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कवि का कर्म—
रति सक्सेना
वेल्श की महत्वपूर्ण कवि मैना एल्फिन की एक कविता को पढ़ते हुए “ईस्थर” की उपकथा को जानने के लिये उस पर बनी एक फिल्म देख ली, ना जाने कितनी बार दिल रुआँ रुआँ हो गया, रानी की आँख से निकला एक आँसूं देख कर जिसे सिर्फ देश निकाला इस लिये दे दिया गया कि उसने शराब के नशे में डूबे राजा Ahasuerus के उस हुक्म को नकार दिया था, जिसमें रानी को राजा के नशैड़ी दोस्तों के सम्मुख नग्न सौन्दर्य प्रदर्शन करने का आदेश दिया गया था। राजा के नामर्द संगियों को यह भय था कि यदि और औरतों ने वास्ति के उदाहरण का पालन करना शुरु कर दिया तो मर्दो की हुकुमत का क्या होगा?
फिर देश की तमाम कुँवारी लड़कियों को पकड़ कर राजा के हरम में डाल देने वाले चित्र ने मन से रस को निचौड़ लिया, वह छोटी सी बच्ची, जो बस इस लिए फूट फूट कर रो रही है कि उसे अपनी ही बहन से अलग कर दिया गया, या फिर अनाथ यहूदी लड़की इस्थर, जो अपनी बौद्धिकता को फड़फड़ाते हुए देख रही है,,, राजा कितना कमजोर जीव होता है, वह भी दिखाई दिया।
यहाँ पर फिर था यहूदियों के पलायन का संकट, पराई जमीन परशिया से खदेड़े जाने का खतरा भी दिखाई दे रहा था।
और अन्ततः ईस्थर के चचेरे भाई Mordecai का अपने लोगों से सवाल, हमारी जमीन कौन सी है, जिसे हमने देखा तक नहीं? या फिर जिसमें हमारे पितरों की रूहे रह रही है?
जब मैं नेटिव अमेरिकन आदीवासी नेता सिएटल का उद्घोष पढ़ रही थी तो उसका सवाल भी कुछ ऐसा ही था। वे वाशिंगटन के जोर देने पर आदीवासी नेता “सिएटल- वाशिंगटन संधि” पर हस्ताक्षर तो कर देते हैं लेकिन अपनी जमीन के बारे में सवाल करते हैं…
वह ज़मीन जहां तुम कारखानें खोलोगे
हमारे पितरों की राख से अटी पड़ी है
वह आसमान जहाँ तुम उड़ान भरोगे
हमारे पितरों की आत्माएं उड़ रही हैं
तुम्हारा धर्म काली स्याही से लिखा गया है
हमारा धर्म हमारे दिलों में खुदा है
तुम्हारे पितर तारों के करीब जाते ही
तुम्हें भूल जाया करते हैं
हमारे पितर अंधेरी रात में भी
हमारे चारों मंडराया करते हैं
ये नदियां जो ज्वालामुखी से उभरी
ये पहाड़- जो ज्वालामुखी बन ठंडाए
ये सुनहरी वादियाँ, झीलें ,ये जंगल
सभी में डोल रहें हैं हमारे पितर
कहां हैं हम अकेले?
तुम भी तो नहीं…हमारे पितरों की छांह में
(सिएटल के भाषण का रति सक्सेना द्वारा काव्य रूपान्तर )
आदमी दो दर्दों से एक साथ जूझता है, एक तो जमीन से जुड़ने का दर्द, हां दर्द, क्यों कि जमीन में उसकी अच्छी बुरी स्मृतियां सोती हैं, दूसरे नई जगह जाने की छटपटाहट से। क्यों कि नई जमीन उसे कुछ ऐसा नया दे सकती हैं, जो उसे वर्तमान में नहीं मिला। लेकिन नई जगह जा कर भी वह अपने भूत को भुला नहीं पाता, खास तौर से अपनी जमीन से। इसीलिए वह नई जगह जाकर वह सब निर्मित कर लेता है, जो उसकी छूटी हुई जमीन में था। यदि आदमी घुमक्कड़ी को आदत बना ले तो समस्या अधिक नहीं होती, लेकिन घुमक्कड़ी सबके बस की नहीं होती है।
आदमी का यह मोह उसके कष्टों का कारण हो सकता है, खासतौर से तब, जब वह जमीन के उस टुकड़े पर मालिकाना हक जताए।
दुनिया के अधिकतम युद्धों की जड़, जमीन के प्रति आग्रह, और अधिक पाने की लालसा और दूसरों का हक मारने की प्रवृत्ति होती है।
समस्त धर्म जो मानव का भला करने के लिए जन्म लेते हैं, उसे इस लालसा से निवृत्ति नहीं दिलवाते, बल्कि कभी कभी कारण भी बन जाते हैं।
लेकिन कवि का कर्म क्या है? वह क्या धर्म की जगह ले सकता है?
यदि न भी ले सकता हो, कोशिश तो कर सकता है।