हमारे अग्रज

  

 

ओक्तावियो पाज (Octavio Paz)


प्रथम जनवरी

 

वर्ष का द्वार खुलता है, जैसे
अज्ञात के लिए सिरजी किसी भाषा का द्वार

गत रात तुमने कहा था
कल हमें सोचने होंगे नए निर्देश
परिदृश्य कप चिन्हित करने के लिए
बनानी होंगी योजनाएं
दिन और रात के दोहरे वर्कों पर
कल हमें फिर एक बार
आविष्कार करना होगा
जगत के यथार्थ का

सुबह देर से आंख खुली
निमिष भर को जाना, जो
जाना होगा अजदक ने
उतुंग अंतरीप पर, क्षितिज की दरारों से झिरते
अनिश्चित समय की राह जोहते

वर्ष था कि आ गया था
प्रकोष्ठ में भर गया था
मेरी दृष्टि ने उसे लगभग छू लिया था
समय हमारी सहायता के बिना ही
आन बैठा था उसी क्रम में
जैसे था कल
खाली गलियों में घर
घरों पर हिम
हिम पर नीरवता

तुम मेरी बगल में थी
अभी तक सोई हुई
दिन तुम्हे गढ़ गया था
चाहे तुमने स्वीकारा नहीं था
दिन द्वारा गढ़ दिए जाना, अपना
न मेरा ही
अयाचित तुम, नये दिन के बीचोंबीच थीं



मेरी बगल में तुम


मैंने तुम्हें देखा
आकारों के बीच सोए
हिम की मानिन्द
समय, हमारे बिना ही
रच गया था घर
गलियां पेड़
एक सोई हुई स्त्री

जब तुम जागोगी
एक बार फिर
हम विचरेंगे
उन कालों, अविष्कारों, आकारों के बीच
साक्षी हो लेंगे समय के, और
समय की संयुक्तियों के
शायद तब हम खोल पाएंगे
दिन का द्वार
अज्ञात में प्रविष्ट होने के लिए


ओक्तावियो पाज-


मैक्सिकन कवि, निबंधकार और राजनीतिक विचारक। उनकी रचनाएं मार्क्सवाद, अतियथार्थवाद और एज़्टेक पौराणिक कथाओं से प्रभावित  हैं। एल लेबेरिंटो डे ला सोलेदाद/द लेबिरिंथ ऑफ सॉलिट्यूड (1950), वह पुस्तक है, जिसने उन्हें दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। उनकी लंबी कविता पिएड्रा डेल सोल/सन स्टोन (1957) प्रसिद्ध  है। उन्हें 1990 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1962 में पाज़ को भारत में मैक्सिकन राजदूत नियुक्त किया गया था, लेकिन ओलंपिक खेलों की पूर्व संध्या पर मैक्सिकन सरकार द्वारा 200 छात्र प्रदर्शनकारियों की हत्या के विरोध में 1968 में इस्तीफा दे दिया। 1971 में उन्होंने मासिक पत्रिका प्लुरल (जिसे बाद में वुएल्टा कहा गया) की स्थापना की, जिसका उपयोग उन्होंने समाजवाद और उदारवाद का विश्लेषण करने के लिए किया, जिसमें मेक्सिको से कम्युनिस्ट और अमेरिकी प्रभावों से स्वतंत्र होने का आग्रह किया गया। उनके प्रकाशनों में कलेक्टेड पोयम्स: 1957-87 (1988) और वन अर्थ, फोर ऑर फाइव वर्ल्ड्स/टिएम्पो नुब्लाडो (1984) शामिल हैं। 


अनुवादः राजी सेठ (अंग्रेजी से)

राजी सेठ प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार। राजी सेठ का जन्म 1935 में छावनी नौशेरा (पाकिस्तान) में हुआ था। राजी अंग्रेज़ी साहित्य विद्यार्थी थीं, लेकिन साहित्य साहित्य की भाषा हिन्दी रही। प्रमुख कृतियाँ हैं-‘निष्कवच’,’तत्सम’राजी ( उपन्यास ) ‘अंधे मोड़ से आगे’ ‘तीसरी हथेली’ ‘दूसरे देशकाल में’ ‘यात्रा मुक्त’ ‘यह कहानी नहीं’ ‘ख़ाली लिफाफा’ (कहानी संग्रह) ।
उन्हें प्राप्त सम्मान हैं- अनंत गोपाल शेवडे हिंदी कथा पुरस्‍कार,हिंदी अकादमी सम्मान,भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार,वाग्मणि सम्मान,कथा साहित्‍य रचना पुरस्‍कार,हिंदी निदेशालय द्वारा हिंदीतर भाषी लेखकीय पुरस्‍कार,टैगोर लिटरेचर अवार्ड आदि।

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