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सुकृता की कविताएं

अनुवादः शुभा द्विवेदी

श्रीनगर में डल पर

विहार करते हुए
तुषारित झील की सतह पर
मेरे विचार
पूरी तरह से
पारदर्शी हो गए

मैंने पहली बार
अपना मुख देखा
जैसे किसी क्यूबिस्ट की
कलाकृति

पीला,लाल, हरा,
नीला और कुछ कुछ सफ़ेद
और बैंगनी भी
घुलते मिलते हुए
स्नेह, प्रीति, आसक्ति
रुचियों और अरुचियों से

केवट का चप्पू छपछपाया
और रंगों को छितराते हुए
पूरी अस्तव्यस्तता को
तट पर ले गया
लहरों और बुलबुलों के साथ

मेरे विचारों को
एक बार पुनः
अपारदर्शी और
कुछ-कुछ
रहस्यमय बनाते हुए ।

2.

कुछ सकारात्मक हस्तक्षेप

जब जड़ों ने ख़ुद को
ऊपर उठाया

एक पुष्प के रूप में
दिलेरी से सूर्य का सामना करने के लिए

वृष्टि पड़ने लगी

*
यह एक भयंकर दुर्घटना थी
मेरे मन की तुम्हारे मन से भिड़ंत हुई
कुछ लम्हों ने अंतिम साँस ली।

*
मेरी कविताएं
उन अनुभवों के
स्मृति लेख हैं
जो मेरे साथ ही समाप्त हो गए

*
मैं गर्भितहूं
अदम्य संदेशों से
जैसे मेरी ने यीशु को
धारण किया था
इन संदेशों की सुपुर्दगी
मुझे सूली पर चढ़ाएगी

*
मैं अपनी तस्वीर में मौजूद नहींहूं
मेरी सकारात्मकता
हमेशा के लिए सो रही है
किसी खटोले में
किसी एकांत कक्ष में

*
मेरा भविष्य सुनियोजित है
मेरे शोक-गीत में
और मेरी मृत्यु
इसे अनावृत करेगी

*
ओस की बूँद निगल जाती है
सूर्य को
और
एक वैविध्यपूर्ण जीवन की निर्मिति होती है

*
जब मेरी छाया
मुझसे आगे निकल गई
मुझे भान हो गया
कि मैंने सूरज को पीछे छोड़ दिया

*
मैं अपनी परछाईं का वैसे ही अनुसरण करतीहूं
जैसे वह मेरे पीछे आती है
अनधिकृत प्रवेशक का मुँह काला किया जाएगा

*
कुत्ते का भौंकना
रात्रि की निस्तब्धता को
चरितार्थ करता है

3.

मिथिला की ओर,शांति की खोज में

गंगा के तट पर
पटना में
ध्वनियों के साथ-साथ मौन भी प्रवाहमान है
सरसराती हवाएँ
चहचहाते पक्षी
काँव-काँव करते कौए

स्थिर सतह के ठीक नीचे
केन्द्र में
गंगा के बींचोबीच
अतीत के प्रेत जगते हैं
जलीय ताबूतों में पड़े हुए
मेरे ज़रिए आंखें फाड़कर घूरते हुए
सवाल उठाते हुए
विकृत,अपवर्तित और स्तरित
धीमे- धीमे मेरी छाती पर लोटते हुए
केंद्र की ओर अभिमुख वृत्तों के रूप में
अर्थ और छवियां

नौका मुझे ले जाने के लिए उद्यत है
बिहार के धड़कते हृदय में
मिथिला की ओर;
जानकी की भूमि
मधुबनी
और तत्वज्ञान की ।

4.

लैला की पुकार

(महमूद अब्बू हश्शाश को समर्पित)

ओ क़ैस, अमर प्रेम की मिसाल!
काश़ कि तुम खुलकर जताते
अपनी रूहानी ख़्वाहिशात से बाहर निकलते
आयतों में बद्ध अपनी हसरतों से हटकर सोचते
और अपनी लैला को पहचानते
उसके धड़कते हुए दिल की पुकार को सुनते
उसकी आत्मा की तड़प को महसूस करते

काश़ ऐसा होता क़ैस, कि इतिहास तुम्हें रिहाई दे देता
और कोई जगह तुम्हें बाँध पाती
तुम इश्क़ के बादलों में छिप कर
समय और स्थान की जटिलताओं से गुज़रते हुए
सदी दर सदी
लैला की तस्वीरों को गुफ़ाओं और मकबरों से आजा़द करो

जिन्हें तुमने लफ़्ज़ों और लौह-ए-मज़ार में बाँध दिया

लैला कुम्हार के चाक पर हमेशा के लिए अटकी हुई है
तुम्हारी हथेलियों के प्यालों के बीच घूमती हुई
तुम्हारी उंगलियां हमेशा उसे तराशती और सांचे में ढालतीं रहीं

पर क़ैस, लैला अपने आप में पूर्ण है
जैसे पूनम का चांद पूरा होता है
ग्रहों के बीच एक ग्रह

तुम्हारी नज़में समुंदर की कल-कल करती लहरों सी हैं
जो आसमानों तक पहुंचने के लिए छलांग लगाती हैं
और वापस लौट जाती हैं अपनी परछाइयों के साथ
थमे हुए जल की सतह पर
थकी हुई और लंगड़ातीं हुईं

इश्क़ तौफ़ीक़ है,
लैला कहती है, वो कोई बद्दुआ नहीं,
मेरे मजनू, मेरे क़ैस,
वह कहती है, मेरे क़रीब आओ
मौत से मत डरो
अमरता की तुम्हारी लालसा
हमें दूर करती है

5.

कर्णकर्कश ध्वनियों के परे

शब्द आयुध हैं
जो प्रयुज्य होते हैं
आहत करने के लिए,पीड़ा पहुंचाने के लिए
यहां तक कि नरसंहार के लिए
बारम्बार ।

हिंसा की भाषा में विराम सिर्फ़
इतना ही होता है कि
रक्त ज़ख्मों पर जम सके।

शब्द मनुष्य के चित्त को कुरेदते हैं
कुशलता से उसे संचालित करते हैं
असंतुलित बना देते हैं –
पुनः प्रकट होने के लिए
निर्दोष शिशुओं के मानिंद ,धूर्त।

शब्द, निःसन्देह मरहम भी बनते हैं
वो घावों को भर देते हैं
अग्निशामक होते हैं
चोटिल आत्मा का उद्धार करते हैं
जो पुनर्जीवित हो उठती है राख से
पुनः उत्पन्न हुए
फ़ीनिक्स पक्षी की तरह।

शब्द सुलगते दहकते अंगारे हैं
जो चिंगारियां फेंकते हैं
मन की अंधेरी परतों गर्तों में
और किसी कोने में गहराती
छोटी गुफा तक को प्रदीप्त कर देते

हैं

जहाँ फ़रिश्ते निवासस्थ हैं
उदारता के पुंज
जो ग़म देते हैं
तो ख़ुशियों के भी वाहक हैं
इस संसार में

शब्द वो गुलाबी कलियां हैं
जो शोख लाल चेरीज में परिपक्व होते हैं
कवियों द्वारा आस्वादित
जो मांस और रक्त उधार देते हैं
प्रशीतित – जड़ विचारों को
जीवन का संचार करते हैं
संवेदनाओं से रहित अस्थि पंजर में।

शब्द पंखधारी माध्यम हैं
सम्प्रेषण के
उड़ते और विलीन होते
निःशब्दता के रहस्यमय अंधेरों में
हमारी आकाशगंगा के केन्द्र में
बहुत गहराई तक।

6.

वाघा में

वाघा में
मैं सबसे ज़्यादा मोहब्बत तुमसे करती हूं
सीमांत
सैनिकों के बूटों की धम-धम
और चमकते पदकों के प्रदर्शन से
सुशोभित है

अपने सीने ठोंकते हुए
उगते और डूबते सूरज के साथ दिन के रात और
रात के दिन में तब्दील होते हुए
जब दोनों तरफ़ के प्रहरी
गोलियों की गड़गड़ाहट का आदान-प्रदान करते हैं

वाघा में
मैं सबसे ज़्यादा मोहब्बत तुमसे करतीहूं
जब बंदूकें उठायी जाती हैं सलामी देने
विभाजन, बँटवारे और संबंध-भंग को
जब पड़ोसी की जान जाती है और वह कफन ओढता है
एकदम से दुश्मन का रूप अख़्तियार कर लेता है

मेरे प्रिय तुम चले जाओ,
जैसा कि पक्षी करते हैं
मुक्त आकाश में उड़ने को

जब नफ़रत की दीवारें उठती हैं
प्रार्थना के ध्वजों के प्रतिकूल
तो वाघा घटित होता है

और मैं सबसे ज़्यादा मोहब्बत तुमसे करती हूं
क्योंकि तुम दूसरे छोर पर हो
सीमा के

7.

अतीत के पन्नों से

तुझमें,
अपने जीवन को
उतारते हुए

मेरी बेटी
मेरा इतिहास है

मुझे
इस बात का संज्ञान है
कि अब मैं मेरी माँ हूं
जैसे तुम,
तुम्हारी हो।

8.
उषा काल

गहरा काला रंग
मिल जाता है
गहरे नीले रंग से
और एक सीमा रेखा सी खिंच जाती है

धरती और अंबर के बीचोंबीच
ख़ाके एक दूसरे में सध जाते हैं
एक ख़ामोश दस्तक
लयात्मक तरीक़े से
दीवारें ढहने लगती हैं

घाघरे स्पष्टतया
एक लंबे नृत्यरत पैर का
अनुसरण करते हैं

दरारों को बींधते हुए निकल जाते हैं

असंख्य भुजाएं
अपने आग़ोश में भर लेती हैं
छिटकते रंगों को।

9.

तन्मयता

मेरे मन मस्तिष्क
तक पहुंचने का मार्ग
तिमिर से भरा और कठिन है।

तल्लीन,
मैं प्रायः हो जातीहूं
सान्सारिकता से दूर
अपनी स्मृतियों के छिद्रों को सीती हुई
भूतकाल में जीती हुई
और भविष्य के लिए
भोजन बनाती हुई ।

10

मौन-भंग

शब्द झरते हैं
उसके मुख से
जैसे वृष्टि

मरुस्थल में

*
तूफ़ानों और चक्रवातों के बाद
हृदय में
शब्द गिरते हुए
जैसे पत्थर

*
शब्द जैसे जमी हुई बर्फ़
अवरुद्ध करती
कंठों को

प्रेमियों के

*
विचार में पिघलते
मन में तैरते हुए

शब्द
संचित होते हुए
अव्यक्त कथनों में

11.
छली स्मृतियां

हर एक बार,
जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं,

ताले खोलती हूं
कमरे में प्रवेश करती हूं,
मकड़ी के जाले हटाती हूं।

मैं देखती तो बहुत कुछ हूं

पर,
कुछ कम ही संजो पाती हूं अपने हाथों में।

(काव्य संग्रह – “Salt And Pepper “मन के स्याह सफेद कोने-प्रतिनिधि कविताएं”)

सुकृता पॉल कुमार अंग्रेज़ी की एक अत्यंत संवेदनशील और ख्यातिलब्ध कवयित्री हैं जो पिछले कई दशकों से कविता कर्म में बहुत ही सादगी व तन्मयता सेलीन हैं। वह एक प्रख्यात कवि होने के साथ ही एक उत्कृष्ट शिक्षाविद, अनुवादक, चित्रकार, और सांस्कृतिक आलोचक भी हैं और उनके अनेक काव्य संग्रह व आलोचनात्मक पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य पुरस्कार- 2023 से सम्मानित सुकृता पॉल कुमार अपने विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए जानी जाती हैं । संप्रति वे साहित्य अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका-इंडियन लिटरेचर की अतिथि संपादक हैं।उनकी कविताएं भावनात्मक, विचारात्मक और दार्शनिक दृष्टि से बहुत ही पैनी हैं और एक विशिष्ट साहित्यिक अनुभव साझा करती हैं । उनकी कविताओं में एक मांत्रिक गुण देखने को मिलता है जो उनके सृजनात्मक लेखन की पराकाष्ठा के रूप में अवगत होता है। ये कविताएं आत्मान्वेषण को सजोती हैं, मनुष्यता को सद्भाव की भावना और शांतिपूर्ण सह अस्तित्वके लिए प्रेरित करती हैं । प्रमुखतया ये कविताएं जीवन की पेचीदा पहेलियों को समझने का प्रयास करने वालों को बहुत अधिक आशा और आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करती हुई प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में सांसारिक और आध्यात्मिक, परिमित और अनंत का एक मणिकांचन संयोग देखने को मिलता है जो इन्हें बहुत हद तक अभौतिक, अर्थपूर्ण और आकर्षक भी बनाता है। सुकृता आध्यात्मिक और आधुनिक चेतना से परिपूर्ण कवयित्री हैं और उनकी कविता यथार्थवाद, रहस्यमयता, सामाजिक चिंतन और सौंदर्यवादी विमर्श के स्तरों पर भी गहरी उतरती है।उनकी कविता एक सार्थक विवेचना, आत्ममंथन और ब्रह्माण्डीय जीवन और शक्तियों के साथ एकीकरण की कविता है।
ईमेल:sukrita.paulkumar@gmail.com

 

 

 

 

द्विवेदी, शुभा. ए.आर.एस.डी.कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में सहायक प्रोफेसर; भारतीय भाषा साहित्य में रुचि; हिंदी से अंग्रेजी में भी अनुवाद करती हैं। उन्होंने पोएटक्रिट,क्रिएटिव राइटिंग एंड क्रिटिसिज्म, हेलिकॉन व्यूज, डायलॉग, अधिगम, पॉइंट्स ऑफ व्यू और द क्राइटेरियन में अपने शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। उनके अनुवाद समकालीन भारतीय साहित्य,हंस,काव्य भारती,पोएटक्रिट, कॉन्स्पेक्टस और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। संपर्क: 401/एस्पायर2, सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट, सेक्टर 93 ए, नोएडा- 201304. ईमेल:drshubhad146@gmail.com

1 Comment

  • Teji
    January 5, 2024

    I haven’t read the original but the translation is so fluid that it feels the poems were written in Hindi. Sensitive. किसी भी संवेदनशील कवि की रचना को एक भाषा से दूसरी भाषा तक ले जाने का सफ़र ही अपने आप में एक तीर्थ जैसा होता है। बिना डूबे आप दूसरे छोर पर उबर नहीं सकते। Shubha Dwivedi Mishra बेहतरीन!

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