कवि अग्रज

निज़ार क़ब्बानी (Nizar Qabbani)

1923-1998

अनूदित: रति सक्सेना

 

 

 

 

 

“चिड़िया घोंसले की ओर लौटती है और बच्चा लौटता है मां के स्तनों में,”

निज़ार क़ब्बानी प्रसिद्ध सीरियन अरबी शायर हैं, जो अपनी बेबाक़ी और शायरी दोनों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। आपसे पहले अरबी शायरी में पारम्परिक भाषा का निर्वाह हुआ करता था। आपने अपनी शायरी में रोजमर्रा की भाषा को जगह दी। इस तरह शायरी को आम आदमी के क़रीब ले आए। उनके जीवन का अधिकतर हिस्सा लंदन में बीता, लेकिन देश उनके ज़हन से अलग नहीं हुआ। वे उन लोगों में भी प्रसिद्ध हुए जिनका शायरी से कोई नाता ही नहीं था।

*

मेरी मुहब्बत ने पूछा मुझसे
“क्या अन्तर है, आसमान और मुझ में?”
अन्तर इतना ही है, मेरी माशूक़ा
जब तुम खिलखिलाती हो
मैं आसमान भुला बैठता हूं

*

मुहब्बत में मुक़ाबला

मेरा मुक़ाबला नहीं तुम्हारे दूसरे
आशिक़ से , माशूक़ा!
वह तुम्हें यदि बादल देगा,
मैं तुम्हें दूंगा बरसात
वह तुम्हें गर लालटेन देगा
मैं दूंगा तुम्हें चांद
वह तुम्हें गर टहनी देगा
मैं दूंगा तुम्हें दरख़्त
दूसरा गर तुम्हें जहाज़ देगा
मैं दूंगा तुम्हें एक भरापूरा सफ़र

*
मुहब्बत

जब मैं करता हूं मुहब्बत तो
होता हूं सारे जहां का बादशाह
तमाम दुनिया पार राज करते हुए
सूरज की ओर बढ़ता हूं घोड़े पर सवार
मुहब्बत में बन जाता हूं पिघली रोशनी
जो दिखाई न दे आंखों से
मेरी डायरी में लिखी ग़ज़लें
बदल जाती हैं अफ़ीम के खेतों में
जब मैं मुहब्बत में हूं, तो
उंगलियों से पानी बहता है
ज़बान पर घास उगती है
जब मै हूं मुहब्बत में तो
सारे वक़्त को पार कर
बन जाता हूं खुद वक़्त
जब मैं मुहब्बत करता हूं औरत से तो
सारे दरख़्त भागते हैं मेरे पीछे नंगे पांव

*
समन्दर में पैठते हुए

आख़िरकार मुहब्बत हो गई
हम आ पहुंचे ख़ुदा की जन्नत में
पानी की खाल के नीचे तिरते हुए
मछली की तरह
समन्दर के
बेशक़ीमती मोतियों को देख कर
अचम्भित होते रहे
आख़िरकार मुहब्बत हो गई
बिना किसी डर के, पूरी शिद्दत के साथ
और हम साफ़ थे
इतनी आसानी से हुआ कि
जैसे कि चमेली के पानी से लिखा हो
जैसे कि पानी का दरिया बहा हो

*

मैंने लफ़्ज़ों से जीत लिया दुनिया को

मैंने लफ़्ज़ों से जीत लिया दुनिया को
जीत लिया अपनी मादर-ए-ज़बान को
संज्ञा, सर्वनाम , वाक्य विन्यास
मैंने शुरुआत की
जिसमें पानी का संगीत और आग का सन्देश है
मैंने आने वाले वक़्त के लिए रोशनी रखी
वक़्त को तुम्हारी आंखों में रोक दिया
उस लक़ीर को ही मिटा दिया
जो एक लम्हे के लिए भी वक़्त को दूर करे

*

संवाद

मत कहो कि मेरी मुहब्बत
अंगूठी या कंगन थी
मेरी मुहब्बत रुकावट थी
ज़बरदस्त और घमासान
जो मौत की ओर तैरती चली गई

मत कहो कि मेरी मुहब्बत
चांद थी
वह तो चिंगारियों का पुंज थी

Post a Comment