प्रिय कवि
कोरियाई कवि को अन
Flowers of Moment क्षण के फूल
(कुछ छोटी कविताएँ)
अनुवाद — रेखा सेठी
नीले आसमान के नीचे
एक बच्चा है
गर्भ में
*
एक हज़ार बूँदें
मृत शाख से लटकती हुई
बारिश यूँ ही नहीं बरसी
*
प्रेम करने के लिए अधिक ऊर्जाचाहिए
नफरत करने की ऊर्जा से अधिक
यहाँ इस संसार में
और दूसरी दुनिया में भी
एक सुबह, शाम, रात है जीने लायक
मैं जलाता हूँ एक दिया एकांत में
*
जिस जगह एक टैंक गुज़रा था पिछली गर्मियों में
इस पतझड़ खिली है वहाँ जंगली गुलदाउदी
*
किसी का चलना है सबसे सुंदर
लोगों का मिलना
और साथ चलना, यही है सबसे खूबसूरत
आसमां भरा है फूले-फूले बादलों से
A Certain Joy एक खास खुशी
क्या मैं जो अब सोच रहा हूँ
वह क्या किसी ने पहले ही सोच लिया था
इसी विश्व के किसी हिस्से में।
रोना मत।
क्या मैं जो अब सोच रहा हूँ
वह क्या वही है जो कोई और भी सोच रहा है अब
इसी विश्व के किसी हिस्से में।
रोना मत।
क्या मैं जो अब सोच रहा हूँ
वह क्या वही है जिसे कोई सोचने वाला है
इसी विश्व के किसी हिस्से में।
रोना मत।
कितना सुखद है यह
कि मैं बना हूँ दुनिया में कितनों के ‘मैं’ से
इसी विश्व के किसी हिस्से में
कितना आनंद पूर्ण है यह
कि मैं बना हूँ कितने ‘अन्यों’ से
जो नहीं रोते।
शांति 7
तीन हज़ार साल पुराना गाँव
बेटे का
बेटे का
बेटे का
बेटे का
बेटे के बेटे का गाँव।
गाँव, जो दिल बहलाने को हर तीन साल में एक बार
झगड़ते पानी के अधिकार के लिए
ऊपर और नीचे के धान के लिए
गाँव जिसके पास मानने-मनाने को थी ‘मकॉली’
गाँव की सीमा पर स्थित मधुशाला में
ऐसे गाँव में
हर कोई
कोई भी था
चाचा-मामा, छोटा भाई, बुआ-मौसी, बहन
जबकि सेन चौय था बड़ा भाई
जो मधुमक्खी के डंक से बींधा गया था।
मैंने कभी शांति का अनुभव नहीं किया
सिवाय उस शांति के
मैं शांति का दुश्मन था। गला दबा दो मेरा।
शांति 3
‘शांति’ शब्द में
मैं देखता हूँ
खून सनी लाशें।
‘शांति’ शब्द में
मैं देखता हूँ दृश्य
गहरी रात में फटते बमों के।
क्या वे उसे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर पटाखे कहकर
प्रशंसा नहीं करते रहे?
‘शांति’ शब्द में
मैं देखता हूँ आक्रमण और शोषण।
‘शांति’ शब्द में
मैं देखता हूँ तेल।
‘शांति’ शब्द में
मैं देखता हूँ
मध्य एशिया में अमरीकी हवाई ठिकाने।
हमें कोई और शब्द ढूँढ़ना होगा,
जो बहुत पहले पुराना पड़ गया
या फिर नया गढ़ना होगा,
एक शब्द जिसका प्रयोग कोई नहीं करता।
संभवत: मृत हो चुकी भाषा संस्कृत का शब्द ‘शांति’
या मलेशियाई भाषा का ‘किता’ माने हम
जो निशब्द शांति के मायने दे
शांति, हम सबके लिए।
कोरियाई भाषा का ‘प्योंगह्वा’ भी
सुबह की शांति, जो बनाए रखती है उन सामान्य दिनों को
जब मरते हैं पिता बेटों से पहले।
कवि को अन
कोरियाई कवि, लेखक और कार्यकर्ता को उन का जन्म गनसन-सी, जिओलाबुक-डो में अगस्त 1933 में हुआ था। भावनात्मक रूप से संवेदनशील इस युवा कवि ने 1945 में कविता लिखना शुरू कर दिया और 1960 में कविता की पहली पुस्तक, पियान-गमसेओंग (“ट्रान्सेंडैंटल सेंसिबिलिटी”) प्रकाशित हुई। वह कोरियाई युद्ध की तबाही देखने के बाद बौद्ध भिक्षु बन गये, लेकिन 1962 में उन्होंने बौद्ध समुदाय छोड़ दिया। कवि को सैन्य शासन के विरोध के लिए बार-बार हिरासत में लिया गया, प्रताड़ित किया गया और कैद किया गया। 1990 के दशक में को उन ने उत्तर कोरिया, भारत, तिब्बत और संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया। 2000 में, उन्होंने प्योंगयांग में कोरियाई एकीकरण शिखर सम्मेलन में अपनी कविताएं साझा कीं और संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम शांति शिखर सम्मेलन में अपनी बातें रखीं।
इस कोरियाई कवि की 100 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी कविताओं का एक दर्जन से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उन्हें एसोसिएशन ऑफ राइटर्स फॉर नेशनल लिटरेचर का अध्यक्ष चुना गया और ग्रैंड इंटर-कोरियाई डिक्शनरी की संकलन समिति का अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी, क्यॉन्गी यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और बर्कले में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया है। दक्षिण कोरियाई साहित्य पुरस्कार से दो बार पुरुस्कृत कवि को उन को ग्रिफिन ट्रस्ट फॉर एक्सीलेंस इन पोएट्री का लाइफटाइम रिकॉग्निशन अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
(कवि का परिचय गूगल पर उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर है)
प्रो. रेखा सेठी, दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज की कार्यकारी प्राचार्य व उप-प्राचार्य रही हैं। वे पिछले तीन दशकों से अध्यापन में सक्रिय हैं। साथ ही वे प्रतिष्ठित आलोचक, संपादक तथा अनुवादक हैं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में, विशेष रूप से यूरोप और अमेरिका में शोध-पत्र प्रस्तुत किये हैं। वर्ष 2023 में उन्हें एक सप्ताह के लिए अमेरिका स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया। वे वातायन यूके की ऑनलाइन शृंखला ‘स्मृति और संवाद’ की अध्यक्ष हैं और 2023 में ही उन्हें ‘वातायन अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
उनकी कुल 15 पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें प्रमुख हैं—‘स्त्री-कविता पक्ष और परिप्रेक्ष्य’ तथा ‘स्त्री-कविता पहचान और द्वंद्व’, ‘विज्ञापन: भाषा और संरचना’, ‘विज्ञापन डॉट कॉम’, ‘व्यक्ति और व्यवस्थाः स्वांतत्रयोत्तर हिन्दी कहानी का संदर्भ’, Krishna Sobti: A Counter Archive (सह-संपादित) ‘निबन्धों की दुनिया: प्रेमचंद’ (सं) ‘समय की कसक’ (अनूदित) आदि। उनके प्रकाशित शोध-पत्रों, साहित्यिक आलेखों आदि की संख्या 100 से अधिक है। उन्होंने के. सच्चिदानंदन, लक्ष्मी कण्णन, संजुक्ता दासगुप्ता, ममंग देई समेत अनेक प्रख्यात कवियों का अनुवाद किया है। ‘Women’s Writings in India: Issues and Perspectives’ विषय पर प्रिंसटन विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई कार्यक्रम की डॉ फ़ौजिया फ़ारूकी के साथ मिलकर उन्होंने वेब लेक्चर शृंखला का संयोजन किया तथा ड्यूक यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम ‘Indian Literature of Marginalized Society’ के अंतर्गत आयोजित वक्तव्य शृंखला की अध्यक्ष के रूप में अपना सहयोग दिया।
ई-मेलः rsethi@ip.du.ac.in, reksethi22@gmail.com
फ़ोन: +91-9810985759