मेरी बात













चांद पर विजय ??

चांद दुनिया भर के कवियों का मनभावन रहा है, सूरज और चांद को लेकर अनेक मिथक कथाएं व्यापक हैं। चीन में बकायदा “मून डे” मनाया जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में कमाने के लिए दूर देश गए परिवार जन इस दिन जरूर घर लौटते थे। सब मिल कर मून केक खाते थे, जो पुए के आकार का होता था।

चांद मानवीय भावनाओं को व्यक्त करने का जरिया भी रहा है। दरअसल आसमान को निहारना जितना रातों में सहज है, उतना दिन में नहीं। सूरज का तेज आँख की रौशनी हर लेता है, लेकिन रात का आसमान ठण्डक देता है। चांद अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी के करीब भी है, जिससे आत्मीयता बढ़ना स्वाभाविक है। रात में जब चांद चमकता है तभी प्रकृति का सौन्दर्य द्विगुणित होता है।

अब जब भारत का झंडा भी चांद पर गढ़ गया तो लोगों को चिन्ता हुई, चांद का साहित्य से क्या सम्बन्ध रह पायेगा? क्या अब भी मानव चांद के प्रभाव में कुछ रच पाएगा।

पहली बात तो यह है कि चांद पर यह पहला झंडा नहीं है, तीन पहले से लगे हैं, और चांद पर जाना एक वैज्ञानिक क्रिया है, जिसका अपना आर्थिक और भौतिक अर्थ है, लेकिन प्रकृति की अनुभूति मानसिक भावनात्मक क्रिया है, जिसका आर्थिक पक्ष से समझौता होना संभव नहीं है।

हो सकता है कि कवि चांद पर लिखने में अचकचाए, लेकिन उसे निहारना बन्द नहीं कर सकता है। करना भी नहीं चाहिए। जल का फार्मूला H2O मालूम पड़ने पर भी लेखकों के मन में जल अपने अनेक रूपों में आता है।

दरअसल प्रकृति के प्रत्येक उपादान की भौतिक स्थिति के अतिरिक्त भावनात्मक अभिव्यक्ति भी होती है। पेड़ हम से बातें कर सकते हैं, बादल मन रिझा सकते हैं. हवा गीत सुना सकती है, पहाड़ दोस्त बन सकते हैं. तो फिर चांद भी चांद ही रहेगा, कवि हृदय में।

चांद पर उतरना चांद पर विजय पाना नहीं, बल्कि उसका मित्र बनने की प्रक्रिया है।
विजय के अहंकार को उतर कर मानव बन पाना ही मानवीयता है।

 

शुभकामनाओं सहित

रति सक्सेना

 

2 Comments

  • Anima Khare
    September 1, 2023

    बहुत सार्थक और अनूठी “कृत्या”

  • Anima Khare
    September 1, 2023

    बहुत सार्थक और अनूठा अभियान..कृत्या “

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