अग्रज कवि

अक्का महादेवी के वचन

 

अक्का महादेवी कन्नड़ साहित्य की महती विभूति हैं, १२ वीं सदी की महान कवयित्री अक्का कन्नड़ के शैव वचनकारों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। उनका विवाह एक अत्यन्त कामी मनुष्य से हो गया था। अक्का पति को त्याग कर भटकती फिरीं, फिर वे कल्याण में अभिनव मण्डप के वीर शैव समूह का हिस्सा बन गईं, समाज की उलाहना को अकेली झेलती हुई अक्का ने हमें जिस काव्य सौन्दर्य से परिचित करवाया, वह अद्भुत है। हीरे सी तराश लिए महादेवी के वचनों में जिन्दगी का अनुभव है। निम्न लिखित ६ वचनों का अंग्रेजी से अनुवाद स्वयं संपादक ने किया है। अन्य वचन पंजाबी अनुवादक लवलीन द्वारा सीधे कन्नड़ से अनुदित हैं।

 

रति सक्सेना द्वारा अंग्रेजी से अनूदित —

 

माला चाहे हीरे की क्यो ना हो,
बंधन है
जाल चाहे मोतियों का क्यों ना हो
रुकावट है,
गर्दन चाहे सोने की तलवार से क्यो ना कटे
मौत है।

हे प्रभु ! तुम ही बतलाओ
जिन्दगी के फेर में पड़ कर
क्या कोई छूट सकता है
जनम मरण के बन्धन से

 

उस वृक्ष का क्या
जिसमें छाया ना हो
उस धन का क्या
जिसमें करुणा ना हो

 

उस गाय का क्या
जो दूध ना दे
उस खूबसूरती का क्या
जिसमें सदगुण ना हो

 

उस थाली का क्या
जिसमें भात ना हो
हे प्रभु !
इस जिन्दगी का क्या
यदि तुम्हे जाना ना हो।

 

मोर नाचता है पहाड़ी पर
ना कि घास की ढ़ेरी पर
कोयल गाती है तभी
जब आम में बौर आती है
छोड़ देती है मधुमक्खी उस फूल को
जिसमें खुशबू ना हो
मैं भी बन्धु
प्रतीक्षा करूं अपने प्रभु की
ना किसी दूसरे की

 

भोजन है भूखे के लिए
ताल, तल्लैया, कुआं हैं प्यासे के लिए
टूटा मन्दिर भी सोने के लिए
हे प्रभु ! मुझे तो तुम्हारी चाह है
एकात्म होने के लिए

 

अय्या ! क्या तुम प्रसन्न होते हो
आठ पहर की पूजा से
तुम परे हो इन्द्रियों से

 

अय्या ! क्या तुम प्रसन्न होते हो
कोरी तपस्या से
तुम परे हो शब्द और विचारों से

 

अय्या ! क्या तुम प्रसन्न होते हो
माला फेरने या नाम जपने से
तुम तो परे हो ध्वनि से

 

अय्या ! क्या तुम प्रसन्न होते हो
जानने या पहचानने से
तुम तो परे हो सब ज्ञान से

 

अय्या ! छिपा कर रखा है मैंने तुझे
हृदय कमल की पंखुड़ियों में
तुम विराजमान हो मेरे समस्त अंगों में

 

अय्या ! कैसे तुझे प्रसन्न नही कर सकती मै
मेरे प्रभु!
प्रसन्नता तभी है ,
जब तुम स्वयं हो प्रसन्न

 

बिछुड़न के बाद मिलन में
जो आनन्द है मित्र!
वह नहीं है
सदा साथ रहने में

 

असहनीय हो जाती है प्रतीक्षा
चाहे विछोह हो
मात्र एक दिन का

 

कैसे वर्णन करूं में
विछोह के उस आनन्द का
मेरे प्रभु
जिसके उपरान्त है तुमसे मिलन

 

इन गीतों का अनुवाद कृत्या के लिए लवलीन जी ने सीधे कन्नड़ से किया है।

 

निम्न लिखित वचनों में गीतों सी लयबद्धता है । इन गीतों में अक्का महादेवी की ईश्वर के प्रति उत्कट प्रेम की बानगी मिलती है। कितना सादृश्य है मीरा और अक्का के गीतों में , हो भी क्यों न? दोनों ही प्रभु प्रेम में दीवानी जो थीं।

 

माई री ! उस अगम, अनन्त
अकाल, अविनाशी
सुन्दर सलोने से
हो गया है प्यार माई री!
सुन री माई, सुन री
उस अखंड, निडर, अजूनी
सुन्दर सलोने से
हो गया है प्यार माई री!
जात न पात उसकी
उस अगम, असीम सोहने से
हो गया है प्यार माई री!
चेनामल्लिक अर्जुना पति मेरा
सुन्दर सलोना
भाड़ में जाएं दूसरे पति
सुन्दर सलोने से
हो गया है प्यार मुझे माई री!

 

 

ओखली में कूटे रोड़े कंकड़
वेद पुराण सकल शास्त्र
क्यो कूटते जाते हो भाई
भटकते मन को चीर कर देखो
शून्य में मात्र एक है
चेनामल्लिक अर्जुना

 

आकाश की विशालता जानता है चांद
गगन में उड़ती चील क्या जाने उसकी थाह ?
नदी की गहराई जानता है कमल
किनारे उगा जंगली फूल कैसे समझे गहनता?
मधु को पहचान है पुष्प की सुगन्ध की
बाहर मंडराते कीड़ा जान पाए कैसे?
हे चेनामल्लिक अर्जुना ! अमने शरणागतों के
गुणों को जाने बस तू ही
कैसे समझे ये जन भैंस की पीठ पर बैठी
मक्खियों से भिनभिनाते जो

 

जैसे रेशम का कीड़ा
बनाता है घर अपने ही थूक से
मर जाता है सूत में
अपने ही उलझ कर
जल रहीं हूँ
मन की इच्छाओं के पीछे
भाग भाग कर
दूर कर तृष्णाएं मेरी
दे अपने चरणों में स्थान
हे चेनामल्लिक अर्जुना!

 

वस्त्र उतर जाएं
गुप्त अंगों पर से तो
लज्जा व्याकुल हो जाते है जन
तू स्वामि जगत का, सर्वव्यापि
एक कण भी नहीं, जहां तू नहीं
फिर लज्जा किस से?
चेनामल्लिक अर्जुना देखे जग को
बन स्वयं नेत्र
फिर कैसे कोई ढ़के,
छिपाए अपने को?

 


मैं बौरी हुई बावली
मन्द पवन बन गई ज्वाला
चांदनी जलाए मेरे तन को
भटकती फिरूं अकेली
कोई दे उलाहने
नित नित मारे ताने
ए री माय! समझा उसे
संदेशा दे बुला उसे
नित नित रूठे मेरा प्रभु
चेनामल्लिक अर्जुना

Post a Comment