
मेरी बात
“कविता मात्र आवेग नहीं अनुभव है” राइनेर मारिया रिल्के की यह उक्ति भी आवेग जनित नहीं बल्कि लम्बे अनुभवों का परिणाम है। आवेग क्षण भर के लिए होता है, वह क्षण एक विचार तो देता है किन्तु उसमें स्थिरता नहीं होती, जबकि अनुभव दीर्घकालीन अन्तराग से उपजता है। आवेग में अहम की उपस्थित रहती है, किन्तु अनुभव हमे अन्य के करीब ले जाता है, एक चींटी किस तरह से चीनी के दाने का बोझ सहती है, किस तरह दीवार पर चढ़ती उतरती है, इसे देखने- समझने और उसे अनुभूत करने में न केवल समय बल्कि जिस अनुराग की आवश्यकता है उसकी प्राप्ति के लिए बड़े तप की जरूरत होती है। जैसा कि रिल्के कहते हैं, एक कवि को इस तरह के तमाम अनुभवों में से चाहिए, तभी उस की कविता स्वयं प्रकाशन से हट कर जीवन की अनुभूति बन जाती है। अनुभव मात्र जीवन का नहीं होता, बल्कि जड़ वस्तुएँ, अजीब-अजीब स्थितियाँ और प्राकृतिक-अप्राकृतिक अनुभूतियाँ रचनात्मक प्रक्रिया को प्रगाढ़ बनाता है।
अनुभव में समय का अन्तराल का मापन संभव नहीं, जबकि आवेग समय को तत्क्षण ही खारिज कर देता है।
तभी तो अनुभव जन्य कविता में कवि रास्तों के दर्द, समुद्र की भाषा और कीट- कृमियों के सुख- दुख को पहचान पाता है और आदम भाषा में अनुदित कर लेता है। यहीं कवि अन्य कलाकारों से अलग अपनी पहचान बना पाता है, यहीं पर वह सबसे ऊपर उठ जाता है। क्यों कि वह अन्य कलाकारों की तरह पुनरावृत्ति या अनुकृति नहीं कर रहा होता है, वह उस अनुभव को शब्द दे रहा होता है, जो आम पहुँच के बाहर हैं। यही कवि और कविता की पहचान है।
कविता का नया अंक प्रस्तुत है।
रति सक्सेना