मेरी बात
मनुष्य के प्रकृति से सम्बन्ध को नकारा नहीं जा सकता है। मुझे हमेशा प्रतीत होता है कि मनुष्य अपने समस्त उल्लास खुशियां, प्रकृति के अवदान को स्वीकृत करने के माध्यम हैं। बाद में धार्मिक नाम दे कर उन्हें त्योहारों में परिवर्तित कर दिया जाता है।
समकालीन वैश्विक नया वर्ष यूरोपीय देशों के कैलेण्डरों के अनुरूप है, और उसका कारण यह भी था कि ये ठंडे देश सूरज की दिशा बदलने के कारण शीत से छुटकारा पाने की राह में होते हैं। यही नया साल है, प्रकृति से पुनः जुड़ना है।
प्रकृति से जुड़ा रहना मनुष्य के मन मस्तिष्क और जीवन के लिए आवश्यक है, चाहे वह कृषि हो, या फिर चिन्तन।
मानव का दर्शन प्रकृति से बहुत कुछ लेता है, दर्शन ही कविता का आधार है। यही कारण है कि नए वर्ष के अवसर पर कविता को भुलाना संभव नहीं है।
अपनी तमाम शारीरिक समस्याओं के बीच कृत्या के अंक को अकेले के दम पर तैयार करना मुश्किल हो सकता था, लेकिन कविता की ही शक्ति थी कि कार्य हो सका। संभवतया इसलिए भी इस अंक के अधिकांश अंश मुझे कविता से जोड़ सके।
आप सब को नए वर्ष की शुभकामनाओं के साथ नया अंक प्रस्तुत है, जब तक दैहिक शक्ति मदद करेगी, मैं कृत्या के माध्यम से कविता और दर्शन लाती रहूंगी।
शुभकामनाओं सहित
रति सक्सेना