कविता के बारे में

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सुभाष राय की कविताएं

 

जनसंदेश टाइम्स लखनऊ के प्रधान संपादक सुभाष राय की कविताएं विद्रोही मन की अभिव्यक्ति के स्वर हैं। कविता सिर्फ वह नहीं जो सिर्फ कवि मन को छूए, कविता जिसे पढ़कर पाठक, सुनकर श्रोता का अन्तर्मन उद्वेलित हो उठे। सुभाष राय की ऐसी ही कुछ कविताएं उनके नये संग्रह ‘मूर्तियों के जंगल में’ से –

 

 

  1. नीरो

 

खतरनाक बात यह नहीं

कि रोम जल रहा है

खतरनाक बात यह है

कि अब आग रोम के अलावा
छोटे- छोटे गांवों में
भी दाखिल हो गयी है

आग नीरो ने ही लगायी है

वह चाहता है कि आग धधकती रहे

ताकि वह अपने शत्रुओं

को लांछित कर सके

 

मजेदार बात यह है कि विरोधी भी यही

चाहते हैं कि आग भड़कती रहे ताकि

वे नीरो को नाकाबिल ठहरा सकें

 

सबसे खतरनाक बात यह है

कि तमाम लोग नीरो की बांसुरी सुन रहे हैं

उसकी कला पर कुर्बान हो रहे हैं

उन तक कोई आंच नहीं पहुंच रही

उन्हें तो कहीं धुआं भी नजर

नहीं आ रहा

 

  2. महिमा

 

 

नहीं पता उस धूलि का क्या हुआ

जो उनके चलने से उड़ी

उस पानी का क्या हुआ

जिससे उनके चरण पखारे गये

उन सब लोगों का क्या हुआ

जिन्होंने कभी न कभी

उन्हें स्पर्श किया, उनका स्पर्श पाया

पर इतना पता है कि जिन्होंने भी

उनके चरणों में शरण ली

उनका कल्याण हुआ

उनके दुश्मन मारे गये

उन्हें सत्ता मिली, सुख मिला

 

यह भी पता है कि उनके

स्पर्श में चमत्कार है

उन्होंने एक पत्थर को छुआ

और वह सुंदर स्त्री में बदल गया

उनके चरणों की महिमा आज भी बरकरार है

उनके चरण छूकर ही अपने

अभियान पर निकलते हैं हत्यारे

 

    3. एक था राजा

 

सोने की चिड़िया फड़फड़ाती
रहती है उसके जेहन में
अतीत से सम्मोहित राजा
अच्छे दिनों की चर्चा करते-करते
लौट जाता है इतिहास में

वह सिंहासन पर बैठा है, जय जयकार के बीच
आस्था और विश्वास की रक्षा के लिए उत्साहित हैं समर्थक
तर्क को कुफ्र घोषित कर दिया गया है
और काफिरों के कत्ल का हुक्म है

सजा देने की पुरानी तरकीबें आजमायी जा रही हैं
लाठियों‌ से गला घोंट देना, पीट-पीट कर मार देना
पत्थरों से कुचल देना, हाथ-पांव काट लेना

सबको हिदायत है, राजा से मिलें तो मुस्करायें
अन्न से ज्यादा जरूरी है खुशी, इसलिए खुश दिखें
किसी को कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं
लिखें तो प्रशस्तियां लिखें या फिर कुछ न‌ लिखें

वह अपनी जमात का एक राष्ट्र बनाना चाहता है
जो लोग भी जमात में आना चाहें स्वागत है

बाकी लोग चाहें तो खुदकुशी कर लें
भीड़ निकल पड़ी है विधर्मियों की पहचान के लिए
उन सब हरामजादों को पीट-पीट कर मार दिया जायगा

औरतों से कहा गया है बेवजह चौखट न लांघें
लोग चौराहों पर नंगा कर रहे स्त्रियों को
और निर्ममता से फाड़ रहे उनका स्त्रीत्व

कुछ घायल गायें खड़ी हैं निरीह अपना ही रक्त चाटते हुए
कोई उनके पास जाने का साहस नहीं कर रहा
इसमें‌ जान गंवा देने का जोखिम है

प्रजा को साफ-साफ कह दिया गया है
राजा सबसे बड़ा सच है, याद रखें, बाकी सब भूल जायं
राजा स्मृति की मोटी खोल‌ में जाकर बैठ गया है
और समूची क्रूरता और बर्बरता के साथ
इतिहास लौट आया है वर्तमान में

    4. खबरों में

खबरों में छाया है एक जादूगर
वह मूर्तियां ढहाता है, बनाता है
किसी का भी नाम बदल देता है
और प्यार से हिदायत देता है
आगे इसी नाम‌ के साथ जियो तो बेहतर होगा

वह कई भाषाओं में बोलता है
अपने लिए उसने नयी भाषा गढ़ी है
अक्सर उसके सैनिक उसका इस्तेमाल करते हैं
वह बिना लड़े सबको परास्त करना चाहता है

जब से वह खबरों में आया है
बाकी खबरें अकाल मौत की शिकार हो गयी हैं
अखबारों में, चैनलों पर छा गयी हैं भटकती हुई आत्माएं
स्वर्ग की सीढ़ियां खोज ली गयी हैं
पाताललोक का मार्ग खुल गया है
हनुमान और अश्वत्थामा के
पांवों के निशान मिल गये हैं
इन सबको जोड़ती हुई एक ट्रेन चलने वाली है

एक ओझा बीमार बच्चे की छाती पर
चढ़ कर हुमचता है और उसे चंगा घोषित कर देता है
ज्यादा गंभीर बीमारी की हालत में
वह उसे कंधे तक उठाकर पटक देता है

खबरों में झूठे हैं, झूठों की फौज है
सारे लबार हैं, उनका सरदार है

 

     5. ठोंक दिया जायेगा

 

आका ने एलान किया है

गोली का जवाब गोली से दिया जायेगा

जो ज्यादा जबान चलायेगा

उसे ठोंक दिया जायेगा

 

पागल सिपाहियों ने अपने

विवेक को ठोंक ‌दिया है

अब वे किसी को भी ठोंक सकते हैं

बहुत सवाल पूछती हैं अदालतें

उनकी कनपटी पर बंदूकें रख दी गयी हैं

जैसे ही आका का हुक्म‌ आयेगा

उन्हें भी ठोंक दिया जायेगा

 

हुक्म के गुलामों को उन सबकी तलाश है

जो अंधेरों से नहीं डरते और काली

रातों में भी सड़कों पर निकल आते हैं

जो प्रेम, दुःख और बगावत के गीत गाते हैं

 

ऐसे सभी लोग एक न एक दिन

अपने घरों‌‌ से उठा लिये जायेंगे

और एक कहानी के किरदार बना दिये जायेंगे

इसके बावजूद जो बच जायेंगे

उन्हें रात-बिरात सड़क पर रोक लिया जायेगा

और वजह पूछने पर ठोंक दिया जायेगा

 

  1. दर्प की उड़ान

उसने तर्क, ज्ञान और
असहमति की हर उड़ान को
मार गिराने की ठान ली है
लोगों को हिदायत दी गयी है
फिलहाल सोचना बंद कर दें
आसमान में अभी खतरे हैं

मंदिरों में घंटे बज रहे हैं‌ लगातार
उत्तेजना में तमाम लोगों के बाल
सफेद हो गये हैं यकायक
मूर्तियों से बाहर निकल आयी हैं देवियां
पागल गंध से भर उठा है देश

उसे राम चरित मानस याद आ रहा है
जो उसे प्रेम नहीं करते, उन्हें डराना होगा
नहीं डरे तो मार गिराना होगा

  1. भगवान सोने जा रहे

धीम..धीम..धित्तान,

धीम..धीम.. धित्तान
मोहक संगीत गूंज रहा था मंदिर प्रांगण में
कुछ ही पल में झूमने लगा मेरा माथ, फिर समूची देह

भगवान सोने जा रहे थे

वे थक जाते हैं पूरे दिन सुनते-सुनते रुदन, निवेदन
उन्होंने तय कर रखा है कि अन्याय, दुख, वेदना, छल
जो कुछ भी होगा, होने देंगे, दखल नहीं देंगे कहीं
बिना विचलित हुए लगातार देखना, सुनना

क्या कम मुश्किल है

कोई भूखा है, कोई बीमार, कोई ईर्ष्या से भरा हुआ
कोई क्रोधी, कामी, कोई निःसंतान, पापी, पाखंडी
अनहद महत्वाकांक्षाओं के साथ आए हैं हजारों-हजार लोग
किसी को रस्ते से हटाना है, किसी को शिखर से गिराना है
किसी को मुकदमे में फंसाना है

भगवान भी थक जाते होंगे काम करते-करते

वे नियम-क़ानून के, टाइम के पाबंद हैं
अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं
समय से खाते हैं, पीते हैं, सो जाते हैं

संगीत बज रहा था गर्भगृह में, लोगों के दिमागों में
तमाम लोग आए थे देखने भगवान का शयन

भक्त पक्का कर लेना चाहते थे कि भगवान सो गए

भगवान ने कभी भक्तों से नहीं कहा
यार आज मेरे लिए कुछ न करो, मैं खुद खा-पी लूंगा
जब कभी भगदड़ हुई, लोग कुचल कर मरे
तब भी उन्होंने भक्तों को आगाह नहीं किया
अफवाह उड़ाने वालों  को भी नहीं टोका
रोगी, भिखारी, पाकेटमार, सबको भरोसा था

कि भगवान उनके लिए भी कुछ न कुछ जरूर करेगा

जनेऊ धरे, चुटियावान तमाम दूत घूम रहे थे चारों ओर
सीधे भगवान तक पहुंचाने का टिकट लिये हुए
साक्षात दर्शन कराऊंगा, सोचिये मत, फैसला कीजिए
आप आए नहीं हैं, भगवान ने आप को बुलाया है

वहां नर्मदा भी थीं, रौंदी जाती हुई, उदास, म्लान
भक्त पूजा के कचरे से उनका पेट फाड़ देने को तत्पर थे

उनका सीना चीरती हुई दिन भर दौड़ रहीं थीं निर्मम नौकाएं
वे थर-थर कांप रहीं थीं, उनकी चीख गले में अटक गयी थी

भगवान् को गर्भगृह में कैद कर लिया गया था
या उन्होंने खुद ही चुना था प्रशस्तिवाचकों से

घिरे-घिरे बंदी की तरह जीना
चोर, उचक्के, पंडे, सब जानते थे कि जब तक

भगवान हैं, उन्हें कुछ भी करने की छूट है

मैंने भगवान को बहुत पुकारा
बताया कि तुम्हारा डमरू बिक रहा है बाजार में
तुम्हारे त्रिशूल को इस्तेमाल कर रहे हत्यारे
तुम्हारी जटाओं से निकली गंगा गंदी हो गयी है
तुम्हारी तीसरी आंख में भर गया है कीचड़
बिना गरल पिए ही होश खो चुके हो तुम

मैंने पूछा कई बार, क्या कर रहे हो
कुछ तो बोलो पर कोई आवाज नहीं आयी
मैंने मिन्नत की, सोना मत पर वे फिर सो गये
शायद सोये ही थे वे प्रथम कल्पना के बाद से

संगीत तेज़ हो गया था, सब झूमने लगे
मैं भी संगीत में डूबने लगा
धीम-धीम धित्तान
धीम-धीम धित्तान

8. ईश्वर

जब शहर में दंगे हो रहे थे
मेरे चेहरे से खून टपक रहा था
मैं चिल्लाया, हे ईश्वर!
सच-सच बताओ
क्या तुम यही चाहते हो
कि लोग आपस में‌ ही कट मरें
वह खामोश रहा

जब एक बच्ची को
कुछ वहशियों ने
पहले बुरी तरह रौंदा
फिर जलाकर मार दिया
मैंने ईश्वर को आवाज दी
मैं जानना चाहता था
बच्ची का दोष क्या है
वह खामोश रहा

जब भी संकट आया
मैंने बार-बार पुकार लगाई
वह खामोश रहा
आखिरकार एक दिन मुझे
उसके होने पर शक हुआ
मैं चिल्लाया, अस्वीकार करता हूं तुझे
मैंने सोचा शायद वह खुद को
इस तरह अस्वीकार किया जाना
स्वीकार न कर सके
लेकिन तब भी वह खामोश रहा

मैं हर किसी से पूछ रहा हूं
क्या वेदना के किसी पल में कभी
ईश्वर ने तुम्हारे माथे पर हाथ रखा
कोई कुछ बोलता नहीं

 

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