कवि अग्रज

 

 

 

कमलादास

वर्तमान कवयित्रियों में शायद कमलादास का नाम सबसे ज्यादा विवादग्रस्त रहा है। अपने वक्त से पहले चलने वाली इस कवयित्री में बला का खुलापन है जो अधिकतर समाज को नागवार गुजरता है। लेकिन इसी खुलेपन को ईमानदारी के रूप में लेने वाले प्रशंसकों की भी कमी नहीं रही है। कमलादास ने गद्य व कहानी के लिए मलयालम भाषा चुनी किन्तु कविता के लिए अंग्रेजी को ही माध्यम बनाया। कमला दास की कविता मे विशेष बात मुझे दिखाई देती है, वह है प्यार की भूख, हर उस सम्बन्ध से, जिसके आसपास वे रहती हैं, वह चाहे पति हो या पिता, बेटा हो या प्रेमी। इस भूख को हम राधा, मीरा या फिर हब्बा खातून आदि से जोड़ कर ना देखें तो शायद हम अपने समय की कवयित्री के साथ अन्याय ही करेंगे।

कमला दास की इन कविताओं का अनुवाद संपादक रति सक्सेना ने कृत्या के लिए विशेष रूप से किया है।

 

मेरे गांव में कोई चांद नहीं

करीब आ रहे हैं मेरे, वे ख्वाब में चलते दरख्त
हवा से बिगड़े पंखों वाले, ध्यान में डूबे,
उल्लुओं को कंधों पर लिए,
और तालाब ने उनकी साजिश में शरीक हो
सर्द कोरा कफन डाल दिया मुझ पर
खिड़की की दहलीज पर मैं पहचान सकती हूं
भूतों की उंगलियों के निशान
दरख्तों ने छा दिया स्याह
छप्पर, शहरों के चांद, रेल गाड़ियों से
दिखाई देने वाला खेतों के ऊपर चमचमाता चांद
आता नहीं नजर,
देखने को है बस आग रहित रोशनी
हमारे पोर्च में, चुप्पी कहती है कि
मुझे रहना है जिन्दा…

एक सफर, बगैर वापसी के

आज की रात
मेरे खून के दरिया में
तैर रही हैं इच्छाओं की डालफिन
चलायमान झोंकों के साथ
मेरी जांघें झनझना उठी हैं कसावट से
मैं शर्मशार हो चेहरा उठाती हूं
तुम्हारी ओर
और एक तरफ रख देना चाहती हूं
अपनी पवित्र कसमें
और भूलना चाहती हूं बीता हुआ मधुर घरेलू
निगाहों की टिकटिकी लिए
उस नई मुहब्बत के साथ…
केवल चंद कदमों का फासला तय करना है
तुम्हारे घर तक पहुंचने के लिए
लेकिन इस सफर से कोई वापसी नहीं
क्योंकि इस रात वस्ल की रात में
जो आग सुलग रही है मुझ में
वह जला कर राख कर देगी
मेरे घर की सारी किला बन्दियों को

बूढ़े मवेशी

जब मैं ले जाई जा रही थी
शहर के अस्पताल से घर
हार्ट अटैक के तीन सप्ताह बाद
मैंने पहाड़ी के करीब देखा
बूढ़े मवेशी हांके जा रहे कसाई खानों में
मैंने उनके कमजोर शरीर और झुके कंधों पर
दागे जाने के निशान,
उन में कुछ मुंह मारने लगे करीब की झाड़ियों में
एक क्षण को लगा मुझे कि
मैं कार से उतर कर उन के साथ लग जाऊं
आदमियों के जिस्म गर्म लोहे से
दागे तो नहीं जाते,
वे भेज दिए जाते हैं घर
अपने इलक्ट्रोकाडियोग्राफ और दर्दनाशक दवाओं के साथ।

कीड़े मकोड़े

नदी के तट पर उस सांझ कान्हा ने
आखिरी बार प्यार किया राधा को और छोड़ कर चल दिया
उस रात राधा अपने पति की भुजाओं में
इस कदर ठंडी रही कि वह पूछ बैठा‍
आखिर बात क्या है, तुम्हें पसन्द नहीं हैं क्या मेरे स्नेह चुम्बन?
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं, राधा बोली
मन में सोचा, क्या फरक पड़ता है एक लाश को
कीड़े मकोड़े के काटने से

पुरातन आम का दरख्त

उन्होंने नश्तर से चीर निकाल लिया
खूबसूरत खिलौना माँ के पेट से
इस गुफा के बन्द दरवाजे के सामने
कोई अलीबाबा नहीं जो मंत्र जाप करे
ना ही कोई जंगी घोड़ा खड़ा है इसके करीब
लेकिन क्यों काट डाला उन्होंने वह पुरातन आम का दरख्त
जिस पर सुखाए थे मैंने अपने सपने सूखने को?
अब आगे नहीं जा सकती मेरी नाव मछलियों के शिकार के लिए…
अपने भविष्य के तले में देखती हूं मैं
मौत से सफेद पड़ी तैरती मछलियां

 

राधा

लम्बे इंतजार ने
और गहरा और मजबूत बनाया
उनके सम्बन्धों को, और
तमाम बदगुमानियों को
दलीलों को
कि जब वह पहले आलिंगन में कैद थी तो
लड़की थी, कुंवारी, रोते हुए चिल्ला उठी थी
पिघल रहा सब कुछ मुझ में
यहां तक कठोर किनारियां तक
ओह कान्हा, मैं पिघल रही हूं, पिघल रहीं हूं
कुछ नहीं बचा अब
जो कुछ है वह बस
तुम

 

आदमी एक मौसम है
लेकिन तुम अनन्त
यह सिखाते हुए तुमने मुझे
उछालने दी अपनी जवानी सिक्कों की तरह
अनेकों हाथों में
साथ दिया मुझे परछाइयों का
गाने दिया खाली पूजाघरों में
अपनी बीबी को दूसरों की बाहों में
तलाश करने दी खुशियां
लेकिन मैंने हर साये को
अपने शीशे में धुंधला अक्स बनते देखा है
हर बार उनकी भाषा और अन्दाज को
परिचित सा पाया
मैं अकेले गाती रही
गीत तन्हाइयों के जो दुनिया के
अंधेरे कोनों में प्रतिध्वनित होते रहे
कोई भी नींद नहीं जो बैचेनी भरी ना हो इसके बाद
पुरातन भूख जाग उठी
हो सकता है रास्ता भटक गई
शायद आवारागर्दी में चली गई
एक अंधी पत्नी किस तरह पा सकती है
गुमशुदा पति
एक बहरी पत्नी कैसे सुन सकती है
अपने शौहर की पुकार

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