मेरी बात

जब कभी कविता शास्त्र सम्मत राह छोड़कर पगडंडियों पर चलना शुरु कर देती है तो विशुद्ध ज्ञानी जन होंठ बिचका लेते हैं। फिर भी न जाने कैसे कुछ नैसर्गिक काव्योक्तियां सदियों जी लेती हैं। उदाहरण हैं तिरुवल्लुवर और कबीर जैसे महान कविगण, जिनकी कविता में जिन्दगी और अध्यात्म दोनों का संप्रेषण होता है। उनकी सहजता  संप्रेषणीयता से आती थी, क्योंकि वे शब्दों या भावों के जाल में उलझे बिना सीधे शब्दों में बात करते थे। हमारे देश की अनेक भाषाओं के भक्त कवि लगभग इसी श्रेणी में आते हैं।

कविता को वाक्चातुर्य और काव्य सौन्दर्य से सजाने के भी अनेक प्रयास होते रहे हैं। ये वाजिब भी हैं, क्योंकि इस तरह का लेखन भाषा के विकास के साथ-साथ रसिक गणों को आनन्द देता है। लेकिन अनजाने में जन सामान्य से दूर चला जाता है। फिर भी यह समझा जा सकता है कि यदि सहज भाषा में गंभीर वैचारिकता को प्रस्तुत किया जाये तो निसन्देह वह बेहतरीन साहित्य होगा। वह जन मानस में उसी तरह रच पच जाएगा जिस तरह से कबीर और तिरुवल्लुवर का काव्य संसार रहा जो जनसाधारण का वेद बन गया।

 

कविता पर काल और स्थान का भी प्रभाव होता है। प्रकृति के करीब कविता में गीतात्मकता अधिकता होती है, यदि उसे खींच-खांच कर महानगरीय शैली में रचा जाए तो वह अपनी नैसर्गिकता खो बैठती है। महानगरीय कविता चहचहाना लगभग  भूल चुकी है, उसे अपने परिवेश में जो रूखापन मिलता है, वह कविता में आयेगा तो आनन्द भाव को तिरोहित करना पड़ेगा।

कृत्या में हम कविता की विविधता के साथ काल और स्थान की विविधता पर भी ध्यान देते हैं, यही कारण हैं, हम वैश्विक परिवेश की कविताओं को भी अनुवाद के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इस अंक में क्रिस्टीना पीकोज की कविताओं का अनुवाद है, जो द्वितीय महायुद्ध में पोलैंड वासियों की वेदना और नाजी अत्याचार को दिखाता है। हिन्दी कविता में जावेद आलम ख़ान और युवा कवि गरिमा जोशी पंत की कविताएं हैं। फ्रांस के फ्रांसिस कोंबस की कविताएं समकालीन सवालों को दर्शाती हैं। युवा आलोचक कुमार सुशान्त “अरुण कोलटकर की कविताएं: रूप अरूप ” नाम से विवेचना है, जो मराठी कवि का हिन्दी में बेहतरीन पाठ माना जा सकता है।

ओसिफ़ ब्रोद्स्की की कविताओं का प्रसिद्ध कवि अनुवादक वरयाम सिंह द्वारा अनूदित कविताओं का आनन्द संपादकीय पसन्द के रूप में पढ़ सकते हैं।

 

अग्रज कवि के रूप में नामदेव को पढ़ना निसन्देह सानन्द भाव उपजाता है।

 

इस अंक की कलाकार हैं, संजु पाल, जो पेशे से पशुचिकित्सक हैं, शौक से कवि और कलाकार। हिमाचल प्रदेश की कलाकार संजु अनेक कलात्मक प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हैं।

 

नए वर्ष की शुभकामनाओं सहित

 

रति सक्सेना

 

 

 

1 Comment

  • An intriguing discussion is worth comment. I think that you need to publish more about this subject matter, it might not be a taboo subject but typically people dont speak about these subjects. To the next! Kind regards!!

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