मेरी बात


कविता के आसपास भटकते हुए

कविता के प्रति कहे गए समस्त काव्यशास्त्रीय नियमों और आप्तवचनों से परे हटते हुए, महत् आलोचकों की उक्तियों से बचते हुए, एक सहज व स्वत्वरित चिन्तन या चिन्ता की भटकन को कविता के आसपास केन्द्रित किया जाए तो समकालीन परिवेश में कविता की स्थिति और उपादेयता का जायज़ा ज़रूर मिल सकता है किन्तु सवालों का जत्था ज्यों का त्यों खड़ा दिखाई देगा। समकालीन परिवेश में कविता गत संदर्भ के पूरी तरह से बदलने के बावजूद पूर्वोक्त की पुनर्व्याख्या को नकारा नहीं जा सकता, इस संदर्भ में एक सवाल ज़रूर उठता है कि हरदम पुराने आईने में झांकते हुए छवि सुधारने की कोशिश की अपेक्षा ऐसा कुछ नया क्यों नहीं किया जा सकता जो विचारों को काल और दिक् से जोड़े रखते हुए उड़ान के सुख को बाधित न करे। कविता की विवशता यह भी रही है कि हर काल और स्थान ने उसके लिए निश्चित मापदण्ड निर्धारित किए, जो उसकी स्वच्छंद उड़ान को बाधित करते रहे। हालांकि हर दिक्-काल में अपनी उड़ान को स्वतंत्र करने की कोशिश करती हुई कविता ने कभी-कभार एक दो पैंगे ले लिए है तो कभी-कभार अपने को घायल भी कर लिया, किन्तु अबाध गतिशीलता से सदैव वंचित रही। पूर्वकथित की पुनर्व्याख्या के स्थान पर सहज चिन्तन को सोच का हिस्सा बनाते हुए कुछ सवाल उपजते हैं, जिन्हें पाठकीय चेतना से जोड़ा जाए तो भटकन कुछ बढ़ती ही दिखाई देती है।

कविता का समकाल बेहद उलझा हुआ है, निरन्तर खरपतवार सी उगती फसली कविता ने दिग्भ्रमित भी किया है। कविता के आसपास लगातार भटकन का होना जरूरी है। चाहे वह देश की सीमा में हो या बाहर। यही कारण है कि हम समकालीन कविता के बारे में बात करते हुए अनेक भाषा की कविताओं से गुजरते हैं।

कृत्या के इस अंक में हिन्दी की कविताओं में गीत और युवा स्वर के साथ अंग्रेजी और उत्तर पूर्व की भाषा कोकबोरोक से बिकास रॉय देबबर्मा की कविताओं को अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया गया हैं।वैश्विक कविता में बुल्गेरिया के कवि को लाए हैं। कविता के बारे में अरुण कमल की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। अग्रज कवि के रूप में सीरियन कवि निज़ार क़ब्बानी की अरबी कविता को लेकर आएं हैं।

हम अय्यप्प पणिक्कर की कविताओं को कुछ अंको तक प्रिय कवि अंक में प्रस्तुत करना चाहते हैं, जिससे हिन्दी के पाठक दक्षिण में आधुनिक कविता की प्रकृति को समझ सकें।

कृत्या लगातार सत्रह वर्षों से कविता की अलख जगाए हुए है। आशा है, पाठक वर्ग हमारे साथ जुड़ेंगे।

रति सक्सेना

Post a Comment