मेरी बात

कभी -कभी मुझे लगता है कि हम सब नीरो तो नहीं हो गए? रोम जल रहा है और हम बांसुरी बजा रहे हैं। आजकल हम जिस सहजता से बड़ी से बड़ी दुर्घटना को झेल जाते हैं, मुझे डर लगता है। टी.वी. के सामने डटे लोग खाना खाते वक्त सब तरह के दृश्यों को जिस निर्विकार भाव से देखते रहते हैं, मुझे संवेदनाओं के खत्म होने का भय सता रहा है। भय तो बहुत से हैं, यानी कि जिस तरह कपड़े उतारे और लादे जा रहे हैं, जिस तरह से झूठी दार्शनिकता से अपनी संवेदनाओं को सुलाया जा रहा है, जिस तरह से शान्ति के नाम पर युद्ध हो रहे हैं, वह सब भयानक भविष्य का सूचक है।

 

 

युद्ध आदमी को इंसानियत से दूर करता है
युद्ध भविष्य को घायल करता है
युद्ध बुढ़ापे को और अकेला करता है
युद्ध अमीरों को अमीर, गरीबों को गरीब करता है
युद्ध रोटी की जगह हथियारों की खेप उगाता है
युद्ध जमीन को बंजर करता है
युद्ध आसमान कें छेद करता है
युद्ध बचपन को घायल करता है
युद्ध सैनिकों के मन को असन्तुलित करता है
युद्ध हत्या को बढ़ावा देता है
युद्ध अनाज की जगह कम करता है

युद्ध राजनीतिज्ञों की मंशा पूरी करता है
युद्ध व्यापारियों का पेट भरते हैं
युद्ध क्रूरता के नाखुन लम्बे करता है

युद्ध वह सब करता है, जो इस धरती के लिए
बेहद गैर जरूरी है

अतः युद्ध के विरोध में ‍‍–

रति सक्सेना

 

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