समकालीन कविता

निकोलस एंटोनियोली

 

अंधविश्वास

 

अंधविश्वास
बड़ी संख्या में है
मैं रियो ग्रांडे के जुजुय में बैठ कर
सबसे कम अपेक्षित सुबह के 11 बजे
मैं लिख रहा हूं, बिना समझे कि मैं
किस बारे में बात कर रहा हूं
सभी दर्दों के गवाह बेतूकी और
अकल्पनीय कार्यकलाप में मरने वाले हैं
यह जानते हुए कि हमने अभी तक कुछ नहीं लिखा है
वादों की किताब तक नहीं लिखी है
वहां मानवता भी नहीं है
अभी भी कोई आलोचनात्मक पाठन या कोई राष्ट्र नहीं है
अभी कुछ भी ख़त्म नहीं हुआ है
न ही किसी टॉल्स्टॉय का जन्म हाइलैंड्स में हुआ है
न अधिक न कम
कोई कह सकता है कि “साहित्यकार” अपने लार्वा चरण में है
विरोधाभास में
कोई भी अनुमान कल्पना या झूठ है
एक झूठ के बारे में
छुपे हुए सच को बताने के बारे में
पागलपन एक पागल मजबूरी है

 

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

 

20

वे ऐसा चाहते हैं कि
मुझे स्थायी रूप से पागल घोषित करना चाहिए
जैसा तुमने साधु के आने से पहले किया था
संक्षेप में, सच बोलना कवि का काम नहीं है
यह एक पापिन महिला का तरीका है जो पंक्तिबद्ध है
कामोन्माद किस विदेशी शक्ति से संबंधित है?
वास्तव में हम मनुष्य और मनुष्य की प्रतिध्वनि का
सामना कैसे करेंगे?
एक शारीरिक इतिहास के निकट
सत्य से ही प्रभावित हो जाते हैं
इनका उपयोग हम कायरों का सामना करने के लिए करते हैं
वह जो कराहों के बीच दिखाई देता है
अँवा अब छोटी-छोटी चीखों में
हम मनुष्य और मनुष्य की प्रतिध्वनि का सामना कैसे करेंगे?

 

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

 

27

 

मैरोसा ओल्गा एलेजांद्रा सिल्विना
सुज़ाना विक्टोरिया अल्फोंसिना
जुआना डायना
वर्जीनिया
वे सभी मौन हैं
और हर चोट की पीड़ा को सह रहे हैं
किस पल में हमने अपनी हिम्मत खो दी
भय मात्र जीता
और अब, हम कविता के साथ क्या करने जा रहे हैं?
अब हम जानते हैं कि दो शब्दों का जोड़
दुनिया को तबाह कर सकता है

 

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

 

31

 

पुरुष अपने बारे में कितना दिखावा करते हैं
हमने एक-दूसरे को निराशा में खो दिया
यह कैसे काटता है और भाग जाता है
देखो, दुःखी लोग सताने वालों के लिए किस तरह के
कोड़े की माँग करते हैं
लेकिन समय कैसा रहेगा?
हम विडंबना के बारे में क्या करते हैं?
कविता हमारे बारे में क्या दिखावा करती है?
शब्द किसलिए मौजूद हैं?
और पुरुषत्व?
अगर मैं किसी महिला को चूम लूं तो क्या होगा?
अगर उसका शरीर नूर लाता है
हम रूपक पर फिर से विश्वास करेंगे

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

 

मिगुएल एंजेल बस्टोस

 

मैं धरती के अंगूरों से अपनी हड्डियाँ नहीं बदलता
मैं अपनी खाल को उजाले में कामना करते सांप की तरह
चंद्रमाओं और ज़मीनों से रोशन होते हुए नहीं देखना चाहता
मुझे अब वह स्पष्टता महसूस नहीं होती जो मुझे जीवन के अंधकार में छोड़ देगी
यह पहले से ही मृत्यु की एक कला होने के कारण जीवन है
एक अंकुर का प्रतिबिम्ब जो आपके अनेक झूठ हैं
आपकी अनेक उदासीनताएं हैं
क्या आप हत्यारे के बारे में भूल गए?
जिसने तुम्हें मौत के मुंह से नफरत लेकर वापस आने से मना किया था?
कैसे उसके कान सबकी सुनते हैं
वृक्षों से कैसी दुर्गंध आती है, जब अन्धकार सुगंधित होता है
आँखों की पुरानी बोली में उसकी आवाज़ कैसे टिकती है
आत्मा की नलियों में खून की तरह
नफ़रत में कितनी कमी होने वाली है
असंख्य तालियाँ मेरे शांतिपूर्ण जागरण से भागने का प्रतीक हैं
मेरा मांस तुम्हारी हथेली में जुड़ रहा है

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

 

शाम

 

एक बिल्ली दुनिया के टुकड़ों में अपना गाना खो देती है
पेड़ों से अँधेरी सुगंध जैसी दुर्गंध आती है
आँखों की पुरानी बोली में उसकी आवाज़ कैसे टिकती है
प्रकाश में साँप के रूप में

 

जूलिया मेलिसा रिवास हर्नांडेज़ के अंग्रेजी वे अनुवाद से हि्न्दी में रति सक्सेना द्वारा

[1] उत्तर अमेरिका की एक नदी

[2] अर्जेन्टीना का एक प्रान्त

 

 

(फ्लोरिडा, ब्यूनस आयर्स

, अर्जेंटीना, 1985। लेखक, संपादक और सांस्कृतिक प्रबंधक। साहित्य प्रोफेसर, ट्रेस डी फेब्रेरो विश्वविद्यालय (यूएनटीआरईएफ) से रचनात्मक लेखन में मास्टर। एसोसिएशन डी पोएटास अर्जेंटीनो के सचिव (2009-2018। ब्यूनस आयर्स के स्वायत्त शहर में स्थित ला जुंटाडा-इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ यंग पोएट्री के निदेशक और संस्थापक। बाल्डिओस एन ला लेंगुआ (www.baldiosenlalenगुआ.wordpress.com के मालिक-प्रकाशक। अर्जेंटीना के लिए विश्व कविता आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वयक। कविता में पुस्तकें: सेंटियर्स डेल अल्मा (2004, से नेसेसिटान ओजोस (2005, मुनेकास/मैनिकि/मुनेकास (2009, मैनसलवार (2012, मानो एम्पलुमाडा (2013), मोनोलोगो एलुसिनैडो ई इंटरमिनेबल डेल सार्जेंटो कैब्रल (2013), लास कार्नेस अयूनास (2017) और कॉस्मोग्राफिया मार्सियाना ओ पोल्वो सस्पेंडिडो एन अन रेयो डे सोल (2022)। मैंडिंगा (2011) और डिसिएन्यूवे (2018) प्लेटलेट्स के लेखक। उनकी आठ अन्य अप्रकाशित पुस्तकें हैं। अर्जेंटीना में उन्होंने कई काव्य समारोहों और अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलों में भाग लिया। उन्होंने मेडेलिन के 28वें और 33वें अंतर्राष्ट्रीय कविता महोत्सव (कोलंबिया, 2018 और 2023) और मेडेलिन के 30वें अंतर्राष्ट्रीय कविता महोत्सव, आभासी संस्करण (कोलंबिया, 2020) में भाग लिया है। उन्होंने अर्जेंटीना राष्ट्र के राष्ट्रपति पद के संस्कृति मंत्रालय और कोचाबम्बा राज्य (बोलीविया) के संस्कृति मंत्रालय, 2014 से अर्बोल बिनेशनल पोएट्री कॉन्टेस्ट अवार्ड (अर्जेंटीना-बोलिवियन) प्राप्त किया।

उन्होंने फोंडो नैशनल डी लास आर्टेस (अर्जेंटीना) से क्रिएशन ग्रांट 2021 प्राप्त किया।

उनके काम का क्वेशुआ, अंग्रेजी, फ्रेंच, इतालवी, मोंटेनिग्रिन, मैसेडोनियन और जर्मन में अनुवाद किया गया है।

 

शंकरानंद की कविताएं

 

गल रही इच्छा

 

जो कुछ भी सीखा वह काम नहीं आया कभी

 

चित्रकारी जानने वाली स्त्री को रंग से कभी भेंट नहीं हुई
वह मन में रचती रही अलग अलग तस्वीर और
अगले ही पल हवा का एक झोंका आ कर
सब कुछ मिटा देता था
जैसे पानी पर लिखी लकीर मिट जाती है क्षण भर में

 

धागे जो कसीदा करने के काम आते
वे गले का फंदा बनकर लटकते रहते माथे के ऊपर
स्त्री कुछ भी गढ़ना चाहती तो पूरा घर उजड़ जाता
उसे समेटना जरूरी था इसलिए सजाने लगती
कपड़े बर्तन ईंट पत्थर धूल मकरी के जाले सब

 

पसीना ललाट से बहता तो पता चलता कि
स्त्री के जीवन में पानी की कितनी जरूरत है
उसके रोने के बारे में किसी को खबर नहीं थी
तकिया गीला होता तो रख आती धूप में रोज सुबह

 

कई बार चक्कर खाकर गिरी तो सबने कहा
अपना ध्यान नहीं रखती इसीलिए इसकी यह हालत है
उसके खाने सोने पहनने ओढ़ने
बोलने सुनने पढ़ने तक पर रहती थी सबकी नजर
लेकिन कोई यह नहीं देखता था कि
उसकी इच्छा का दम कितनी बेचैनी में घुंट रहा है

 

वह रोटी खाती तो उसका स्वाद भूल जाती
नमक और हल्दी उसके लिए दो रंग थे सफेद और पीले
वह आसमान देखती तो नीला याद पड़ जाता था
रात की स्याही में डूब जाती तो कुछ नहीं सूझता उसे

 

छोटी सी उम्र से सीख रही थी अलग अलग कलाएं
कुछ करना चाहती थी वह अपने सपनों की उड़ान के लिए
लेकिन नहीं कर पाई ब्याह के बाद
सब जैसे अटक गया कंठ में खाते हुए कुछ

 

अब टकराते बर्तन का शोर भर गया है उसके जीवन में
नमक का जहर उसे गला रहा दिन रात
उसी के साथ गल रही है स्त्री की हरेक इच्छा!

 

.स्वप्न बिना

 

आंखों के कोटर में चिड़िया की चमक नहीं
घोंसला उदास है वर्षों से

 

जब कोई घर छोड़ कर चला जाता है तो
साथ लेकर नहीं जाता कुछ भी
घर वहीं है दीवार खिड़की बर्तन और पानी के साथ
वैसे ही झूलते हैं पर्दे हल्के हवा के साथ
कांपती है खिड़कियां झोंके से

 

रोज की धूल गिरती है हर सतह पर
बिस्तर कुर्सी टेबल किताब कपड़े पर
चावल और आटे और मसाले और नमक के ऊपर

 

कोई है तो नहीं जो बुहार दे रोज
इसलिए उसकी परत जमती जाती है
उसी परत के नीचे स्मृतियां दबती जाती हैं
रंग दबता जाता है
चमक दबती जाती है

 

बच्चे की हंसी गूंजती है धूल की भाषा में बेआवाज
स्त्री का झिड़कना तैरता है घर के भीतर धूल की शक्ल में
बूढ़े की खीझ जहां तहां पसर जाती है मुंह फेर कर

 

कोई मनाने वाला नहीं
इसलिए रूठ गया सब कुछ
घर खाली दिखता है बाहर से एक खंडहर
जैसे खाली आंखों का बियाबान काटने को दौड़ता है
स्वप्न बिना।

 

प्यास का पानी

 

आसमान में पानी नहीं पानी की कथा तैरती है
बादल के रास्ते खाली हैं मगर वह लापता
कंठ को प्यास की भाषा बहुत परेशान करती है
जब सूखता है तो गला मांगता है पानी

 

इस पृथ्वी पर पानी की दुनिया बहुत विशाल है
जिसका स्वाद उतना ही खारा जितना नमक
जो मीठा है पानी वह बाज़ार के लिए कच्चा माल है
प्यास तक पहुँचने के पहले वह बंद हो जाता है
चमचमाती बोतलों में रंगीन बिक जाने के लिए

 

प्यास की आग में जलती है चिड़ियाँ
भटकते हैं न जाने कितने जीव वन वन कि
कहीं तो दिख जाए पानी की चमक
तालाब की मिट्टी की दरार चुभती है चोंच में
नदी की रेत हवा के साथ अपने पंख खोलती है

 

इस आग बरसते मौसम में किसी में कोई फर्क नहीं
सबका दुःख एक दर्द एक आंसू एक प्यास एक
पानी के लिए तरसते हर कंठ से उठता है धुआं एक!

 

मन की बात

 

जिसके पास आवाज होती है
वह बोलता है
जहाँ बोलने की जरूरत होती है
खोलता है मुंह

एक आवाज भर से भरोसा होता है कि
कोई तो है जो बात कर सकता है
मतलब सुन सकता है
यानी जवाब दे सकता है

 

बोलने भर से आधी समस्या ख़त्म हो जाती है
टूटने से बच जाता है धैर्य

लेकिन कोई ऐसा भी होता है जो
सिर्फ अपने मतलब की बात बोलता है
देर तक बोलता है
दूर तक पहुँचाना चाहता है अपनी आवाज
सिर्फ अपनी आवाज
पत्थर पर लकीर की तरह लिख देना चाहता है वह
ताकि कोई भूल नहीं पाए
इस ऐतिहासिक पल को

 

जब दूसरों के बोलने की बारी आती है जवाब में
तब वह फेर लेता है मुंह
बंद कर लेता है अपने कान
जैसे कुछ सुनना नहीं चाहता अब

 

लोग बोलते हैं लगातार
वह कुछ और करना शुरू कर देता है!

 

कोई तस्वीर

 

जो दूर हो गया आँखों से ओझल
उसके चले जाने का बोझ
किसी भी पहाड़ से ज्यादा भारी होता है
हर दिन गूंजती है उसकी आवाज
उसका स्पर्श कांपता है बिना हवा
उसकी हंसी कौंधती बिजली की चमक
उसकी नींद का कांटा गड़ता है आधी रात

 

जो नहीं होता है पास
उसकी तस्वीर एक मात्र सहारा है
जैसे नदी के किनारे टूटे पेड़ की
अंगुली भर जड़ जमीन में लगी हुई
एक वही तो होती है
बुरे वक़्त में जीने की आशा का इन्द्रधनुष!
६.गर्भ में
जो पल रहा वह नया भविष्य है
पुराने पेड़ की टहनी का पहला फूल
उसके आने की उम्मीद भर से
चमक गया हर चेहरा
वह चमक पृथ्वी के सबसे सुन्दर फूल से
कहीं ज्यादा है

 

बरसों से सूने पड़े आंगन को
चहकने की प्रतीक्षा है
उदास घर खिलखिलाना चाहता है
जाड़े की धूप सा बेहिसाब
ठहरा हुआ घड़ी का कांटा
दौड़ना चाहता है सबसे आगे

 

एक ठहरी हुई नदी
अब बह जाना चाहती है लबालब
उसे पानी में डूब जाना है अब!

 

शंकरानंद

 

अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन, पिता,बच्चे,किसान और कोरोना काल की कविताओं सहित कई महत्वपूर्ण और चर्चित संकलनों के साथ `छठा युवा द्वादश`और `समकालीन कविता`में कविताएं शामिल|हिन्दवी,जानकीपुल,सबद,समालोचन,इन्द्रधनुष,अनुनाद,समकालीन जनमत,हिंदी समय,समता मार्ग,बिजूका,कविता कोश,पोषमपा,पहली बार,कृत्या आदि पर भी कविताएं|

 

अब तक चार कविता संग्रह ‘दूसरे दिन के लिए’,’पदचाप के साथ’,’इंकार की भाषा’ और ‘समकाल की आवाज’ श्रृंखला के तहत चयनित कविताओं का एक संग्रह ‘चयनित कविताएं’ प्रकाशित|आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताएं प्रसारित|पंजाबी,बांग्ला,मराठी,गुजराती,नेपाली और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में कविताओं के अनुवाद भी प्रकाशित|
कविता के लिए विद्यापति पुरस्कार,राजस्थान पत्रिका का सृजनात्मक पुरस्कार और मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार|

 

संतोषी देवी

 

साठ पार

———

बहते जीवन में उनके हिस्से
सूखे उड़ते जर्द पीले पात
बड़ी ईमानदारी से आए
जिनको उन्होंने
बड़ी शिद्दत से चूमा
कि
उनके हिस्से का
थोड़ा ही सही
हरापन एक न एक दिन
जरूर लौटेगा
जिसे ओढ़ वे हरख सके
इसी आस को
संजोए रखती हैं स्त्रियां
उस उम्र तक
चाहे वह पचास पचपन हो
या फिर साठ पार।

 

थकी ही नहीं

 

मां
ढाकती थी मनभेद
स्नेह सीवन से
बड़े उत्साह और चाव से
लीपती थी
पपड़ाया आंगन
पापा कहा करते थे
जो हैं जैसा हैं
सब तेरा
तेरे ही हाथ
उम्र गुजार दी
वह
थकी ही नहीं।

 

कार बार


दूर ढाणी में रहती स्त्रियां
गांव शहर की सुख सुविधाओं से परे
लगी रहती हैं दिनभर
घर के कामधंधों में
खेत खलिहान में
मेहमानों की आवाजाही में
घर परिवार नाते रिश्तेदारो की
आवभगत में
और काम भी क्या उनको
लाई भी गई है इन्हीं के लिए
देश दुनियां और भी हैं
उन्हें क्या
सिखाया गया उनको
जहां वे हैं वहीं दुनियां हैं
और उन्हीं के होने से हैं
सुन कर मचल उठती हैं खुशी से
दुबारा दूने उत्साह से
फिर लग जाती है काम में
घर के आदमियों ने सुनाया
गांव शहर का हाल
अच्छा या बुरा
वही सब सच है
जिसने नहीं माना
उन्हें बताया गया
कार बार।

 

ढाई आखर

———–

खुद को संवारने और
निहारने से लेकर
सजाती हैं घर आंगन
बालकनी से
बगीचे तक
और इसी दरम्यान
खिलते फूलों की सुगंध को
खींचती हैं शिराओं में घुल जाने तक
फिर उन्हें सहलाती हैं
दूजी नजरों से छुपते छुपाते
रंग बिरंगी मंडराती तितलियों से
करती हैं स्नेह
किसी उड़ते हुए पक्षियों के जोड़ो पर
उड़ेलती हैं हर्ष
अपनी
हँसी को बिखरा देती हैं हवा में
वो सुनाती हैं
अपनी व्यथा कथा
आसपास खड़े पेड़ पौधों को
खुद की आवाज को
जहन में गहरे तक
उतार कर
अगर उनके द्वारा बोले गए
ढाई आखर
बाहर
हवा में घुलेंगे
भूचाल ले आएंगे ।

 

 

प्रकाशित पुस्तकें हैं — गीत संग्रह ‘पाती’,कविता संग्रह – मैं चुप्पी हूं ‘,सांझा संकलन-“काव्य के मोती” (कविता संग्रह, ” इक्कीसवीं सदी के चुनिंदा दोहे”(दोहा संग्रह)
“2020 के अनुपम दोहे(दोहा संग्रह),”मैं और तुम”(गजल संग्रह)
(गीत संग्रह)
विविध-मासिक एवं दैनिक पत्रिकाओं में और हिंदी दैनिक एवं साप्ताहिक अखबारों में गद्य-पद्य रचनाएँ प्रकाशित।

Post a Comment