित एवं आपकी कविता को स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य पर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित पुस्तक `भारत काव्य पीयूष` के लिए चुना गया, जिसमें 8 देशों के 115 कवियों का चयन किया गया था। भारतीय दूतावास, न्यूयॉर्क से निकलने वाली मासिक पत्रिका अनन्य, यूएई में कविताएं तथा रिपोर्ट प्रकाशित, अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में उपन्यास समीक्षाएं प्रकाशित। भारतीय कौंसल आवास, दुबई समेत अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों का संचालन तथा सक्रिय भागीदारी।
कौसर भुट्टो ने अपने दादाजी जनकवि मोहम्मद सदीक भाटी जी की अप्रकाशित रचनाओं को एकत्रित कर उनका चौथा काव्य संग्रह चैते रा चितराम प्रकाशित करवाया। आपके दादाजी जनकवि मोहम्मद सदीक भाटी (1937-1998) हिंदी और राजस्थानी भाषा के जाने-माने कवि थे। दिल्ली नेशनल लाइब्रेरी में उनकी कविताओं की 13 अंतर प्रांतीय भाषाओं में अनुवादित पुस्तकें है। राजस्थान शिक्षा बोर्ड के कक्षा बारहवीं के ऐच्छिक विषय राजस्थानी के पाठ्यक्रम में भी उनकी कविताएं सम्मिलित हैं।