कवि अग्रज

नन्द चतुर्वेदी 

 

 

नन्द चतुर्वेदी राजस्थान के प्रख्यात कवि साहित्यकार रहे हैं। का जन्म 21 अप्रैल, 1923 में हुआ था, उन्होंने बचपन से कविता लिखनी आरंभ कर दी थी। उन्होंने अपने लेखन सदैव समकाल से तारतम्य बांधा है। प्रस्तुत कविताएं आपके संकलन उत्सव का निर्मम समय से ली गई हैं।

 

विवशता

 

दिशाओं तक मेरा हाथ जाता है
लेकिन कुछ छूता नहीं है
मैं एक शब्द के लिए प्रतीक्षा करता
डूब जाता है
थोड़ी देर के लिए
हल्का नीला प्रकाश जन्मता है
फिर डूबता है, डूबता जाता है
डूब जाता है

मैं शब्दों के लिए फिर जन्मता हूं
फिर फिर प्रकाशित करना चाहता हूं
नदियों के फैलाव और आत्मा और अग्नि
प्रेम और दर्द और अन्तरंग
लेकिन कोई क॓ति जन्म नहीं लेती
सब तरफ स्वादहीन सृष्टि फैली रहती है
मैं फिर होता हूं, होता हूं, होता हूं

 

अकाल

 

दो शृगाल रात भर खेत खोदते रहे
गहरा और गहरा और गहरा
अन्न कहां है?
कहां है अन्न पृथ्वी!

 

दो शृगाल रात भर
सूर्य को गालियां देते रहे
हो गया तुम्हारे वंशधरों
तुम्हारे शक्ति सामन्तों का
राज, सूर्य अन्न कहां है?
कहां है अन्न!

 

दो शृगाल रात भर पंजो से हवाएं पीटते रहे
उन्होंने रात भर पेड़ों की जड़ें खोदीं
छलांगे भरी
हाय!
उनकी मृत्यु भी
अविज्ञप्त ही रही

 

दिसम्बर में

 

पूरे दिसम्बर
मैने खिड़कियां नहीं खोली
गिर गए होंगे सारे पत्ते
फूल बहुत छोटे ‌और प्रसन्न
या न भी गिरे हों
यह देखने के लिए भी नहीं

 

वे स्त्रियां कहां जा रहीं थीं
बची हुई रोशनी में
उस परे दृश्य के पार
छोड़ती हुई अपनी आयु के सपने
सूखते हुए ज्गल के बीच

 

दिसम्बर मे मोहक
नीले आकाश और बादलों के लिए
बच्चों के लिए
जिन्हें देंखने की मैंने इच्छा की थी
नीले सफेद और कई रंग के
मुलायम ऊनी स्वेटरों में
उन तक के लिए भी
मैंने खिड़की नहीं खोली

 

सिर्फ पछतावा

 

अपने लिए ही
बचाया था
दुबारा
दुबारा बचाया था
प्रेम

 

पूरा नहीं होने दिया कुछ भी
डर कर
दूसरी बार न मिले
उस वृक्ष के नीचे
ठण्डी, बीतती छाया

 

दुबारा जाना था
जहां पेड़ ढूंढ़ते थे
अपनी पत्तियां
बादलों के दिन

 

पृथ्वी के पास से
कितना दूर चला गया समुद्र

 

दुबारा नहीं जाने का
सिर्फ पछतावा बचा था

 

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