समकालीन कविता

समकालीन कविता में तीन महत्वपूर्ण युवा कवि प्रस्तुत हैं. विजयाराजमल्लिका मलयालम और अंग्रेजी में लिखने वाली ट्रांसजेंडर कवि हैं, जिन्होंने कम समय में नाम कमाया है। अमित तिवारी जाने माने युवा कवि हैं जो हिन्दी में लिखते हैं। प्रवीण कुमार भी हिन्दी के कवि, लेखक हैं। इन दोनों की कविताएं कुछ सोचने को मजबूर जरूर करतीं हैं।-RS

 

विजयाराजमल्लिका

(अंग्रेजी से अनुवाद)

अनुवाद: संतोष कुमार

 

1. मां के नाम

 

बेटा बेटी भी हो सकता है
और बेटी बेटा भी,
ओ अम्मां !
स्वीकारो अपनी संतान को
उन्हें वैसे ही, जैसे वे हैं
तुम बिन कौन हिम्मत करेगा
तुम सा निर्दोष, निष्कलंक, सिद्ध …
और परिपूर्ण, इस जगत में
और कौन है भला !

 

2. नवजात

 

नवजात न तो
बेटा है न ही बेटी है
वह तो सिर्फ एक अबोध बच्चा है
और शिकार है
लोगों के लिंग निर्धारण की आदत का !

 

3. दुनिया

 

….दुनियावी सोच
बस एक नजर काफी है
जानने को शिशु के बारे में
‘लड़का है या लड़की है? ’
कहा डॉक्टर ने !

 

रोको ! बंद करो ये फालतू बातें
बुद्धि तो है ना !
या यही हद है दुनियावी सोच की
कि लगे रहें जानने में
‘लड़का है या लड़की है?’

 

4. उपहार

ओ चंदा
तुमने देखा मेरा उपहार,
वो खिलता हुआ इन्द्रधनुष
और वो चंचला नदी !

 

जैसे कि मेरी पुत्री और मेरा पुत्र
मैं पालूंगी इन्हें
ये कोमल गुच्छे
जो उतरे हैं इस धरा पर
रत्नजडित चिराग बन !

 

नहीं पुकारना मुझे
उन्हें… लड़का या लड़की कह के,
वही तय करें कि
वे कौन-से फूल हैं…
प्यारे फूल मां की बगिया के 

 

5. आत्म-संहार

 

नीचे एक छत के
दो लोग
साथ लगे बिस्तरों पर
जी रहे श्रापित जीवन

 

दोनों ही कैदी हैं
दो मानव-बम
फूट पड़ने को कभी-भी

 

वो दाईयां
जिन्होंने सुला दिए
अपने हसींन सपने

 

वो शानदार पल
जिसने एक किया था उन्हें
बिना समझौते के

कैदी हैं वे
उस घर के
वे जी रहे असंतोष में –
एक वुमन हैं और दूसरी
ट्रांस-वुमन !

 

दुनिया के लिए
वे हैं… एक महिला और एक पुरुष
ओह ये नाउम्मीद दुनिया
तारीफें करती नहीं थकती
कि वे हैं
आदर्श पति-पत्नी !

 

6. विस्तार

 

सुनो मेरे बच्चे, आओगे क्या आज रात खाने पर ?
त्योहार है ना
और क्रिसमस ट्री भी तो सजाना है
कब से राह देख रही
कहो, किस नाम से पुकारूं तुझे
तुम अपनों को … अजनबियों को
जिनके लिए हज़ारों दुआओं में
मैंने मांगी एक ही बात
कि वे अब तो समझ लें
जिन्होंने समय रहते न जाना
और बिन समझे ही भुला दिया
मेरी भावनाओं के अर्थ और विस्तार को !

 

और हमारे लिए
कैसा उत्सव कैसा त्योहार
कि जिन्हें जन्मते ही फेंका गया
सड़कों के कचरे पर !
कब होंगे उनके हृदय और हाथ
इतने सबल और इतने निडर
कि गले लगा सकें
चूम सकें माथे और पोंछ सकें आंसू
अपने ही परित्यक्तों के !
देखना दुनिया वालों…
एक दिन गुड़ भी तीखा होगा
क्योंकि वह भूलेगा नहीं
कि ‘उसके जीवन से मिठास कैसे ख़त्म हुई !’

 

 

विजयाराजमल्लिका

 

कवयित्री विजयाराजमल्लिका लेखिका, शिक्षक, समाजसेविका, प्रखर वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर केरल में सक्रिय हैं I वह मलयालम साहित्य की पहली ट्रांसजेंडर कवयित्री हैं, उनका पहला काव्य-संग्रह “दैवथिन्ते मकल” (ईश्वर की पुत्री) मलयालम भाषा के पहले ट्रांसजेंडर कविता-संग्रह के रुप में चर्चित है I यह संग्रह मद्रास विश्वविद्यालय के परास्नातक कोर्स में भी सम्मिलित किया जा चुका है I इस संग्रह की दो और रचनाएं केरल की महात्मा गांधी विश्वविद्यालय और कलाडी श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय के परास्नातक सिलेबस में भी शामिल हैं I विजयराजमल्लिका ने एशिया के उभयलिंगी (Intersex) बच्चों के लिए पहली लोरी की किताब लिखी है, जो शायद दुनिया की ऐसी पहली किताब है I उनके कविता-संग्रह “आन नधी” ने मलयालम साहित्य को 10 नये शब्दों से समृद्ध किया है I उन्हें अपनी आत्मकथा “मल्लिका वसन्तम” के लिए केरल के युवा लेखक सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है I
अनुवादक
कवयित्री विजयाराजमल्लिका की उपरोक्त सभी कविताओं का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद संतोष कुमार द्वारा किया गया है।

 

अमित तिवारी

 

1. आकांक्षी

मैं बहुत सारी कविताएं लिखना चाहता हूं
छांव जैसी कविताएं
घोंसलों जैसी
उनमें पलते सफ़ेद अंडों जैसी
जिसके दाग़ उसको और सुन्दर बनाते हैं


पर तुम बहुत दूर हो
यूकेलिप्टस के पत्तों की तरह
मेरा रुदन हवा उड़ा ले जाती है
मेरी आह तक कोई ले जाने वाला नहीं
किससे कहलवाऊं
इस धरती ने मुझे एक बिचौलिया तक नहीं दिया
मुझे सभी ऋतुओं से चिढ़ है
सूरज, बादल और पुरुआ से
पर मैं हूं, यहीं
समेकित निराशा के बीच आकांक्षी
मुझे पतझड़ का सहारा है।

 

2. फ़िलिस्तीन के लिए

 

यहां सुबह अब भी कुछ-कुछ कहती है
अखबार हालांकि बहुत कुछ नहीं कहते
दूर देश में
जो अब देश भी नहीं है
कोई ज्यादा कुछ नहीं कहता
वहां चीख है, धमाके और अफ़रातफ़री
थोड़ी बहुत रुलाइयां हैं
ये मीम्स या रील्स के काम की नहीं
विभीषिका की ख़ास इंटरटेनमेंट वैल्यू भी नहीं
ट्रिगर करने वाले कॉन्टेंट को रिपोर्ट करो
हैप्पी थॉट्स! हैप्पी थॉट्स!
कुछेक ही ध्यान देते हैं इन पर
जैसे एनजीओज़ या स्टॉक इमेजेस वाले लोग
सुबह वहां अब पतिंगों के पुनर्जन्म का नाम है
वहां अखबार छापने वाला
निश्चित ही अगला पैगंबर होगा
कुछ करोड़ लोगों को संतोष है
कुछ लाख लोगों की बर्बादी पसरती जाती है
इस पर कुछ हज़ार लोग जताते हैं
थपकी भरी आपत्ति।

 

3. अभिनिर्धारण

 

मुझे देखा गया
दाएं से
बाएं से
और फिर सामने से
थाने में जमा होते अपराधी की तरह
जिसकी पहचान बहुत ज़रूरी है
पहचान के आधार पर
पकड़े जाने के लिए

 

मुझे देखा गया
बहुत ऊपर से
जैसे देखा जाता है
किसी शिकार को
या सूबे का मुख्यमंत्री
हेलीकॉप्टर से देखता है
बाढ़ में टीले तक डूबे गांव को

 

मुझे देखा गया
थोड़ा-थोड़ा करके
भविष्य से भी अधिक निश्चित
कर्ज़ की किश्तों की तरह
या उन साधारण अधिकारों जैसे
जो महिलाओं को मिले
चरणामृत की तरह

 

मुझे देखा गया
एकांत में किसी को चूमते हुए
प्रार्थना स्थल जाते हुए
यह कह कर
कि नहीं देखा जा रहा

 

मुझे देखा गया
हमेशा बहुत बाद में
न देखने की योजना में
घुसपैठ की तरह
मुझे जब भी देखा गया
अधूरा और संदिग्ध ही देखा गया
मुझे कभी नहीं देखा गया
विज्ञापन और समाचार से पटे
सत्ता समर्थक अख़बार में
अपने समूचेपन के साथ खड़ी
एक कविता की तरह।

 

4. नारसिसस

 

मेरी संरचना में तुम
इतनी अधिक हो
और संभावनाओं में
इतनी अनुपस्थित
कि तुमको चूमना
या अपने आप को देखना
बहुत मुश्किल हो गया है
शायद मैं भी किसी दिन
नारसिसस की तरह मारा जाऊंगा।

 

5. संजीवनी

 

मुझे याद हैं
चोरी से, घबराकर
जल्दबाज़ी में लिए गये
सारे शामक चुम्बन
मुझे नहीं पता
दवाइयों की शुद्धता
मुझे उनसे मिला जीवन याद है।

 

6. हिजरत

 

बहुत ठण्डी रात थी
मल्लाह रहित डोंगी की तरह
एक वाक्य
तैरता रह गया था
भरे हुए गले में।

 

अमित तिवारी

गोरखपुर, उप्र के एक कस्बे में जन्में युवा कवि अमित तिवारी पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। अमित की कविताएं देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाएं जैसे सदानीरा, हिन्दवी, समालोचन, वनमाली कथा, कृति बहुमत, इंद्रधनुष, दैनिक भास्कर और युवा वाणी में प्रकाशित, आपके द्वारा किए गए कई पत्रों और कविताओं के अनुवाद भी प्रकाशित हो चुके हैं। कवि अमित तिवारी ने भारत भवन, भोपाल के कार्यक्रम दिनमान-2020 में कविता पाठ भी किया है और वर्तमान में नोएडा में निवासरत हैं।

 

प्रवीण कुमार

 

दया के पात्र

 

कितने विपन्न हैं ये लोग
जो सोने की चमक से
चुंधियाये हुए हैं
बौराये हुए हैं
एक सनक के साथ हर रोज़
बाज़ार को अपने कांधे पर
उठाए हुए हैं
जिनके ह्रदय में
नहीं उठा करती आनंद की लहरें
पढ़ कर कोई कविता या कहानी
जिनकी पलकें नहीं ठहर पातीं
पल दो पल भी
देख कर कोई ख़ूबसूरत तस्वीर
जिनके गले में पैदा नहीं होता
कोई आरोह-अवरोह
सुनकर संगीत की कोई मधुर धुन
जिनके पैर नहीं थिरक पाते
ढोल-मंजीरे की तीव्र थाप पर
वाक़ई, कितने विपन्न हैं ये लोग
जिन्हें स्पर्श नहीं करती
किसी मूर्तिशिल्प की
सजीव अंगड़ाई।
ये निर्जीव
वाक़ई दया के पात्र हैं।…..

 

शून्य का घेराव

 

एक बिंदु से शुरू होती है रेखा
जो हो सकती है छोटी या बड़ी
बना सकती है विभिन्न आकृतियां
वर्गाकार, आयताकार, त्रिकोणीय या वृत्ताकार
इन आकृतियों का आकार हो सकता है
लघु या दीर्घ
लघु आकार वृत्त को
आप कह सकते हैं शून्य
जैसे किसी बच्चे-किशोर या युवा को
अक्सर कहते रहते हैं अधेड़ या बुज़ुर्गवार
तुम्हें अभी कुछ नहीं पता
अभी तुम शून्य हो…..
कितना चुभता होगा
किसी युवा के सीने में
शून्य का वह शूल
जब नौकरी के लिए आवेदन किये जाने पर
नियोक्ता द्वारा
उसे घोषित किया जा रहा हो शून्य
दूसरे के वजूद को अस्वीकार करने वाले
ये आत्ममुग्ध लोग
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
गुजरे वक़्त की कहानियां
उन्हें नहीं रहता याद
कुछ समय पहले तक
वह भी एक शून्य ही थे
वह भूल जाते हैं विधि का विधान
जब शून्य बताया जाने वाला कोई शख़्स
उतर आता है अपनी पर
बहाने लगता है पसीना दिन-रात
तो फैलने लगता है उसके शून्य का आकार
फैलते-फैलते वह फैल सकता है उतना
समेट ले अपने अंक में पूरा अंकगणित
उसके घेराव में
विलय भी हो सकता है
छोटी-बड़ी रियासतों का।

 

अपना-अपना बैकुंठधाम

 

कोई भी अकेला परमाणु
हासिल नहीं कर सकता
अणु का स्थायित्व
उसके लिए अनिवार्य है
इलेक्ट्रॉन की साझेदारी
किसी परमाणु के पास हो सकते हैं
एक, दो या तीन इलेक्ट्रॉन
जिन्हें साझा किया जा सकता है
एक, दो या तीन अन्य परमाणुओं के साथ
बनाए जा सकते हैं
एकल, युगल या तिहरा बंध
जितनी ज्यादा साझेदारी
उतना गहरा बंध
जैसी साझेदारी है
मेरे-तुम्हारे बीच
प्रेम, त्याग व समर्पण के
तीनों इलेक्ट्रॉन की
अब शेष नहीं मेरे पास
अतिरिक्त संयोजकता
जुड़ पाऊं
किसी और परमाणु से
चाहे कितना ही दमक रहा हो
उसका आभामंडल
पूर्ण हो चुका मेरा संयोजन
पूर्ण हो गयी मेरी प्रेम-यात्रा
प्रेममय होकर मैं
पा चुका अपना स्थायित्व
शेष नही अब कोई तलाश
अब मैं तय कर सकता हूं
यात्रा के अगले पड़ाव
कर सकता हूं
ज्ञान-विज्ञान का संधान
ज्ञात से अज्ञात के लिए प्रस्थान
आत्मा-परमात्मा का अनुसंधान
कर सकता हूं
पूरी कायनात के साथ प्रेमालाप
पा सकता हूं अपना बैकुंठधाम।

 

प्रवीण कुमार

गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के कवि प्रवीण कुमार की कविताएं, कहानी एवं आलेख देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। प्रवीण कुमार के अब तक दो कहानी संग्रह, दो शोध-पत्र एवं कविता संग्रह ‘गिरती हैं दीवारें’ व ‘बुतों के शहर में’ प्रकाशित हो चुके हैं। अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान, गाजियाबाद के महासचिव प्रवीण कुमार यूट्यूब चैनल ‘आध्यात्मिक सृजन’ पर ‘सृजन संवाद’ पर साक्षात्कार शृंखला का आयोजन व प्रसारण भी करते हैं। वर्तमान में प्रवीण कुमार जिला एवं सत्र न्यायालय गाजियाबाद में अधिवक्ता हैं।

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