कविता के बारे में
सुनने की कला
कवि इसलिये लिखता है क्योंकि वो सदैव ही एक अच्छा श्रोता होता है। उसको सुनाई पड़ती हैं प्रकृति की वो सब अनसुनी आवाजें, मौसमी बदलाव के स्वर, चट्टानों के स्वर, कही-अनकही, इंसान की जरूरतें, अपने अंतर्मन और हर तरह के सूक्ष्म जगत के प्रभावों को। कवि असीमित संभावनाओं का व्यक्ति है: उसके चारों ओर असल और काल्पनिक तन्मयावस्था का संगम है और उन अनेकों संभावनाओं में से वो चुनता है जो कुछ उसके मिजाज को भाता है।
एक ओर अक्स, ज्ञात भाषाओं के प्रणाल में बहते हैं, दूसरी ओर शब्दों की कूजन सुनायी पड़ती है। कई मर्तबा परदे के पीछे से जो अनसुने शब्द उत्पन्न होते हैं, वो शब्द असल होते हैं और सन्दर्भ में पूरी तरह सही बैठते हैं और कई दफा कुछ मायनों में फूटते हैं और खो जाते हैं। ये उस सर्वविदित भाषा का प्रमाण है जो कविता के स्रोत पर विद्यमान है। (विकिमीडिया फाउंडेशन, २०१०)
क्योंकि कविता हमेशा कहलवाई जाती है, इसलिये कविता सुनने की कला है। जब कवि सुन कर एकत्र कर रहा होता है, तो उसके पास ये आजादी होती है कि वो किस तरफ सुने। वो अपने दर्द को दर्द में सुन सकता है या दर्द की सीख को, या फिर उसकी परछाई को, या फिर उस आनन्द को जो दर्द के पहले था।
कला में निहित ये अनेकों सम्भावनायें उसको आरोग्यवान बनाती है। आस पास और स्वयं से बहाव सिर्फ एक खुले हुए और ग्रहणशील मन से संभव है। स्तुति के गीत, छंद-विद्या में रचनाओं और लय उसकी उस भावना की नब्ज से उदित होते हैं, जिसके जरिये कवि किसी भी परिस्थिति को देखता या सुनता है।
आनंद खत्री
आनंद एक वरिष्ठ वास्तुकार और अर्बन विलेज चैरिटेबल ट्रस्ट (यूवीसीटी) के संस्थापक निदेशक हैं, जो शहरी अनौपचारिकताओं पर काम करने वाली एक रिसर्च रिपॉजिटरी है और पोएसिस सोसाइटी फॉर पोएट्री के संस्थापक हैं।
एसपीए दिल्ली में डिपार्टमेंट ऑफ कंजर्वेसन के पूर्व छात्र रहे आनंद एआईटी एसएपी में प्रोफेसर और रिसर्च सेल के प्रमुख भी हैं। आनंद एक कवि हैं और उन्होंने कई एंथोलोजी प्रकाशित की हैं। आप कला और शहरीकरण के अंतर-सांकेतिक आदान-प्रदान पर काम कर रहे हैं। कविता, वास्तुकला, पारंपरिक नृत्य और रंगमंच को जोड़ने का काम कर् रहे हैं तथा आप ‘कविता एक हीलिंग आर्ट’, ‘कविता और वास्तुकला’ के प्रखर वक्ता हैं।