प्रिय कवि
Helge Torvund नोर्वे के समकालीन महत्वपूर्ण कवि हैं। मेरी उनसे मुलाकात रोगालैण्ड में हुई। वे कवि, आलोचक, कला -आलोचक और प्रकृति प्रेमी है, इन सब से महत्वपूर्ण बात है कि वे पेशे से मनोवैज्ञानिक हैं। हैल्गे प्रकृति संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। नोर्वे वासी बेहद कठिन समय से निकल कर खुशनुमा वक्त में बड़ी मेहनत से प्रवेश कर पाएं हैं, ऐसे में हेल्गे जैसे चिन्तक यह नहीं भूलते कि जो प्रकृति उन पर इतनी अनुकंपा कर रही है, उस का संरक्षण करना मानव की जिम्मेदारी है। जहां वे रहते हैं, वहां प्रकृति का कैनवास बेहद विशाल है। आसमान को पूरी तरह से देखने के लिए गर्दन को 20 डिग्री से 160 डिग्री तक ले जाना पड़ता है। इतने बड़े केनवास को हैल्गे बेहद नन्हीं कविताओं में बाँधने में भी सक्षम है। जब हेल्गे ने मुझे अपनी कविताएं भेजी तो मैने इन नन्हीं कविताओं में से कुछ का कृत्या के लिए अनुवाद करने की ठानी। इन नन्हीं कविताओं में समकालीन ऋतुसंहार का सा आनन्द मिलता है।
*
लकड़ियों के टाल पर
बरफ के मुलायम कतरे
स्वर्णिम स्थिरता
*
किसी की संगत में नहीं
नदी का पानी
लेम्पपोस्ट के नीचे
*
यहां
तुम्हारा घर
एक खुला
तूफानी दिन
*
बर्फ सा सफेद मैदान
अन्त रहित
आरंभ
*
जनवरी की काली रात
रोशनी से बना एक बड़ा कांच का घर
तैर रहा है
बर्फीली सुबह की ओर
*
तुम्हारी आंखों ने देखा
सीधे भीतर
तुमने सोचा कि
सब खत्म हुआ
और
कुछ छूट गया
*
क्या होता है जब वसन्त आता है?
कभी- कभार गंभीरता देता
हरियाली खिलखिला उठती
*
पतझड़ में बरसात
मुलायम करती है
पहाड़ों को
खुशी की असली
खुशबू क्या
होती है?
*
एक अकेला नीला कमरा
सभी के बैठने के लिए
आसन
*
क्या होगा जब वसन्त चला जाएगा?
सांझ मध्यम कर लेगी आवाज
राबिन गीतों की
*
पकने की सौंधी सुगन्ध
सरकती है
अलमारी में
मनोविज्ञान की किताबों के पार
बाहर बगीचे में
नील लिलि की झाड़ी की
ओर
*
इग्रेट
या चांद?
यह सवाल नहीं
हो नहीं सकता?
*
यह रहता है
जैसे कि रोशनी की नरकट
और कोई भी
साफ नहीं कर सकता
इससे ज्यादा
*
क्या होता है जब ग्रीष्म आता है
गर्मियों की बरसात दिखा देती है
अपना इन्द्र धनुष
*
आर्किड, मैं तुम से बात कर रहा हूं
और तुम हो कि–
चुप भी नहीं होते
*
ग्रीष्म का चांद
चमक रहा है तुम्हारी चिन्ताओं पर
तारे पुष्प
घास पर और सुघड़ पेड़ों पर
तुम अपने को भूलने को
याद रखते हो
यहाँ
*
छोटी हड्डी वाले आर्किड
मैं बड़ी हड्डी वाला
आया हूं
एक संशय के साथ
तुम्हारा संशययुक्त जवाब
परछाई भर गई
तितली सन्नाटे से
*
नदी का पानी और ठण्डी पतझर की ठण्ड
मुलायम हाथों वाला
एक प्रेमी
*
लहरे उछलती हैं
चट्टानों से टकरा कर
आसमान की तरफ
जहाँ से वे आई हैं
क्या कुछ कमी रह गई
भण्डार में?
*
वह सिक्का
जो तुम फर्श पर खो बैठे थे
चान्द को मिल गया
*
नन्ही नन्ही बर्फ की कतरनें
देर शाम को
रात की प्रार्थना
जिसे मैं और बिल्ली
एक साथ गा रहे हैं
*
पुरानी जैकेट
बेहद कोमल
मेरे कंधों पर
मेरा फटापन झांक रहा है
ताजे धुले संसार में
मैं नीचे उतरा
वहां,
जो था
अब मैं जा रहा हूं
वहां,
जो है
सीधे दिन के भीतर
*
मग लिए
दोनो हाथों में
पीते हुए
चुपचाप
पीते हुए
तुम्हारे सम्पूर्ण से
(पुनः प्रकाशित )