कविता के बारे में
निराश होने की कोई बात नहीं। प्रत्येक वस्तु को कद्र और कीमत मिलती है।(कवि त्रिलोचन)
पिछले दिनों मीडिया में एक मृत्यु की काफी चर्चा रही, हिन्दी के नामी कवि हरिवंशराय बच्चन की पत्नी तेजी बच्चन की मृत्यु की। उनके परिवार के हर काम को मीडिया दिखाता रहा रहा, बार- बार दिखाता रहा, यहाँ तक कि यदि सारे दिन टीवी के पास बैठा जाये तो तेजी बच्चन के जीवन का एक एक अंश याद हो जाये। यह चर्चा इसलिए नहीं हो रही थी कि वे एक प्रसिद्ध लेखक की पत्नी थीं, बल्कि इसलिये हो रही थी कि उनका बेटा, बहु, पोता और पोता बहु, सभी फिल्म जगत की जानी- मानी हस्ती हैं। इसी मृत्यु से कुछ दिनों पहले हिन्दी साहित्य का एक वटवृक्ष टूट कर गिर गया, जी हाँ त्रिलोचन जी की मृत्यु कुछ दिन पहले ही हुई थी। मुझे उनकी मृत्यु की सूचना एक मोबाइल पर एस एम एस से मिली।
मैं दोनों खबरों पर निगाह डाल रही हूँ, तेजी बच्चन को एक कवि का प्रेरणा स्रोत मना जा रहा है, जबकि बच्चन जी मधुशाला तेजी से विवाह से पूर्व ही रच चुके थे।त्रिलोचन जी की मृत्यु की खबर बस एक हेडलाइन बन कर उभर रही है। त्रिलोचन कवि थे, पर लोकपरम्परा के। वे जनवादी कहे जाते थे, उन्होंने चाहे लोक के एक- एक भाव को साकार किया हो किन्तु किसी बड़े राजनेता के सगे तो नहीं रहे। त्रिलोचन हिन्दी जगत के सन्नाटे को भोगते रहे, आत्मप्रलाप को सहते रहे, टूटे नहीं, बस मुट्ठी भर राख में बदल गए।
मुझे याद आता है जब मैं सागर गई थी, राधाकृष्ण वल्लभ जी ने किसी सेमीनार में शिरकत करने के लिए बुलाया था। त्रिपाठी जी ने कहा, रति जी त्रिलोचन जी से मिली हो? नहीं तो जाकर मिल आइये, अभी सागर विश्वविद्यालय में ही हैँ।
मैं त्रिलोचन जी के घर गई तो उनके बेटे- बहु बाहर आए, वे स्वयं परिपक्व उम्र के थे। जब त्रिलोचन जी बाहर आए तो मुझे लगा कि घर का कोई बड़ा- बूढा ही बाहर आया है। बेहद आत्मीय लहजा, ऐसा लगा ही नहीं कि मैं पहली बार मिल रही हूँ।
मैं जितनी देर बैठी, बस आत्मप्रलाप ही करती रही,, वे बालामणियम्मा की कविताओं के अनुवाद की बात सुन कर पुलकित हुए.. कहने लगे कि आजकल तो मालूम ही नहीं पड़ पाता है कि कौन क्या कर रहा है, इस तरह का काम भी हो रहा है, मुझे मालूम ही नहीं था।
फिर उन्होंने मुझे अपनी कविता पढ़ने को कहा, मैंने पाण्डिच्चेरि पर कविता पढ़ी, उन्होंने सहजता से सराहा, अब मैं समझती हूँ कि वे मुझे बस खुश कर रहे थे, बिलकुल उसी तरह जिस तरह कि कोई बुजुर्ग बच्चे को बहलाता है। हालाँकि मैंने सागर में मैंने कुछ तथाकथित कवियों से पण्डित जी के बारे में यह कहते सुना था कि वे धाराप्रवाह बोलते रहते हैं।
मुझे तो बस इतना याद है कि मैं जब उनके पास से लौटी तो बेहद खुश थी, मानो मेरी झोली भरी हो। अब अपनी मूर्खता के बारे में सोचती हूँ तो हँसी आती है, इतनै महान व्यक्ति के पास गई और कुछ सीखा भी नहीं।
अभी कृति ओर का अंक आया, उसमें त्रिलोचन जी का एक लेख छपा है, जिसकी एक बात ने मुझे कविता के बारे में फिर से सोचने को प्रेरित कियाः-…सवाल उठता है कि कौन सी और किस तरह की रचनाएँ हैं जो भविष्य में सुरक्षित रह पाएँगी।इस प्रकार का प्रश्न उस साहित्य पर किया जाता है जो निर्माण की स्थिति में होता है या निर्मिति में चलता है। ये प्रश्न अविश्वास से उपजते हैं। कोई भी उत्तर अविश्वास का समाधान नहीं कर सकता। अतीत का गौरव शतमुख सहस्रमुख प्रशंसित और प्रचारित रहता है। वर्तमान की जीवन क्रिया सबकी आँखों को अपनी ओर नहीं खींचती । फिर उसकी जीवन क्रिया को अच्छी तरह समझ कर नए अर्थों की व्यंजना करने वाले तो और भी कम होते हैँ। निराश होने की कोई बात नहीं। प्रत्येक वस्तु को कद्र और कीमत मिलती है। हिन्दी की इन बहुकारक रचनाओं में यदि बहुजीव की छवि कुछ भी होगी तो आगे के लोग अपनी अपनी रुचि से अपनाएँगे।परस्पर भिन्न दिखने वाली ये कविताएँ नईं हिन्दी का रूप तो सँवार ही रही हैं भविष्य की भी गढ़न और ठवन इनके द्वारा ओर निखरेगी।
(कवि त्रिलोचन)
मैं अब सोचती हूँ कि त्रिलोचन जी को हिन्दी वालों ने कम नहीं नकारा, फिर भी आशान्वित रहे, क्या शक्ति थी उनके पास? कृत्या के माध्यम से मेरा इटली के मेसिमो, और फेदरिको से संवाद होता रहता है। ये दोनों अपने देश के नामी कवि और कलाकार हैं, किन्तु दोनों अपनी रोजी- रोटी तक के बारे में निश्चिंत नहीं हैं। नई रोजगार नीति नें अस्थाई नौकरियों को महत्व दिया है, जिससे नौकरी की तलवार सिर पर लटकी रहे। दोनों ही यह महसूस करते हैं कि उनके देश में कवि या कविता को को कोई महत्व नहीं दिया जाता। यह बात अनेक देशों के साहित्यकारों ने दुहराई है। यानी हिन्दी का दुख विश्व की सभी भाषाओं का है, और शायद यही सुख भी। शायद कविता की प्रकृति ही जिन्दगी के श्याम पक्ष से जुड़ने की है, यह आत्मालाप करने की नहीं।
मुझे लगता है कि कवि त्रिलोचन की इस बात को याद रख कर हम कविता कर सकते है कि -निराश होने की कोई बात नहीं। प्रत्येक वस्तु को कद्र और कीमत मिलती है।
प्रस्तुतिः रति सक्सेना