विशिष्ट कवि
हेमन्त शेष की कविताएं
इमारती मजदूर
रक्त से भरे पच्छिम के आसमान में शाम का रंग उतर गया है
अपने दड़बों खोलियों चालों में लौटने का वक्त कनपटियों में बजता हुआ
प्रोटीन और विटामिन की कमी के बिना भी
ख़त्म होता है एक और दिन धूल में नहाये इन के खून में
अक्सर ठेकेदार देते हैं उन्हें दहाड़ी काटने की धमकी
गालियाँ आदत की तरह भाषा में शामिल हैं
फावड़े तगारें तसले तुक्के ढांच परातें बल्लियाँ और फंटे उन्हें दिखते हैं स्वप्न में
सीमेंट को कंक्रीट से मिलाने वाली मशीन का रोलर घूमता घरघराता रहता है नींद में
देखते हैं वे अठारवीं मंजिल पर बांस की एक बल्ली पर
भारी पत्थर ले कर चलने की कोशिश में चिल्लाते हुए नीचे गिर रहे हैं
अपने शव देखते २ वे उठ जाते हैं हकबकाते हुए और
कांपते हुए हाथों से टिफिन में भरते हैं
ज्वार-बाजरे की चार लद्धड़ रोटियां और आलू की सब्जी सूखी
जो वे दुपहर का भोंपू बजने के बाद ही खा सकेंगे
फाटक पर जड़ा है काले ग्रेनाइट पर पीतल में उभरा कोई अज्ञात नाम जिसके पीछे
एक जर्मन शेफर्ड औए दो विकट डोबरमैन भोंक रहे हैं
तीन वर्दीधारी मुच्छल सीक्योरिटी गार्डों के पीछे
लुओं को पराजित करते भीतर दसियों ए सी चल रहे हैं
और संगमरमर के गुसलखानों में नहाती औरतों के छींटे
इतालवी टाइलों पर मोतियों की तरह गिर रहे हैं
उन्होंने ही बनाया है महल जैसा यह भव्य मकान
फावड़ों तगारों तसलों परातों बल्लियोंऔर फंटों का ख्वाब देखते हुए
पर अब वे आजन्म इस में दुबारा कभी नहीं जाएंगे
उन्हें देखना है ढूँढना है एक दफा फिर से
रखने को चार टिक्कड़ टिफिन में
बनता हुआ ऐसा मकान
जहाँ सीमेंट को कंक्रीट से मिलाने वाली मशीन का चक्का घूम रहा हो
और जड़े जाने के लिए इंतज़ार करते हों महंगे संगमरमर के चौके
ग्रेनाइट के फर्श इतालवी टाइलें नयी शैली के फानूस
जहाँ कुछ लावण्यमयी देहें उनके बनाये स्नानगृहों में
सुगन्धित छींटे उड़ाती
नहाना चाहें भविष्य में
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पत्रकार-वत्रकार नहीं त्रिभुवन
अगर त्रिभुवन एक पत्रकार है तो
हमेशा की तरह इस वक़्त भी खबर के पीछे क्यों लगा है
किसी पांचतारा-बार में क्यों नहीं नहीं अभी वह
वह रोज़ रोज़ रोज़ रोज़ मुफ्त की शराब पी कर
हर एक को गालियां क्यों नहीं बकता फिरता
उस ने मुख्यमंत्री से मिल कर
अपने लिए सरकारी मकान क्यों नहीं हथिया लिया अब तक
वह नेताओं को धमकियां और अफसरों को घुड़कियां क्यों नहीं देता
वह रोज़-रोज़ पार्टियों में क्यों नहीं जाता
वह बस में टिकट खरीद कर यात्रा क्यों करता है
आखिर क्यों बिना पास के भी वह संगीत सुनने जाता है
नाटक सिनेमा देखता है तो क्यों खुद के पैसे दे कर
वह अपनी बनाई खबर के खुद प्रूफ क्यों देखता है
उसने किसी सेठ किसी पुलिसिए किसी भूमाफिया सरगने से
दोस्ती क्यों नहीं गांठी अब तक
कितने जूनियर लिखते हैं उस के नाम से छपने वाली खबर
वह संवाददाता सम्मेलन में
एक लाइन भी न लिखना जानते हुए लंगड़े प्रमंत्री के साथ विदेश हो आये
बापूनगर के श्रीयुत धीजैन की तरह
सब से आगे की लाइन में क्यों नहीं बैठा दिखता हर सम्मलेन में
वह लम्बी कविता लिखता है और वह भी शूद्र की व्यथा पर, क्यों?
धत्त ! कैसा और काहे का पत्रकार है त्रिभुवन ?
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सत्तरवां साल
‘इस बार कुछ होगा’ यह वाक्य मन में आते ही लगा ‘कुछ तो होगा’ के अंतर्गत आज के भारत में क्या-क्या संभव है ?क्या मोहल्ले की अठारह महीने से टूटी सड़क बन जाएगी नलों में पूरे वक़्त पानी आने लगेगा डीज़ल पेट्रोल के दाम कम होंगे दालें सस्ती होंगी बलात्कार रुक जाएंगे नेता काम करने पर ध्यान देंगे मेरी अप्रकाशित किताबें छप जाएंगी माँ के घुटनों का दर्द ठीक हो जाएगा बच्चे मजदूरी करने पर मजबूर नहीं होंगे स्त्रियों का सम्मान किया जाने लगेगा साम्प्रदायिक दंगे रुक जाएंगे गरीब दोनों वक्त सम्मान की रोटी खा सकेंगे साफ़ सुथरेमकान झुग्गी झोंपड़ियों की जगह ले लेंगे शिक्षित लड़के बेरोजगार नहीं फिरेंगे लड़कियां गर्भ में ही मार नहीं दी जाएँगी बेईमानों और भ्रष्टों को ठिकाने लगा दिया जायगा सीमा पर रोज़-रोज़ सैनिक प्राण नहीं गंवाएंगे काले धन पर रोक लगेगी चुनाव-सुधार लागू होंगे औरतें सम्मानजनक जीवन जीने लगेंगी बच्चे कुपोषित नहीं होंगे बीमारियों का सफाया होजायगा हर गाँव में पाठशाला होगी हर घर में बिजली पीने को साफ़ पानी चोर-बाजारी और ब्लैक-मार्केटिंग रुक जाएगी न्याय-प्रणाली तेज़ सुगम और सस्ती होगी संसद बिना शोर-शराबे चलेगी समुद्रों और नदियों को साफ़ सुथरा किया जाएगा
किसान आत्महत्या पर मजबूर नहीं होंगे
आदिवासियों का शोषण रुक जाएगा
तीर्थस्थल साफ़-सुथरे होंगे
बगीचों में बड़े फलदार पेड़ और नर्म दूब होगी
स्कूलों में पूरी संख्या में योग्य मास्टर
बीमारों का फ़ौरन से भी पहले इलाज होगा और बिलकुल मुफ्त
सड़कों पर फुटपाथों पर अवैध अतिक्रमण रुक जाएंगे
थमेगा अवैध खनन रेंसम और थानों की हफ्ता वसूली
रेलें पटरी से उतरना बंद कर देंगी
सड़क-हादसों में लोग मरना बंद कर देंगे
पशु-पक्षियों से प्यार करेंगे
अपराधों की प्रभावी रोकथाम की जायगी
हत्यारे खुले-आम नहीं घूमेंगे
अखबार और मीडिया अधिक नैतिक बनेंगे
पत्रकार बिकने से मना कर देंगे
फ़िल्में ऊंचे दर्जे की ही बनाई जाएँगी
गाने द्विअर्थी अश्लील नहीं होंगे
‘इस बार कुछ होगा’ की सूची इतनी लम्बी है कि बस
पूरे होते होती फिर से एक और, अगले आम चुनाव आ जाएंगे
और हम अंगुली पर अमिट स्याही लगवाने के लिए
फिर एक बार वोटिंग मशीनों के सामने ठिठुरते या
धूप में पसीना पोंछते हुए कतारबद्ध मिलेंगे
ये सोचते और चाहते हुए : ‘इस बार ज़रूर कुछ होगा’
और हमारी जिंदगियां बदल जाएँगी
फिर अगले पांच साल तक यही सोचेंगे, सोचते रहेंगे
ज़रूर कुछ बदलेगा ज़रूर कुछ होगा अच्छे दिन आयेंगे
पर हम पृथ्वी के
परम धैर्यवान अहिंसक संतुष्ट आशुतोष
घोर आशावादी ज़िम्मेदार नागरिक हैं
अगले पांच साल तक यही सोचेंगे, सोचते रहेंगे
अगर इस बार भी कुछ न हुआ तो क्या हुआ
हम उन्हें अगले चुनाव में देख लेंगे न !
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माननीय अध्यक्ष महोदय
माननीय अध्यक्ष महोदय मुझे क्षमा करें
उद्घाटन करने वालों को मैं अक्सर भूल जाता हूँ
बाकी जनता और सुधी श्रोताओं की तरह
जिनकी स्मृति क्षीण है
सिर्फ एक की तेज़ है याददाश्त शहर में
बंद गले के कोट को वह मीडियोकर जनवादी
इस्तरी में हर दिन डाल आता है
कल काम आना है उसी काले कोट को फिर-
शहर में होगा एक और मीडियोकर किताब का विमोचन !
हे प्रभु उनका अध्यक्षीय आसन
दिन दूना रात चौगुना फूले फले
मोहल्ले की धोबन की सर्वहारा दुआएं उस के साथ हैं !
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प्रेत-मुक्ति
-यहाँ तीस नागा साधुओं ने जीवित भू-समाधि ली थी ठीक दो सौ अड़सठ साल पहले…. इस मन्दिर की हर पूर्णिमा को सात बार परिक्रमा करके यहाँ से दो सौ इक्यावन गज दूर बने कुँए के पानी में नहाने से पुराने से पुराना चर्म-रोग ठीक हो जाया करता है…. बाबू साब ! यह मन्दिर राजगढ़ के चौहान राजा अंशुमान सिंह जी द्वारा पुत्र-प्राप्ति के उपलक्ष्य में बनवाया गया था-तब जब वह हर तरफ से निराश हो चुके थे और शिकार खेलते समय किसी तपस्यालीन साधु की गुफा तक पहुँच गए थे…उन संत ने तो बस एक चुटकी भभूत ही दी उन्हें आशीष के साथ दी थी… प्राचीन कुंड या बावड़ी के पास शनिचर जी महाराज की छः सौ साल पुरानी सवा हाथ बड़ी मूर्ति के सामने ! जिस के आगे के तीन खेत बाद हल जोतते वक्त निकला था असली नीलम का दो फुट ऊंचा वही शिवलिंग- जिसकी पूजा एक हज़ार साल से राजगढ़ के जूनागढ़ किले वाले मन्दिर में होती आई है…. ‘कोतवाली वाले भैरोंजी’ की भी उधर बड़ी मान्यता है क्यों कि भानगढ़ के पुराने किले से लेकर इसी मन्दिर तक जहाँ आप अभी खड़े हैं, एक लम्बी भूमिगत सुरंग थी, जो बाद में किसी अंग्रेज रेज़ीडेंट ने बंद करा दी और जहाँ बुधवार के दिन दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को न्योतने आज भी दंडोती ‘पर्कम्मा’ करते हुए कोई दो सौ लोग तो आए ही होंगे, ठीक इसी जगह के पास रावण कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले घास फूस बांस-खपच्ची और मिट्टी से बनाते थे यहाँ के कुम्हार- जिसे आ कर ठाकुर साब का हाथी गिराया करता था- विजय दशमी के दिन …..थोड़ा दूर चलें तो ‘फाजूजी की धर्मशाला’ कहलाती है ये जगह, जहाँ घरेलू जानवरों को रोगमुक्त हो जाने पर ढोक दिलाने लाया जाता है….. यहीं पीपल के पास प्रेत-बाधा दूर होती है और काले कम्बल वाले फ़कीर बाबा की छः सौ साल पुरानी मजार पर हर शुक्रवार को औरतों का साप्ताहिक मेला भी भरता है… चमत्कारी बरगद का ये बड़ा पेड़ देख रहे हैं न आप… जिसके चारों तरफ़ मान्यता मांगने के लिए लपेटे गए उन हजारों धागों और मौलियों की तरफ़ ज़रा एक निगाह तो डालिए- जिस बरगद के किनारे लंगड़े बालाजी का ये मन्दिर है ….वहीं सोमानी धर्मशाला के कुँए में राम जी का नाम लेकर फेंके गए पैसे पानी कभी पर तैरते थे हर पूर्णिमा को शाम की आरती के बाद मौली बाँध कर इस पेड़ के ग्यारह चक्कर लगाइए पुराने से पुराने पीलिया की तो बात ही क्या- ‘आंधासीसी’ का दर्द भी अपने आप ठीक हो जाएगा इसी तरह वहां मन्दिर की इस काली चिकनी शिला के नीचे दस पंद्रह मिनिट लेटने से औरतों को माहवारी की पुरानी से पुरानी समस्या से छुटकारा मिलता है आइये ये है- वराह अवतार का चबूतरा और उसके पास वो देखिये ‘रोजगारेश्वर महादेव’ जी का पुराना मन्दिर जहाँ हर शिवरात्रि की रात एक इच्छाधारी काला भुजंग नाग आता है- पुजारी की रखी चांदी की कटोरी से दूध पीने, और हाँ, तालाब के किनारे वो जो तेजाजी जी की मूर्ति है न वो भी कम चमत्कारी नहीं, चोर इसका चांदी का छत्र चुराने आये थे- सब अंधे हो गए…बाबूजी… परुशुराम बाबा की समाधि के पास जिसके ऊपर बनी संगरमर की छतरी डीडवाना के नमक का व्यापार करने वाले बंजारों के सरदार ने बनवाई थी इसे ‘नाहर भाटा’ भी कहते हैं क्यों कि गुसाईं शिवानन्द जी महाराज ने यहीं पर एक शेर को बकरी की तरह मन्दिर के उस खम्भे से बाँध दिया था अपने मन्त्रों के ज़ोर पर उसी शेर की एक मूर्ति भी महापुरा के गाँव वालों ने बनवाई थी- वो मूर्ति अब खटवाडा के गंगासहाय जी के गाँव वाले मनसा देवी के मन्दिर में अब भी देख सकते हैं आप जहाँ पास ही चावंड माता की जोत पिछली सदी से आज भी जल रही है और रोज़ का कोई एक डेढ़ सेर देसी घी आरती हवन और धूनी में लगता है वहाँ बजरंग बली का वह मंदिर है जहाँ पूरे साल भंडारा एक नागा साधु बाबा केदारनाथ चलाया करता है कहते हैं न देने वाले भी हनुमान जी और पाने वाले भी हनुमान जी…तो चलिए मेहंदीपुर, उनके दरबार में कभी कमी नहीं आई और साब… रामदेव जी के चबूतरे की तो आपने बात ही नहीं की …..पहली संतान के बाल यहीं पर दिए जाते हैं- और मिर्गी की बीमारी ठीक हो जाने पर मरीजों को यहीं लाया जाता है वो देखिये ‘चरण पहाड़ी’ के ऊपर पांडवों की गुफा – जिसमें उन्होंने चार महीने गुप्त प्रवास किया था….उस जगह, हाँ हाँ, उस शिला के पीछे एक शिव मन्दिर और है जहाँ की जलहरी का पानी कहाँ जाता है कोई नहीं जानता ! बावड़ी के बरगद के आगे, पुराने महावतों की तराई के पास मनसा माता की ये मूर्ति धरती फाड़ कर अपने आप निकली थी – यहाँ से सीधे चलिए तो आपको तीन मंदिर और मिलेंगे – सप्तदुर्गा का मंदिर , लक्ष्मण जी का मंदिर, और पीपलिया शिव का मंदिर, बाएँ घूमिये तो काल भैरव-मंदिर, गुप्तेश्वर की गुफा का गणेश मंदिर और दाहिने हाथ को पाबूजी का ठीया, और पास ही भैरूं जी का चबूतरा……चरण पहाड़ी पर कृष्ण भगवान के चरण चिन्ह देख लिए न आपने और वहां सीता की रसोई ?…”
इसके पहले कि वह बूढ़ा पुजारी कुछ और आगे कहता- मैंने देखा– मंदिर के शिखर से दो भयानक बूढ़े हाथ बाहर आये और देखते देखते मेरे भीतर के द्वंद्वात्मक-भौतिकवाद का गला दबा दिया उन्होंने तर्क की लाश पर खड़ा हूँ .
यही सोचता हुआ – क्या भारत खुद एक ज़िन्दा चमत्कार नहीं है …?
बस हमारे मार्क्सवादी दोस्त कुम्भ का मेला
एक बार देख भर आएं –
लौट कर वे भी भी
निर्मल वर्मा की ‘ धुंध में उठती धुन’
जैसी कोई चीज़ न लिख दें तो कहना !
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जंगली कमल
बच जाऊंगा डूबने से तोड़ दूँ मैं अगर तालाब का यह स्वप्न
(कि मुझे तैरना नहीं आता)
पानी में इस के अनगिनत दृश्य घुले हैं
युवा स्त्रियों की सुडौल पिंडलियाँ डूबी हुई
तिरछे कर के भर लिए गए घड़े
आधी झुकी डालियाँ बबूल की
अश्वत्थ के गिरे पत्ते इतिहास में
किनारे पर हनुमान जी उल्टा उनसे
कोने की थड़ी में बिना सिंदूर पुता एक नाई
किस ने उगाया होगा पहला कमल इस मूंडिया* गाँव में कोई नहीं जानता
बहुत विशाल पानी के बिस्तर पर अब वे हर इंच में
गुलाबी और हरी छींट जैसे काबिज हैं
लोग कमल के इन फूलों औरइनके गोल पत्तों को इतना ज्यादा जानते हैं कि
धूल भरी सड़क पर ताल की तरफ पीठ किये बस ताश खेलते रहते हैं
उन्हें पता है निवाई कस्बे का ट्रेफिक अभी जाम है
एक ट्रक के औंधे हो जाने से
देर सबेर रास्ता खुलेगा और
कोई न कोई सैलानी कैमरा थामे इन्हें फोकस करने
अपनी वातानुकूलित टैक्सी से उतर ही आएगा
पत्ता फेंकते हुए या फेंटते हुए पुरानी गड्डी
वे सिर्फ ताज्जुब करेंगे और कभी नहीं समझ पाएंगे
आखिर उनके गाँव के इन फूलों में उतर कर देखने लायक
आखिर ऐसा है क्या?
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* एक महत्वहीन गाँव जहाँ हज़ारों जंगली कमल अनायास उगे हुए हैं
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कुछ इस तरह जाना
( मित्र कवि त्रिभुवन के पहले काव्य-संग्रह का शीर्षक उलटते हुए )
कुछ तालाबों में फिर खिल जाएंगे कमल आने पर ऋतु खिलने की
कुछ अधबने मकान पूरे हो जाएंगे कुछ सपने अधूरे रह जाएंगे
कुछ खुशियाँ चिड़ियों की तरह हमारे दिलों में घोंसले बना कर उड़ जाएँगी
हमारी देहों से परे पुलों से रेलें गुज़र रही होंगी
पानी पुरानी तरह बहता होगा ढलान की तरफ
सूर्यास्तों की दिशा वही रहेगी
जिसके खिलाफ वही सूरज किसी पूरब में उगा होगा
रात में चमकती होंगी पहाड़ों पर कुछ रोशनियाँ
कहाँ जाते थे इस तरह दबे पाँव जहाँ जाना था हमें
क्या वह जगह थी या एक आवाज़ जो सुनाई दी प्रेम में या
प्रेम किसी सराय का कमरा था जिसे सुबह खाली कर देना था
कुछ जगहें शायद बस आवाज़ होती हैं या आहटें
कुछ इतिहास कुछ तस्वीरें कुछ यादें जवानियों के प्रेम में
ऐसी ही याद की किसी अज्ञात जगह से अपने भीतर
हम बार-बार लौट रहे होंगे
जब तालाबों में खिल रहे होंगे कमल और
कुछ अधबने मकान पूरे हो रहे होंगे-
एक रुलाई
एक अव्यक्त सुबकी
एक टीस की सूरत में
जिसे अपने वयस्क होने के कवच में
छिपा लेंगे हम पाप की तरह खुद अपने आप से !
9
वही कुत्ता
काठ की सीढ़ियों पर
एक जंगली कुत्ता ऐसे आत्मविश्वास और इत्मीनान से
सोया है जैसे वह पालतू हो
घर के लोग ताला लगा कर मेले में गए हैं
सस्ती कमीजों और रेडीमेड सलवार-कुर्तों की खोज में
हवा से हिलते हैं फाटक के पल्ले
और वह बार बार चौंक जाता है
कितना ही भरोसा हो उसे अपने पैने दांतों और भोंकने की क्षमता पर
इस दृश्य में वह एक अवांछित उपस्थिति है उसे पता है
उसकी असली जगह यहाँ नहीं है
पर दूर से देखने वालों को पालतू होने का भ्रम पैदा करता
घर वालों के लौटने तक
वह अभी इस परिसर का सम्राट है
पाठकों से प्रार्थना है :
कृपया इस कुत्ते को
हिंदी कविता के परिदृश्य में
ख़राब कवियों की उपस्थिति से जोड़ कर
न देखें
हेमन्त शेष
कवि, सम्पादक, कला-आलोचक, छायाकार, स्तम्भकार एवं चित्रकार ।
जन्म : 28 दिसम्बर, 1952 को जयपुर में । एम. ए. (समाजशास्त्र) , भारतीय प्रशासनिक सेवा से 2012 में सेवानिवृत्त ।
पता – 40 /158, स्वर्ण पथ, मानसरोवर, जयपुर – 302020 फोन – 0141-2391933 (निवास)
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
1. ’जारी इतिहास के विरुद्ध’ (लम्बी कविता) – लोक सम्पर्क प्रकाशन (1973) जयपुर
2. ‘बेस्वाद हवाएं’ (कवि-मोनोग्राफ) – राजस्थान साहित्य अकादमी (1981) उदयपुर
3. ‘घर-बाहर’ (कविता संकलन) – शिल्पी प्रकाशन (1982) उदयपुर
4. ’कृपाल सिंह शेखावत’ (कलाकार मोनोग्राफ) राजस्थान ललित कला अकादमी (1984) जयपुर
5. ‘वृक्षों के स्वप्न’ (कविता संकलन) – संघी प्रकाशन (1988) उदयपुर/जयपुर
6. ‘नींद में मोहनजोदड़ो’ (कविता संकलन) – पंचशील प्रकाशन (1988) जयपुर
7. ‘अशुद्ध सारंग’ (कविता संकलन) – पंचशील प्रकाशन (1992) जयपुर
8. ‘कष्ट के लिए क्षमा’ (कविता संकलन) – संघी प्रकाशन (1995) जयपुर
9. ‘रंग अगर रंग हैं’ (कविता संकलन) – बोहरा प्रकाशन (1995) जयपुर
10. ‘कृपया अन्यथा न लें’ (लम्बी कविता) – संघी प्रकाशन (1998) जयपुर
11. ‘आपको यह जान कर प्रसन्नता होगी’ (कविता संकलन)-नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2001) दिल्ली
12. ’जगह जैसी जगह’ (कविता संकलन) – भारतीय ज्ञानपीठ (2007) नई दिल्ली
13. ’बहुत कुछ जैसा कुछ नहीं’ (कविता संकलन) – वाणी प्रकाशन (2008) नई दिल्ली
14 ‘प्रपंच-सार-सुबोधिनी’ (कविता संग्रह)- बोधि प्रकाशन (2010) जयपुर
15. ‘खेद-योग-प्रदीप’ (कविता संग्रह)- बोधि प्रकाशन (2010) जयपुर
16 ‘रात का पहाड़’ (कहानी संग्रह) – वाग्देवी प्रकाशन, (2012) बीकानेर
17. ‘प्रायश्चित्त-प्रवेशिका’ (कविता संग्रह) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2018)
18. अफ़सोस-दर्पण (कविता संग्रह) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2019)
19. भूलने का विपक्ष (व्याख्यान, संस्मरण और रेखाचित्र) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2019)
20. चार शहरनामे (इतिहास, संस्मरण और रेखाचित्र) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2019)
21. न होने जैसा होना (कविता संग्रह) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2019)
22. इति जैसा शब्द (कविता संग्रह) (शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर (2019)
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सम्पादित एवं प्रकाशित पुस्तकें:
23. ’’सौन्दर्यशास्त्र के प्रश्न’’ (कला एवं सौन्दर्यशास्त्र) – नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2000) नई दिल्ली
24. ’’कला-विमर्श’’ (कला एवं साहित्य पर सम्वाद) – नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2000) नई दिल्ली
25. ’’भारतीय कला रूप’’ (भारतीय कला) – नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2000) नई दिल्ली
26. ’’भारतीयता की धारणा’’: (भारतीयता पर निबन्ध) – नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2005) नई दिल्ली
27. ’’भारतीय रंगमंच’’: (भारतीय नाट्यशैलियों पर) – नेशनल पब्लिशिंग हाउस (2005) नई दिल्ली
28. ’’जलती हुई नदी’’ (कविता संकलन) – शिक्षा विभाग, राजस्थान सरकार (2006) बीकानेर
29. ’’कलाओं की मूल्य दृष्टि’’ (सौन्दर्यशास्त्र) – वाणी प्रकाशन नई दिल्ली (2008) नई दिल्ली
30. “कहानी का समय” (सामूहिक कथा संकलन ), अभिनव प्रकाशन, (2016 ) अजमेर
31. “आसमान के बिना” (अशोक आत्रेय की सम्पूर्ण कहानियां) (2018) बोधि प्रकाशन, जयपुर
अन्य अनेक पुस्तकों में रचनाएं संकलित और कइयों के अनुवाद भी |
अब तक अनेक पत्रिकाओं का संपादन | कुछ सम्मान , कुछ राष्ट्रीय पुरस्कार |
अजय अनुरागी
अपने समय के विद्रूप को सामने लाने वाली कविताएं ने शिल्पके साथ प्रस्तुत हुई हैं।