मेरी पसन्द

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

निरंजन देव शर्मा

अंतिम पलायन

अब यहां सिर्फ
देव मानव रहते थे
रथों पर आरूढ़
आक्सीजन मास्क
और अचूक अस्त्रों से लैस
चिड़ियां तो कभी की कर चुकी थीं पलायन
और सरक चुके थे बनैले मानव भी
इधर-उधर के हाशियों पर

या फ़िर धकेल दिए गए थे
पलायन की इस प्रक्रिया में
दुनिया के अंतिम छोर तक
जहां भभकती बासी हवा थी
और जल था कि काला कीच
यह अंतिम पलायन था
इस धरती पर
और अंतिम रुदन भी

दुनिया के इस अंतिम छोर पर
विलुप्त घोषित कर दी गई
चिड़ियां जमा थीं
नियति की बलि चढ़ने के लिए
यह उनके एक साथ होने का विश्वास था
या फिर इस पलायन के बाद
कुछ भी न खोने का अहसास
या विलाप के बाद शुरू हुआ
सदा चुप रहने वाली चिड़िया का गान

कुछ तो था
कि चिड़ियों की चोंच लंबी होनी शुरू हो गई थी
जिसे कीच में सिर उठाये खुरदुरे पत्थर पर
वे पैना कर रही थीं
डैने कड़े हो रहे थे उनके
और पंजों के नाखून तीखे

दुनिया के अंतिम अंधेरे कोने में
उम्मीद छोड़ चले बनैले मानवों के बीच भी
जा पहुंचा था
चुप रहने वाली चिड़िया का गान
और कंपकंपाता हुआ
गुनगुनाया जाने लगा था
ठंडी सीलन भरी रातों में
उम्मीद की थरथराती लौ जैसा

घुलने लगा था यह स्वर
हताश जन गण के क्लांत स्वर में
किसी रसायन की तरह
और घुप्प अंधेरे में डोलता रक्ताभ साया
गुजर गया था बनैले मानवों के बीच से
या फ़ैल गया था वहीं
आग के ताप की तरह

अनायास न था कि
दांत निकलने लगे थे
उनके भी बाहर
मजबूत और पैने
तन गई थीं मांस पेशियां वज्र सी
सूख गया था आंखों का पानी
और खाल हो गई थी कड़ी
किसी अभेद्य कवच सी

फिर जो देखा लोगों ने वो कहते हैं स्वप्न ही था
रथों पर आरूढ़ उड़े जा रहे देव मानवों पर
हमला बोल दिया था पैनी चोंच वाली चिड़ियों ने
डोलते हिचकोले खाते रथ
गिरने लगे थे धरती के अंतिम छोर पर
जिन्हें घेर लिया था फड़कती भुजाओं वाले
बनैले मानवों ने
चारों ओर से

निष्क्रिय साबित हो रहे थे
देव मानवों के अत्याधुनिक अस्त्र
बनैले मानवों की कवच काया पर

कुछ रथों को पहियों से पकड़ कर
सवारों समेत घुमा कर उछाल दिया था
कड़ी मांस पेशियों वाली भुजाओं ने
अनंत अन्तरिक्ष की ओर

बाकियों का जो हश्र हुआ
उसका गवाह
काला कीच है
जिसमें तैर रहे थे
देव रथों के भग्नावशेष
लिथड़े हुए भंग अंग
और लाल चकते लहू के

 

 

आवाजें

कुछ आवाजें होती हैं
जिनका सुनाई दे जाना ही
खौफज़दा कर देता है उन्हें
दफ़न कर दी जाती हैं
ऐसी आवाजें
संदूक में
तिजोरी में
अलमारी में
दीवारों में
चुनवा दी जाती हैं ईंट गारे से

फ़िर भी आवाज़ें हैं कि
रिसती रहती हैं
दरीचों से
स्याही की तरह

भटकता हुआ कोई कलमकश
समेट लेता है उन्हे स्याही के दवात में
वहां से गुज़रते हुए
और दर्ज कर लेता है पन्नों पर
हर्फों की शक्ल में

और पन्ने हैं कि
निकल पड़ते हैं
सफ़र पर
किसी के भी साथ

 

 

सियार, भेड़िये, शेर और राग भीमपलासी

यदि आप एक साथ सियारों की तरह चिचियाने और भेड़ियों की तरह गुर्राने की कला नहीं जानते तो आप शेर के साथ नहीं हो सकते
और यदि आप शेर के साथ नहीं हैं तो शेर आपकी गर्दन को जबड़े में पकड़ कर झटक देगा और आपकी गर्दन एक तरफ़ लुढ़क जायेगी
जैसा कि आपने देखा होगा दिल्ली के चिड़ियाघर में, बाड़े में धकेले गए (खबर के अनुसार जा गिरे) अकेले आदमी की गर्दन को जबड़े में भींच एक ही झटके में मरोड़ दिया था शेर ने, जब वह आदमी धकेला गया तो बाड़े में शेर के सामने अकेला था और बाकी के लोग जो ताली ठोकना ही जानते थे, मूक दर्शक बन गए थे, तो जनाब, गर्दन भी कहां से बचती
मूक दर्शकों में से किसी ने उसे धकेले जाते हुए नहीं देखा, बाकी जो बोल सकते थे और जिनकी गर्दन बची हुई थी और जिन्हें सियारों की तरह चिचियाने और भेड़ियों की तरह गुर्राने की कला नहीं आती थी वह चुप थे जाहिर है, बोलना अकेले पड़ जाना था
समझ लीजिए कि आप एक साथ चिचियाने और गुर्राने की कला सीख नहीं जाते तो आपका जीवन निरर्थक है, आपकी उपलब्धियां भी, आपकी बुद्धिजीविता तो शेर के किसी काम की नहीं, उसकी गंध तक से शेर को नफ़रत है
ध्यान से देखो लोग सियारों और भेड़ियों की तरह झुण्ड बना लेने की कला में माहिर हुए जा रहे हैं, ऐसे कि आप पता ही नहीं लगा सकते कि चिचियाए या कि गुर्राए
कुछ ऐसा स्वर पैदा करते हैं कि रियाया अनायास ताली ठोकने लगती है,
पता नहीं ध्वनियों से आनंदित हो कर या भय से आतंकित हो कर
रियाया का ताली ठोकना और इस कला में पारंगत लोगों का एक साथ चिचियाना और गुर्राना अद्भुत राग पैदा करता है
यह राग शेर को मुफ़ीद बैठता है और वह आल्हादित हो कर कह उठता है
वाह !
वाह !! वाह !!
वाह ही वाह !!!
आप अकेले बैठ कर गाते रहिए राग भीमपलासी, किसके पल्ले पड़ता है, शेर तो पल्ला ही झाड़ लेगा, और कला में पारंगत लोग लग जायेंगे भेड़ियों की तरह गुर्राने, चिचियाते तो वे केवल शेर के सामने हैं
झुण्ड बना कर लग जायेंगे आप के पीछे और घेर लेंगे आपको सरेआम, अपनी खुरदुरी जीभ से उधेड़ेंगे आपकी खाल मज़े-मज़े और जीभ लपलपाते हुए चाटेंगे लहू आपका
ठीक उसी वक्त जब आप नीम बेहोशी की हालत में होंगे शेर आएगा और आपकी गर्दन को अपने मजबूत जबड़े से झटक कर इत्मीनान से चला जाएगा

 

 

पेड़ बांटने वाली लड़की

 

वह पेड़ बांटती थी
पोथियां नहीं जीवन बांचती थी
खींच देती थी एक रेखा
चली आ रही रेखा से लंबी
यही तरीका था उसका विरोध दर्ज करने का
और जीवन के मायने खोजने का भी

 

 

सपने में गुच्छी

रामचंद ने सपना देखा
देखा कि
जंगल में मार निकल आई हैं गुच्छियां
किलटे के किलटे भर रहा है परिवार
ब्याज समेत चुक जाएगा
लाख से तीन लाख हो चुका
गोडी लाले का उधार
छूट जायेगी गिरवी रखी ज़मीन
सोच रहा वह सपने में
आ जायेगी देसी गाय भी
और अंग्रेजी की सस्ती बोतल
चल पड़ेगी जिंदगी
फ़िर से धीमी चाल

कर्जे में रामचंद
उठा ले गए लाला के गुंडे ऑटो
नहीं चुकता करने पर क़र्ज़
सेब के सीज़न में कमा कर
चलो ब्याज ही चुका देता
ये तो
भला आदमी है जंगल गार्ड
मजबूरी समझता है
बोल-चाल के ही काटा था पेड़
चलो राशन पानी ही जुगाड़ लिया
बोतल लगी एक और मुर्गा
वर्ना बड़ी सख्ती है आजकल
सर्दी में बर्फ गिरेगी
आयेंगे चिरानी
कुछ और पेड़ कटेंगे
चुल्हे जलेंगे
दारु और सुल्फे का भी तो
करना होता है जुगाड़
बिना सुट्टा लगाये तो बाउजी
शरीर चलता ही नहीं

 

 

 

निरंजन देव शर्मा

 

हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले में जन्मे निरंजन देव शर्मा की आरम्भिक शिक्षा कुल्लू में हुई, आपने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की। निरंजन देव शर्मा के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पिछले कई वर्षों से निरन्तर आलोचनात्मक लेख एवं समीक्षाओं के अतिरिक्त कहानियां और कविताएं भी प्रकाशित हो रही हैं। आपने साहित्यिक पत्रिका ‘असिक्नी’ के शुरुआती अंकों का सम्पादन भी किया है। आप एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्यक्रम सम्बन्धी परियोजना सहित शिक्षा सम्बन्धी कार्यशालाएं एवं लेखन कार्य कर रहे हैं।

नोट-यह परिचय और फोटो गूगल पर दी गयी सूचना के आधार पर है

Post a Comment