मेरी बात

कृत्या का कविता से विचित्र सा संबद्ध है, करोनाकाल में मानो समय ठिठक गया था, लोग कुछ भयभीत थे, देश भर के कामगार सड़क पर आ गए थे, और घर की ओर पैदल ही लौट रहे थे. उस मानसिक अवसाद की अवस्था में फेसबुक में साड़ी प्रदर्शन या भोजन प्रदर्शन जैसे चलन लोकप्रिय होने लगे थे, तभी हमने कृत्या के माध्यम से आन लाइन कविता उत्सव आयोजित किया जो लगभग दस दिन चला। इस तरह खाली मन कविता के सहारे अपने समय से जुड़ने लगे थे। पहले आन लाइन फेस्टीवल के उपरान्त कृत्या टाक के माध्यम से लोगों से संवाद करना आरंभ किया, और फिर से 2021 में कृत्या फ़ेस्टिवल के माध्यम से वैश्विक कविता को जोड़ा। हिन्दी- अंग्रेजी अनुवाद ने कविता को सर्व व्यापी बनाया।

यही कारण है कि कृत्या बेहद जटिल वक्त में भी हमें कविता से जोड़े रही। अब सब कुछ सामान्य होने लगा है तो हमने कृत्या पत्रिका के पुराने रूप को बदला़
कृत्या पत्रिका का यह नया रूप आज भी वैश्विक कविता से जोड़ने की कोशिश में है। कविता किस तरह की हो, कृत्या यह निर्णय नहीं लेती, किन्तु किस तरह की कविताएं लिखी जा रही है, उनको जरूर रेखांकित करती है।

अधिकतर कवि अपने परिवेश को रेखांकित करता है, जैसे नोर्वे जैसे प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर  देश के कवि हेल्गे की कविताओं में रहस्य और प्रकृति का समावेश हैं, जिन्हें
प्रिय कवि के रूप मे प्रस्तुत किया गया है। वे प्रिय इसलिए भी है कि प्रकृति प्रेम उनका प्रतिरोध भी है और वे समाज को प्रकृति के हनन पर चेतावनी भी देते हैं। समकालीन कविता में आपको नया आस्वादन मिलेगा। शहर की क्रुरता को कपास की कोमलता में बदलने की चाह दिखाता हुआ– शहर तुम! /शहर तुम कपास हो जाओ!/नर्म…मुलायम…/आंसू भी सोख सकते हो फिर तुम….

आज जब कविता में मानवीय सवालों की कमी को रेखांकित किया जा रहा है तो कुरुक्षेत्र नामक प्रसिद्ध मलयालम कविता का पुनर्पाठ प्रस्तुत किया गया है, जिसे मलयालम कवि अय्यप्प पणिक्कर  ने लिखा था। अग्रज कवि के रूप में कमला दास की कविताओं के अनुवाद प्रस्तुत किए गए हैँ।

इस अंक की कलाकार भी अंजू पाल है़

आशा है अपको यह अंक पसन्द आएगा

रति सक्सेना

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