मेरी बात

अवसाद का साहित्य

 

पीड़ा और अवसाद एक दूसरे से भिन्न स्थितियाँ हैं, यद्यपि दोनो का मूल स्थान एक ही है। जब नोबल सम्मान प्राप्त चीनी साहित्यकार Mo Yan महसूस करते हैं देश की स्थिति से उपजी पीड़ा ने उनके लेखन को धार दी। दुख स्थितियाँ पीड़ा के स्थान पर अवसाद भी पैदा कर सकता है।

पीड़ा लेखन को गहन करती है तो अवसाद लेखन को बोझिल करता है।  मलयालम के समकालीन वरिष्ठ कवि विनय चन्द्रन ने एक बात साझा की थी  कि जब पाब्लो नेरुदा दिल्ली आये तो उन्होंने कहा कि इतने ज्यादा ठण्डे साहित्यकार उन्होने कहीं नहीं देखे…मैं इस बात के इतिहास को ना समझते हुए भी एक बात के बारे में सोचती हूँ कि भारतीय साहित्य में जो एक तरह कि निराशा सी छाई रहती है, उसका मूल क्या होगा?

 

ऐसा नहीं कि यहाँ क्रान्ति की बातें नहीं हो रहीं, ऐसा भी नहीं कि विभिन्न विषयों पर लिखा नहीं जा रहा किन्तु ऐसा जरूर लगता है कि क्रान्ति के नाम पर जो किया जा रहा है , उसके पीछे कोई अदृश्य एजेण्डा है। कभी- कभी यह तेजी नारे में बदल जाती है तो कभी यह फुसफुसा कर रह जाती है। विनय चन्द्रन जी ने एक बात और कही- हम भारतीय अधिकतर पाब्लों की प्रेम कविताओं को पढ़ना पसन्द करते हैं, लेकिन उनकी प्रेम कविता के पीछे जो विप्लव की भावना है, वह नहीं समझ पाते। यह नहीं समझ पाते कि जो खुल कर प्रेम कविता नहीं लिख सकता, वह क्रान्तिकारी साहित्य कैसे रच पायेगा। डर के साथ लिखा किसी भी तरह का क्रान्तिकारी साहित्य जागृति नही जगा सकता।

 

यह जरुरी भी नहीं कि साहित्यकार हमेशा क्रान्ति की बात करता रहे, लेकिन यह बेहद जरूरी है कि वह जो लिखे , अपने दिल से लिखे, अपने भीतर तक अनुभूत करके लिखे। लेखन में लेखक मात्र एक निमित्त होता है, अनुभूतियाँ स्वयं अभिव्यक्तियां बनती हैं। लेकिन जब लेखक लिखने से पहले ही निश्चित कर ले कि उसे किस आलोचक को प्रभावित करना है, कहाँ छपना है तो लेखन निर्जीव हो जाता है। हो सकता है कि उसका बाह्य स्वरूप तेजस्वी लगता हो, लेकिन इस तरह के लेखन को फुसफुसाने में अधिक वक्त नहीं लगता है। इस तरह का क्रान्तिकारी साहित्य भी अवसाद का गीत बन कर रह जाता है।

कृत्या के प्रस्तुत अंक में प्रिय कवि के रूप में हेमंत देवलेकर को ले रहे हैं, उनकी कविताओं में विषय की विविधता हमारे मन्तव्य को दर्शाती है। मनीष आजाद की कविताएं एक अलग तरह की दुनिया को रचती हैं, जो कविता क्या है और क्या होनी चाहिए, स्पष्ट करतीं हैं।

केरल के सन्त गुरु नारायण ने केरल में जाती धर्म के भेद भाव को मिटाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी, उनकी काव्यात्मक उक्तियों को प्रस्तुत करना जरूरी लगता है। राजीव कुमार तिवारी,आदित्य कुमार और अनन्त आलोक की कविताएं समकाल की आवाज हैं।

शुभकामनाओं सहित

 

रति सक्सेना

 

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