मेरी पसन्द

Raquel Lanseros रकेल लेन्सरस स्पेनिश भाषा में लिखने वाली कवयित्री हैं. स्पेनिश भाषा में लिखने वाली युवा कवयित्रियों में इनका नाम महत्वपूर्ण है।

अनुवाद – रीनू तलवार

 

आह्वान

 

ऐसा हो कि अविश्वास की प्रकट स्थिरता
कभी मेरे मन को छलनी न करे.
मुझे बच कर भाग जाने दो
निराशावाद की सुन्नता से
उचके हुए कन्धों की निष्पक्षता से.
ऐसा हो कि जीवन में हमेशा मेरी आस्था रहे
हमेशा मेरी आस्था रहे
अनंत संभावनाओं में
ठग लो मुझे, ओ जलपरियों के मोहगीतों
छिड़क दो मुझ पर थोडा भोलापन!
मेरी त्वचा, कभी मत बन जाना तुम
कठोर, मोटा चमड़ा.

ऐसा हो कि हमेशा मेरे आंसू बहें
असंभव सपनों के लिए
वर्जित प्रेम के लिए
लड़कपन की फंतासियों के लिए
जो खंडित हो गए हैं सब
ऐसा हो कि मैं भाग निकलूं यथार्थवाद की बद्ध सीमाओं से
बचाए रखूं अपने होंठों के ये गीत
ऐसा हो कि वे असंख्य हों
शोर भरे
और ध्वनियों से परिपूर्ण

ताकि मैं गा के भगा सकूँ मौन दिनों की धमकियाँ.

 

साँप

 

क्या तुमने कभी उस साँप के बारे में सुना है
जिसके आक्रमण का दुष्टतापूर्ण ढंग
झील के तल पर निर्जीव और निस्सहाय
होने का नाटक करना है?

आश्वस्त, कि वह मरा हुआ है, शिकार
बेखटके जाता है उसके पास
और चुकाता है कीमत जल्लाद के इलाके में
अतिक्रमण करने की निपट सरलता की.

एक कपटी सांप की तरह,
समय, हमें इस भ्रान्ति में रहने देता है
कि उसके भय का कोई अस्तित्व ही नहीं है.

यौवन, अल्पकालिक और सुन्दर,
दुबका रहने देता है उसको,
कायर की तरह, झील के तल पर.
और हम नाचते हैं, उसे अनदेखा कर
अपने निरर्थक प्रयासों में रत, समझ पाने में असमर्थ,
उस विश्वासघात को जो वह लिए बैठा है हमारे लिए.

झूठा चापलूस, वह हमें वह सब कुछ
देने का दावा करता है जो वह पहले से ही जानता है
कि वह हमसे जल्द ही छीन लेगा.

जब हम उस सांप का चेहरा देखते हैं,
जब चाल के अंत में हमें एहसास होता है,
अक्सर देर हो चुकी होती है, बहुत रात बीत चुकी होती है
और हम लगभग हमेशा बहुत ज़्यादा थक चुके होते हैं.

 

सपाट उदासी

 

बिस्तर क्षितिज में लगी खपच्ची होता है.
जो कुछ भी जीवित है समा जाता है उसकी सीमाओं में.
वे जन्म देने के लिए यहाँ आती हैं, चेहरा ऊपर कर के लेटी,
हमारे लिए जगह बनाने के वास्ते, वर्तमान को धकेलतीं.
मैं भी लौटूंगी एक दिन. एक साफ़, निर्मल दिन,
मैं उसपर लेट जाउंगी हमेशा हमेशा के लिए.

बस मुझे इस उदासी को लिख लेने दो अपने नोटबुक में.
उदासी, सेक्स की तरह,
एल्फा से शुरू होती है और ओमेगा में समाप्त होती है.
जब सब कहा-सुना-किया जा चुका है,
मैं स्वयं ही वह गिद्ध हूँ
जो अपने ही शव के ऊपर काट रहा है धीमे-धीमे चक्कर.

 

एक युग की आत्मा

 

जानना एक बात है
वास्तव में समझना कुछ एकदम अलग.

जब तुम पैदा होते हो अपने धड़कते
दिल को अपनी टांगों के बीच लिए
एक ऐसे देश में जिसने अभी-अभी खुल कर जीना शुरू किया है,
समय में से आती है रोटी की महक, दूर तक फैले क्षितिजों की महक,
न जाने किस-किस की महक, पब के ‘हैप्पी आर’ की महक,
आगे भागते समय और इस पल को जीने की महक.

हमारे माता-पिता लिए हैं अपने पेट पर
उस ज़िप की आवाज़ जो अलग करती है
उन्नीसवीं सदी को इक्कीसवीं सदी से.

उसी सहजता से
जिस से हमने फसल-कटाई के संहार में हाथ बंटाया था
हमने याद किये बोन जोवी के गीतों के बोल.

हम धन्य थे पाकर दयालु वंश-अग्रजों का ध्यान,
जिन्हें पूर्णविश्वास था त्याग करने की अपनी इच्छाशक्ति पर.
हमें बचा लिया जीवन के दिए सम्मानों ने
डिज़ाईनर कपड़े, यात्राएँ, शनिवारों को
देर रात तक भोगा कॉलेज सेक्स, और स्कींग प्रशिक्षण.

ओह, कैसे दुनिया घुल जाती है हमारी आँखों में
कैसे सूर्योदय और सूर्यास्त धुंधला देते हैं
गोद्नों को, शरीर पर जगह-जगह किये छेदनों को, उलझे हुए बालों को
बैल-गाड़ियों के धीमे पतन को.

यहाँ हम खड़े रहते हैं
हैरान,
पारदर्शी, भौंचक्के
प्रफुल्ल,
मुंह खुले के खुले.

हम, जो वचन हैं
हैं सत्तर के दशक के आत्मविश्वासी बच्चे
दर्पण के पार जातीं नन्ही-नन्ही एलिस
भूत और वर्त्तमान के वर्णसंकर.

 

एक युवा कवि याद करता है अपने पिता को

 

अब मैं समझा हूँ कि मैं आपके जीवन में से ऐसे गुज़रा
जैसे नदियाँ गुज़रती हैं पुलों के नीचे से,
उदासीन, अशांत, गर्व से चूर,
वह अस्पष्ट तुच्छता लिए
जो आभास देती हैं तुच्छ चीज़ों के अनंत होने का.

जो प्रकट है प्रायः
छुपा रहता है अनिश्चितता के तेजोमंडल के पीछे,
स्वाभाविक मंद गति के पीछे,
और अनूठे अनुभवों के बहुत ही सहज तेजोमंडल से
एकदम अलग नहीं किया जा सकता.

यह जानना कठिन है
कि रोज़-रोज़ जीने का रूखा सौंदर्य,
इतना निस्स्वार्थ,
जो बिना शोर या दिखावे के उत्पन्न हुआ है,
तात्विक रूप से इतना जादुई ओर सुस्पष्ट है
कि जान-बूझ कर उसकी नक़ल करना प्रायः अस्संभव है.

और यह समझना और भी कठिन है
कि सीधी-सादी चीज़ों के उत्सव का अंत
लगभग हमेशा ही
उत्सव मनाने वालों की इच्छा से बहुत पहले हो जाता है.

स्थिर हो मैं देखता रहा आपके जीवन के शांत जुलूस
को अपनी आँखों के सामने से गुज़रते
जिस में थे आपके हारे हुए पतझड़ी स्वप्न
आपकी आतंरिक खुशियाँ
और आपका हल्का गुनगुना उनींदापन.
अगर मैं यह कहूँ तो लगता है सही होगा
कि मैंने आपको कभी ऐसा कुछ नहीं दिया जो किसी-ना-किसी तरह
स्वयं मेरे ही लिए उपहार नहीं था.
और फिर भी, मैंने आपसे कितना कुछ चाहा.

स्थिर आज एक बार फिर, निहत्था जाता हूँ मैं
आपकी अनुपस्थिति के दुखद जुलूस में शामिल होने
जबकि मेरा मन, विभाजित और विस्मित
समझने लगता है कवि की तरह
कि जीवन उत्सुकता से चलता रहता है.

मैं आपको याद करता हूँ. बहुत ठण्ड है.
और ठण्ड मुझे ले आती है
आपके सूक्ष्म-संवेदी तरीके के पास,
जैसे आप देते थे मुझे
एक ही साथ, एक भटका हुआ दिल,
लास वेगास के कैसिनो में खुली किस्मत,
रेगिस्तान में बारिश,
शहर की सीमा पर मचादो की कविताएँ.

अब मैं जानता हूँ कि मैं आपके जीवन में से गुज़रा हूँ
आलस में, बिना कुछ सोचे, बिना विस्मय के,
जैसे कि वे सब लोग जीने को प्रवृत रहते हैं
जिन्होंने अभी तक नहीं जाना होता है अभाव को.

 

बेकेर* और रॉक एंड रोल

 

मैं जानता हूँ ये केवल रॉक एंड रोल है,
मगर मुझे पसंद है.
द रोलिंग स्टोंज़

तुम भी बारह वर्ष के रहे हो.
तुम भी पहचानते हो
आगे बढ़ने में होती देह की कम्पन को
तुमने अग्नि महसूस की है अपनी आँखों में
जो पहले बार अनुभव करती हैं तीव्रता को.

सर्दियाँ हैं. मेरी बच्चों जैसी उँगलियाँ
उत्साहपूर्वक धक्का देती हैं, छुड़ाती हैं एक कविता.
पीछे एक युवक है बकरे की सी दाढ़ी लिए
और लिए एक संवेदी स्वप्नदृष्टा की अनंत आँखें.
भूखी चींटियों की तरह
शब्द द्रुत गति से मेरी छाती पार जाते हैं…
अचानक, एक सीधा आघात,
मेरी अंतरात्मा को,
ठीक वैसे जैसे होता है जब मैं रॉक एंड रोल सुनता हूँ.

अर्थ की सबसे गूढ़ जगह.
कविता है मृत्यु की विपर्यय.
अज्ञात की एक आकस्मिक निश्चितता.

शायद वह केवल रॉक एंड रोल ही है.
मगर मुझे पसंद है.

* गुस्तावो अदोल्फो बेकेर रूमानी काल के प्रसिद्द व प्रिय स्पेनी कवि हैं. उनकी गीतात्मक कविताएँ स्पेनी भावनात्मक शिक्षा का हिस्सा हैं व बच्चों द्वारा कंठस्थ की जाती हैं.

घायल स्त्री

अगर केवल एक बार तुमने
जी-जान से प्रेम किया है
कोई सुरक्षा जाल नहीं
कोई जीवन जाकेट नहीं
तो तुम समझ पाओगे उस अथाह घुमरी को
जो खुल जाती है घोर निराशा के क़दमों तले.

उसने सोचा था कि उसे मिल गया है प्रारंभ का स्रोत
जब वह उस से मिली थी धरती के ठीक बीचों बीच
उसकी खाल के सिवाय बिना किसी और ढाल के,
खाल जो सूरज ने प्राचीन सोने-सी चमका दी थी.

वह उस से प्रेम करती थी बिना अस्थिरता, बिना प्रश्नों के,
प्यार से, चुपचाप,
उस विलासमय कृतज्ञता के साथ
जो वसंत की वर्षा जागृत करती है.

सब कुछ कितना सहज था.
असंख्य कवियों की वे चांदी-चढ़ी कविताएँ
लगता था जैसे हर जगह पीछा कर रही हों उसका,
कि उसका मन बन गया हो जैसे
एक वफादार पालतू जानवर.

क्योंकि कुछ भी हमेशा नहीं रहता
एक रात उसने जाना, जैसे कितने ही जान चुके हैं
उससे पहले और उसके बाद,
कि प्रेम एक नदी है जिसकी स्वयं की तेज़ धाराएँ हैं
और दूसरों के शांत कुण्ड हैं
जो हमेशा बहती है समुद्र की ओर.

इसको ऐसे देखो : जीवन ने सिखाया है तुम्हें,
अथक शिक्षक होने की अपनी आदत के तहत,
कैसे आत्मा बनाती है
पुराने घावों पर शांत क्षतचिन्ह.

परछाइयों की रूपरेखा

आज ज़रूर सब जगह शुक्रवार रहा होगा,
कितने देवदूत छतों से
पटरी पर गिरे हैं.
शुक्रवार कोई दिन नहीं, परन्तु है एक संयुक्त काल
संभाव्य, भविष्य, बहुवचन, भूतकालिक.
सीमा पर एक सीमा-शुल्क चौकी
जो अलग करती है जीवित लोगों को बचे हुए लोगों से.

उस दिन शुक्रवार ही रहा होगा
और तुम मेरे साथ नहीं हो.
मगर तुम्हारी अनुपस्थिति गाढ़ी होकर
आगे बढ़ रही है एक सघन बाँध की तरह.
तुम्हारी आत्मा मुझे घेर लेती है, नींद में चलती हुई, दिव्य
भारहीन तरीके से मेरे अन्दर फिरने का संकल्प लिए,
हर जगह से प्रकट होती, सबकुछ से लबालब भरी हुई,
शून्य में लौटती, वह समानार्थी
शुक्रवार की रात और खाली बिस्तर का.


नग्न आदमी

 

एक आदमी शीशे के सामने निर्वस्त्र होता है.
दिन की आँखों को
कांच में लगा जोड़ उसके चिकनेपन में दिखाई देता है.
उसके धड़ पर से धीमे-धीमे फिसलती
रोशनी गिरती है
चाह की उसी सुनिश्चितता से
जैसे एक धातु की धार
फिसलती है एक हीरे पर से.
भोर की तरह तुम रुपहली पंखुरियों में छितर जाती हो
जो धीमे-धीमे बरसती हैं मेरे आत्मा पर.
तरसती समझने के लिए उस पवित्र रहस्य को
जिसने नए प्रकट हुए जीवन को घेर रखा है.

मैं सोचती हूँ : पुनः पतन की तरह पारदर्शी
ये क्षिद्र चमकते हैं.
फिर मैं ऊंचे स्वर में कहती हूँ: तुम्हारी मर्दानी देह के लिए मैं वो हूँ
जो तुम्हारे लिए वेनिस के पुल थे.
बाद में,
तुम अपने सघन सौंदर्य के कहीं भीतर से मुझे देखते हो,
जो है भाग्यों और तत्वों से बहुत दूर,
केवल अपने चक्कर में संरेखित,
स्वयं से अनुपस्थित,
बहता हुआ.

मैं तुम्हें ऐसे याद रखना चाहती हूँ.

 

नक़ल की सीमाएँ

 

हालांकि मैंने अपना रंग काफी बदल लिया है
मैं गिरगिट ही बने रहता हूँ
टहनी नहीं.

 

पुनः प्रकाशित

1 Comment

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