हमारे अग्रज

यानीस रित्सस

 

(प्रस्तुत कविताएं निकोस स्टेंगोस के अंग्रेजी अनुवाद से रति सक्सेना  द्वारा हिन्दी में अनूदित हैं।)

यानीस रित्सस अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कवि रहे हैं, वे असंख्य पुरस्कारों के विजेता भी रहे हैं।

यानीस की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये भावों को पेंटिंग की तरह चित्रित करती हैं। कवि इतने नपे तुले शब्दों में दृश्य को सामने रखते हैं कि पाठक को कविता में प्रवेश का पूरा मौका मिलता है, वह कविता के दृश्यों और पात्रों से सम्बन्ध स्थापित कर अपना भावलोक बना सकता है। यानीस पाठक के लिए काफी स्थान छोड़ देते हैं। सोने से पहले कविता को ही लें, यहां स्त्री के अकेलेपन, त्रास और व्यथा को दर्शाने के लिए कवि ने शब्दों को बर्बाद नहीं किया, क्रियाओं के चित्रण मात्र से अभिव्यक्ति दी है। पेप

रमेड से लम्बी कविता है जिसमें अनेक दृश्य एक के बाद एक आते हैं और बिम्ब एक चित्र का निर्माण कर देतें हैं। पाठक शब्दों के जाल में उलझने के बजाय शब्द चित्रों से कविता को महसूस कर लेते हैं। यानीस की कविताओं के बारे मे अधिक बोलने की जगह पढ़ना ज्यादा उपयुक्त है, अतः प्रस्तुत हैं कुछ कविताएं ‍‍‍‍‍—-

 

1

 

सोने से पहले

 

उसने सब कुछ सहेजा, बरतन साफ कर सजा दिए
सब कुछ शांत, रात के ग्यारह बजे
उसने बिस्तरे पर जाने के लिए जूते उतारे
काफी देर तक बिस्तरे की पाटी पर बैठी रही
क्या छूट गया जो दिन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है?
‍…घर में, आंगन में तो नहीं? बिस्तरे पर नहीं, नहीं तो मेज पर?
अनजाने में उसने अपने मोजे उतारे और लेम्प की रोशनी के सामने कर दिए
छेद देखने के लिए, हालांकि कोई दिखाई नहीं दिया,
लेकिन उसे विश्वास था कि छेद हैं जरूर,
शायद दीवार पर, या फिर शीशे में…
उस छेद से ही वह रात के खर्राटों को सुन पा रही है
मोजे की परछाई चादर पर ठंडे पानी पर पड़ा एक जाल बन जाती है
जिसे एक पीली अंधी मछली पार कर रही है.

 

कवि का पेशा

 

बरामदे में, छाते, बूट, और शीशा
शीशे में, खिड़की कुछ शान्त सी
खिड़की में, गली के पार अस्पताल का गेट, वहां
रोगियों की लम्बी कतार, जाने पहचाने चेहरे वाले रक्तदानी
अब तक पहले वाला अपनी आस्तीने चढ़ा चुका है,
जबकि भीतरी कमरे में पांच घायल मर चुके हैं।

 

छिपा पाप

 

पाप और सन्तपना, हमारे अनुसार एक हैं एक रात में
दूसरे के बारे में न कहने की शपथ ली जाती है, पर कौन जानता है
तुम कभी भी भरोसा नहीं कर सकते कि वह कब तक चुप रहेगा
तुम चुप रहोगे, और हो सकता है कि तुम ही मूर्खता पूर्बक दूसरे की ओर
बढ़ जाओ, रेस्तारेन्ट के चमकते शीशो से बरसात की बून्दों को
नीचे गिरते देखते हुए, जब कि भीड़ में
कुर्सियों का गिरना और शीशे के गिलासों का गिरना साफ सुनाई दे
और वह गाल पर घाव का निशान लिए, लाल आँखों वाला
अपनी लम्बी मर्दानी बाह उठा, तुम पर तान ले।

 

कुम्हार

 

एक दिन उसने सुराही बनाईं, गुलदान, और बर्तन बना लिए
कुछ मिट्टी अभी भी बची थी॔
उसने एक औरत बनाई, उसके स्तन बड़े और नुकीले थे
उसका चित्त डोलने लगा, वह घर देर से लौटा
पत्नी बड़बड़ाई, उसने कुछ जवाब नहीं दिया, अगले दिन
उसने और मिट्टी बचाई, उसके अगले दिन और भी ज्यादा
वह घर भी नहीं लौटा, पत्नी छोड़ कर चली गई
उसकी आंखे जलने लगी, वह अधनंगा कमर पर लाल लंगोट
बांधे , पूरी रात उस मिट्टी की औरत के साथ पड़ा रहता
कारखाने की दीवार के पीछे से उसका गुनगुनाना भोर को साफ
सुनाई देता, उसने लंगोट भी उतार दी, अब वह नंगा है,
पूरी तरह नंगा और उसके चारों ओर खाली सुराहियां, बर्तन और गुलदान
और खूबसूरत अंधी बहरी गूंगी औरतें,
स्तनों पर दन्तक्षय के निशान लिए।

 

समर्पण

 

उसने खिड़की खोली, हवा का झोंका टकराया
उसके स्तन से, उसके बाल, गोया कि दो बड़ी चिड़ियां,
उसके कंधे पर बैठी, उसने खिड़की बन्द की
दोनों चिड़ियाएं मेज पर थी, उसकी ओर घूरती हुई,
उसने उनके बीच सिर झुका लिया, और सुबकने लगी।

 

पेपरमेड से

 

शीशे के
दाहिने कोने पर
पीली मेज पर
मैंने चाभी रखी हैं
ले लेना
क्रिस्टल नहीं खुलता है
नहीं खुलता है।

*
रेलगाड़ी की खिड़की के बाहर
दृश्य दौड़ रहा है
मुझे अपनी जेब में
एक टुथपिक मिल गया है
और बेलफ्राई अपने हेट में

*


गुलाब ट्रंक पर
तुम्हारा हाथ बेल्ट पर
और क्या पूछना चाहते हो तुम?

*

चादर ओढ़े हुए
कितना आहिस्ते से वह सांस ले रही है
क्या यह कविता है?
नाव चल दी
मस्तूल फूल गई
मैं एक उंगली से छूता हूं
हवा एक के बाद एक
मौन एक के बाद एक.

*

मैं अपनी परछाई को नीले रंग में रंगूंगा
अपने दांत साफ करूंगा
और गिटार बजाऊँगा
तुम पलंग के नीचे छिप जाना
मैं ऐसा दिखाऊंगा कि जानता ही नहीं

*

तुम इंतजार करती रहना
मैं कहूंगाः
“ऐसा नहीं है”
यह कुछ ऐसा है.
मेरे लिए भी.
अपने नाखून तराशते वक्त
ध्यान देना , कैंची की धार पर.

*

तेज हवा
रात
हार्बर पर चमकती रोशनी
कस्टम हाउस के बरामदे में
सफाई करने वाली औरत
झाड़ू लगा रही है
चुपचाप
सूटकेस बन्द हैं
बोर्ड हैः “प्रवेश वर्जित”
हवा कामरेड है
मस्तूल, बड़ी मस्तूलें

*

रोशनी
एकमात्र रोशनी
जो पहाड़ की चोटी पर है
पूर्वजों के द्वारा ले जाई गई है
तुम्हे क्या याद नहीं?

*

और संगमरमर
नग्न
सफेद
किसी भी प्रतिमा का इंतजार नहीं

*

हर चीज रहस्यमय है
पत्थर की परछाई
चिड़िया का पंजा
धागे की रील
कुर्सी
कविता

*
उबकाई
बीमारी नहीं
एक जवाब है

*

वे खूबसूरत हैं तुम्हे उनकी याद है?
वे सीधे चलते हैं
वे सीधे देखते हैं
वे गाते हैं
वे अपनी तलवारें पकड़ते हैं
ऊपर, और ऊपर
वे नहीं देखते
वहाँ कोई झंडा नहीं है.

*

जंगली हवा में
ऊपर और ऊपर
एकदम सफेद गुल की चोटी पर
स्वतन्त्रता है !

 

अनुवाद‍ – रति सक्सेना

1 Comment

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