कविता के बारे में ( फिलीस्तीन को समर्पित )

हनान अवाद (फिलिस्तीनी कवि)

(हिन्दी अनुवाद प्रो. रेखा सेठी)

 

I Understand You Are Gaza

I Understand You Are the Exception

 

मैं समझती हूँ तुम गाज़ा हो

मैं समझती हूँ तुम हो अपवाद

 

 

फिलिस्तीन में एकाकी गाज़ा के नाम

शहरों में सबसे अकेला शहर

जो खड़ा है प्रतिरोध में

–प्रतिरोध

 

 

जीत की सुबह, गौरव की सुबह

सुबह फिलिस्तीन

ओस की बूंदों की सुबह

मातृत्व की सुबह

बचपन की सुबह

विद्रोहियों की सुबह

शाश्वत प्रेमियों की सुबह।

 

 

तुम्हारा चेहरा उभरता है, लुभाता है मुझे

अपनी अपार जीवंतता से

तुम सौंप देते भोर को तारे का जुगनू

तुम यात्रा करते हो हम में और हमारे साथ

तुम स्पर्श करते हमारे सपने

हमारी मातृभूमि का हीरा हो तुम!

 

 

पौ फटने पर तुम विद्रोह करते

पौ हटने पर तुम लौट आते

भोर होने पर सब घावों से उबर आते।

 

 

क्या तुम अल्फा हो और ओमेगा भी

पहला अक्षर हो तुम और अंतिम भी

और तुम बंद कर देते अपने पीछे के

सभी मौन दरवाज़े,

और बन जाते प्रतिमा

अमर आत्मसंयम की।

 

 

ओह गाज़ा, अतीत का वर्तमान

और आवेगपूर्ण प्रस्ताव से बना

सच्चे लहू के रेत में बिखरे

फूलों से

क्या तुम अपवाद हो?

या हो तुम भीड़ के समय में संन्यासी

हो तुम कुछ?

 

 

या तुम हो सब कुछ?

 

जीत की वैवाहिक पोशाक में लिपटे

शिखर,

पुरुषों की मज़बूत भुजाओं पर

खाकी वर्दी, एक बंदूक का सिरा

और एक धुन ‘ईश्वर महानतम है’

रक्षा दल के लौटने की यह अंतिम पुकार है।

 

 

मैं रक्षा दल की प्रतीक्षा में जड़वत्,

परिणाम की उम्मीद लगाए,

मैं वर्षों की समीक्षा करता हूँ,

उत्पीड़ित,

समंदर मेरा है,

अब सूली पर चढ़ा दिया गया,

और उसकी अनुपस्थिति में,

रेत बन गई मेरी कविताओं की अंतरंग प्रिया,

और उगता हुआ सूर्य अलग होता है मुझसे,

छला गया,

बिना रुकावट रुका हुआ।

 

क्या आद लौटा है?

और जगाया है तमूद?

या फिर अन्याय की यात्रा में झलक रहा,

हर कोने-किनारे में?

और इकरार के समय पर, तुम थे बिल्कुल अकेले।

ओह! अनन्य, अकेले और एकाकी

वे चाहते थे तुम बहुत दूर चले जाओ,

और तुम ममता का प्रतिरूप,

वे चाहते थे तुम दरकाओ दीवार अटल,

चूर-चूर कर दो सिंहासन

जो दूषित कर रहे खुले मैदान।

 

 

क्या अनुपस्थिति लंबी होगी?

और उन किनारों पर सघन चुप्पी है,

और उन सीमाओं पर पूरा सन्नाटा,

और उस अवैध गुप्त वेदी पर,

मारे गए हैं सपने,

और रुक गई सारी वाचालता।

 

 

मैं याद करती हूँ तुम्हें

‘ललकती हूँ उसके लिए जो है दक्ष’,

और ‘उस गति की निकटता के लिए’,

तुम्हारे समुद्र की याद में व्याकुल,

व्याकुल तुम्हारी रेत और एक सन्नद्ध योद्धा के लिए,

व्याकुल हूँ कि तुम हो यात्रा अनंत,

उपेक्षा के खुले मैदान में,

याद आती है मेरी आत्मा के निकट तुम्हारी सरगम,

और एक वायदा।

 

 

यह भाग्य था,

और तुम थे तलवार,

किस्मत बन गई है मेरे जीवन का प्राप्य,

और तुम मेरे सत्य।

 

आज का दिन तुम्हारा है,

और पताकाएँ सजी हैं, जीत के गौरव से सज्जित,

बचाया तुम्हारे लिए,

पवित्र प्रेम में,

एक गीत,

और सूली पर चढ़ा लहूलुहान घाव,

उन पताकाओं के ऊपर,

हवाओं के गुस्से के समक्ष।

 

क्या जबरे लोग छोड़ गए मनुष्य?

और रुक गई हैं बढ़ती लहरें,

गहरी नीली निराशा के लिए,

एक बहुत लंबी पुकार।

 

 

हम नहीं हैं जो रचते एक झूठी जीत,

और डाल दो प्यास मेरे लहू में,

हम नहीं जो दोहराते,

जताते प्रश्नों की व्याख्या,

प्रतिरोध के भीतर से निकलती सामाजिक न्याय की अवधारणा।

 

शांति हो तुम्हारे लिए,

शांति हो तुम्हारे लिए,

बढ़ो, आगे बढ़ो,

यही मेरा लहू है,

बढ़ो, आगे चलो,

साहस रखो,

नहीं हारोगे तुम,

यह मेरा लहू है,

बढ़ो, बढ़ो आगे चलो

‘सुंदर सुबह मिले और शांति रहे सदा तुम्हारे साथ’।

 

 

Love Embrace प्रेम आलिंगन

 

प्रेमियों के हृदय पर अपना सर रखे हुए

आलिंगन में तुम

जैसे लेटे हुए हो

उत्कंठा के  बिरवे

के नीचे

ऊँघते हुए

सूर्य की गुपचुप के साथ

पलकें तुम्हारी भीगी हैं चाह से

हवाओं को चूमती

तुम्हारे चेहरे को भिगोती

 

 

भावना की गरमाहट की संपदा से

परिपूर्ण होता है प्रेम

धारो बसंत के फूल

उत्सव धर्मी गरिमा के साथ

बिखरे सपनों में खुशबू फैलाए।

 

 

प्रेम से बैठो

जब प्रेम आयेगा तुम्हारे पास

अभिभूत कर देगा

जब जेरूसलम की आँखें मिलेंगी तुमसे

विजय तुम्हारी होगी

 

 

ओह तुम नायकों के नायक

वक्त लौट आया है क्या?

पूर्ण होने को

पूरे चाँद की रोशनी से

रोशनी जो सिर्फ तुम्हारे लिए है

और नदियों में

बढ़ जाती तुम्हारी रोशनी

तुम्हारी रोशनी से ही

विस्तृत होती है आकांक्षा।

 

 

प्रेमियों के हृदय पर रखो अपना सर

अपनी पलकों से ढक दो मेरी आँखों के सपने

जबकि आँसू बहते हैं मेरे दिल से

आलिंगन में भर लो वैभव की खुशबू,

जैसे कोई धुन और पुनर्जन्म

तब थम जाएगा दुख।

 

 

आज का दिन तुम्हारा है

मेरी खुशी है अवश्यमभावी,

तुम्हारी करुणा के रंगों से

हरा रंग छू रहा तुम्हारे गालों की लाली

और आँखों की पुतलियों का काला रंग

आँखों की श्वेत पवित्रता,

धड़कती सुबह खिंची  आई किस्मत से,

 

 

जैसे चमकता है तुम्हारा चेहरा

जब खुलता है दिन

तुम्हें धन्यवाद देता

दिन हैं तुम्हारे

उन्हें गर्व है तुम पर!

 

The Stentorian Text (The Strain of Departure)

 

गहरा पाठ (प्रस्थान का दुख)

 

वह शख्स जो हमारे दिलों में बसा है,

उसने अग्नि शिखाओं से गुज़र हमें गले लगाया, और ‘कनानी’ आँखों के साथ हम तक चल आया

वह मनुष्य जो हमारे साथ ही कहीं बाहर नहीं जाता। वह प्रस्थान करता है खोजने को हमें

हमारी अखंडता, भव्यता को प्रतिष्ठित करते।

 

प्रस्थान का दुख चिलकता था आत्मा में धधक उठी ज्वाला।

घायल आत्मा चढ़ा दी गयी विचलन की टहनियों पर।

टूट गई टहनी और जा सटी अपने बाकी हिस्सों से।

दरार और फट गई, एक उदास टहनी और एक झाड़ी के संघर्ष में

जो बचा है उसे गले लगाने की कोशिश में।

यादें पीछा करती थीं तुम्हारी आँखों से और बंद हो जाएंगी मेरी यादों की गोद में।

यह जगह सुनसान है। ओह! अदृश्य और विशिष्ट आभा।

तुम्हारी उपस्थिति ब्रह्मांड की आँच को समेट लेती क्षण के सन्नाटे में।

मैंने तुम्हें याद किया है, जब याद की वह मोहक धुन जिसकी लय उखड़ रही तुम्हारे बिना।

मैं कल्पना करती हूँ तुम्हारा आना जैसे भाग्य के तीखे पहिये जो विश्वास का दवाब लिए आए और लिखी हमारी इच्छा की वसीयत।

 

तुम्हारे अभाव की भरपाई कौन करेगा?

इस अभाव और जुदाई के लिए, फिलिस्तीन के लोगों की भरपाई कौन करेगा?

दर्द भरे इन घावों पर बेहोशी की दवा कौन उँड़ेलेगा?

और कौन करेगा सवाल, पूछताछ और जाँच?

सारे पंख टूट गए मेरे

सारे पंख टूट गए मेरे।

 

ओ पिता! आप हो राष्ट्रीय विचार और मेरी गरिमामयी आवाज़

ओ पिता! आप हैं गौरव का चित्र और आशा का वेश

उन कड़वी यादों का समय कैसे बीता, उस काँटों भरे समय से रास्ता कैसे बनाया?

त्रासद क्षण पास आया और दर्दनाक विदाई हुई।

हमने तुम्हें याद किया ओ पिता, जब फेर दी गईं हमारी आँखें और हम डूबे रहे आस-पास की चाहतों में।

हमने तुम्हारी कमी महसूस की पिता, जब हम आत्मलिप्त रहे और इसी को अपना लक्ष्य मान बैठे।

हमने तुम्हारा जाना महसूस किया—

हमने तुम्हें मार दिया पिता, जब हमने तुम्हारी उपेक्षा की और देखे केवल तुम्हारे ‘लाल हस्ताक्षर’ और तुम लटक गए राजा के फाँसी के तख्ते पर!

हमने तुम्हें याद किया स्वार्थ की ऐय्याशी में

तुम केवल दुस्साहसी नहीं, योद्धा की आवाज़ हो।

हमने तुम्हारी कमी को महसूस किया। हमने मार डाला तुम्हें जब छिपाये तथ्य और पाप किये।

हमने तुम्हें याद किया जब कठिनाइयों के युद्ध क्षेत्र में झुक गए हम।

चलते रहे हम प्रेमियों के पथ पर, अनुपस्थित।

हमने तुम्हारी कमी महसूस की, पिता, जब कपट में डूबी हमारी आवाज़ें, हम तुम्हारे पास थे

जब हम बीतते रोमान का पानी सोख रहे।

हमने तुम्हें याद किया और छोड़ दिया अकेला, डटे हुए, दर्द में सहिष्णु की तरह खुले घावों के साथ

एक चीख की तरह हर कोने-किनारे से गूँजती पास और दूर के इलाकों से

बारिश, तूफान और क्रांतियाँ फूट पड़ीं बाकी सबको ढके

जन्मभूमि।

कैसी कठिन स्थिति। दिल में धड़कन बची है या धड़कन में दुख जब हम कह रहे अलविदा इस दुख को।

क्या हम संतुष्ट हैं उस जाँच से और हाई स्टोरी अदालतों से?

क्या हम संतुष्ट हैं फैसलों और माफ़ीनामों से?

क्या यह काफी होगा आँखों में आँसू और दिल में तुम्हारे प्रति स्थायी सम्मान लिए?

रेत के छोटे कण कैसे कर रहे कोशिश, साहस का पहाड़ बन तुम्हारे हाथों की ओर उठ जायें।

हर बीज और विचार का धर्म तुम ही हो।

 

और मैं हैरान हूँ कैसे बजाई गयी मृत्यु की घंटी तैयारी में, क्षितिज से अलग कर देने को मौत का ‘टर्मिनस एडकुएम’ जहाँ खत्म होते हैं सारे रास्ते?

मुझे यह भी आश्चर्य है कि आपकी मृत्यु के बाद विनिमय-वार्ता में कैसे हिम्मत की आवाज़ों ने

जो पहुँच रहीं टर्मिनल पॉइंट की सुरंग तक।

मैं इस पर भी हैरान हूँ, कि कैसे पर्यवेक्षकों, राजदूतों, कवियों, राजकुमारों, और मित्रों ने यह हिम्मत की

की मृत्यु घटित होने से भी पहले इस समाचार की घोषणा कर दी।

 

इस विकट समय के बारे में मैं क्या कहूँ?

 

अपने सिद्धान्त को छोड़ देने के बारे में मैं क्या कहूँ?

 

‘मामलुक’ के इस समय के बारे में मैं क्या कहूँ?

 

धुंधलके की इस स्थिति के बारे में?

क्या कहूँ मैं उन वायदों के बारे में जो ठहरे हैं उनके स्वामियों के बैंक खातों में और खो बैठे हैं अमर प्रतीक?

 

मैं क्या ही कह सकती थी और मैंने महसूस की तुम्हारी घुटती आवाज़ जब आपको सबसे सम्मानित

और प्रतिष्ठित ‘अरब के पैगंबर’ के रूप में चित्रित किया जा रहा था।

 

फ़िलिस्तीनी कवयित्री हनान अव्वाद

 

फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता, लेखिका और कवयित्री हनान अव्वाद का जन्म 1951 में येरुशलम में हुआ था। लेखिका हनान अव्वाद ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की, कनाडा मैकगिल विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट प्राप्त की। कवयित्री हनान अव्वाद वेस्ट बैंक लौटकर मानविकी विभाग की प्रमुख बनने से पहले यरूशलेम में फिलिस्तीनी अबू डिस कॉलेज में सांस्कृतिक अध्ययन विभाग की प्रमुख रहीं। 1988 में आपने मध्य पूर्व सलाहकार के रूप में सेवा करते हुए शांति और स्वतंत्रता के लिए महिला अंतर्राष्ट्रीय लीग के फिलिस्तीनी अनुभाग की स्थापना की। कवयित्री ने यासर अराफात के सांस्कृतिक सलाहकार के रूप में भी काम किया। उन्होंने फ़िलिस्तीनी राइटर्स यूनियन, फ़िलिस्तीनी यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स और PEN सेंटर फ़ॉर फ़िलिस्तीनी राइटर्स की भी स्थापना की। वह कई पुस्तकों की लेखिका भी हैं और उन्होंने अपना जीवन शिक्षण और फ़िलिस्तीनी हित में महिलाओं की भूमिका दिखाने के लिए समर्पित कर दिया है।

(कवयित्री का परिचय गूगल पर उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर है)

 

 

 

प्रो. रेखा सेठी, दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज की कार्यकारी प्राचार्य व उप-प्राचार्य रही हैं। वे पिछले तीन दशकों से अध्यापन में सक्रिय हैं। साथ ही वे प्रतिष्ठित आलोचक, संपादक तथा अनुवादक हैं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में, विशेष रूप से यूरोप और अमेरिका में शोध-पत्र प्रस्तुत किये हैं। वर्ष 2023 में उन्हें एक सप्ताह के लिए अमेरिका स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया। वे वातायन यूके  की ऑनलाइन शृंखला ‘स्मृति और संवाद’ की अध्यक्ष हैं और 2023 में ही उन्हें ‘वातायन अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

उनकी कुल 15 पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें प्रमुख हैं—‘स्त्री-कविता पक्ष और परिप्रेक्ष्य’ तथा ‘स्त्री-कविता पहचान और द्वंद्व’, ‘विज्ञापन: भाषा और संरचना’, विज्ञापन डॉट कॉम, व्यक्ति और व्यवस्थाः स्वांतत्रयोत्तर हिन्दी कहानी का संदर्भ, Krishna Sobti: A Counter Archive (सह-संपादित) निबन्धों की दुनिया: प्रेमचंद’ (सं) ‘समय की कसक’ (अनूदित) आदि। उनके प्रकाशित शोध-पत्रों, साहित्यिक आलेखों आदि की संख्या 100 से अधिक है। उन्होंने के. सच्चिदानंदन, लक्ष्मी कण्णन, संजुक्ता दासगुप्ता, ममंग देई समेत अनेक प्रख्यात कवियों का अनुवाद किया है।

Womens Writings in India: Issues and Perspectivesविषय पर  प्रिंसटन विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई कार्यक्रम की डॉ फ़ौजिया फ़ारूकी के साथ मिलकर उन्होंने वेब लेक्चर शृंखला का संयोजन किया तथा ड्यूक यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम ‘Indian Literature of Marginalized Society’ के अंतर्गत आयोजित वक्तव्य शृंखला की अध्यक्ष के रूप में अपना सहयोग दिया।  

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